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इस्लामिक स्टेट को मिल रही संजीवनी

– डाॅ. किशन कछवाहा

कतर में फुटवाल का एक बड़ा कार्यक्रम फीफा विश्वकप आयोजित किया गया, उसमें इस्लामिक कट्टरपंथी प्रचारक जाकिर नायक को कतर ने आमंत्रण देकर बुलाया था। स्वाभाविक है कि भारत द्वारा घोषित भगोड़ा अपराधी जो मलेशिया में शरण लिये हुये है, फुटवाल देखने गया नहीं वहाँ वह उस स्टेडियम में अपने धर्म की बात ही करेगा। वह मजहबी भाषण देगा। यह शख्स भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिये भगोड़ा है, जिसने अतीत में भारत ही नहीं भारत के बाहर भी अपने इस्लामिक कट्टरपंथी विचारों और चलाये गये अभियानों के माध्यम से मजहबी कट्टरता को ही बढ़ाया है और इतना ही नही उसने आतंकवादी तत्वों को आतंकी घटनाओं के लिये भी उकसाया।

कतर के सामने कूटनीतिक स्तर पर भारतीय अपराधी भगोड़े को आमंत्रित किये जाने का विरोध भी करना चाहिये। सन् 1916 में जाकिर नायक के इस्लामिक रिसर्च फाऊंडेशन की शाखा आई.आर.एफ. को अवैध घोषित कर दिया था। जाँच के दौरान जो तथ्य सामने आये थे, वे चैंका देने वाले थे। स्पष्ट हुआ था कि उस संस्था के माध्यम से अलग-अलग धार्मिक समुदायों और समूहों के मध्य दुश्मनी और नफरत को प्रोत्साहन दिया जा रहा था। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने त्वरित कदम उठाते हुये उसे प्रतिबंधित भी कर दिया था। कोई भी व्यक्ति या संगठन प्रतिबंधात्मक स्थिति में  उस कानून से बाहर नहीं माना जा सकता। 

सन् 1990 के बाद जाकिर नाईक चर्चा का विषय बना था और जब उसके संगठन आई.आर.एफ. की गतिविधियों पर से पर्दा उठा था। वह पीस टी.वी. का संचालक भी है। बताया जाता है कि उस चैनल की पहुँच 10 करोड़ दर्शकों से ज्यादा तक है। यद्यपि इस पीस टी.वी. के प्रसारण को भारत के साथ-साथ, बाँग्लादेश, कनाडा, श्रीलंका और ब्रिटेन द्वारा प्रतिबंध लगाया जा चुका है। 

अनेक देश इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं कि जाकिर नाईक इस्लामिक धर्मगुरू होने के साथ-साथ अन्य धर्मों की भी खुले आम आलोचना भत्र्सना करता है और लोगों को इस्लाम में लाने की वकालत करता है। पीस टी.वी. से लेकर आई.आर.एफ. एवं अन्यान्य गतिविधियों के माध्यम से यह तथाकथित धर्मगुरू अवैध रूप से धन प्राप्त करता है व खतरनाक तरीके से व्यय भी करता है-ऐसे अनेक घृणित आरोप भी लगे हैं। 

भारत में ऐसी कई आतंकवादी घटनायें घटी हैं, जिनमें पकड़े गये आतंकवादियोें ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि वे जाकिर नाईक से प्रभावित थे। कश्मीर के कुख्यात आतंकवादी बुरहान अली ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया था कि वह जाकिर नाईक का अनुसरण करता है। बांग्लादेश में घटी विस्फोट की घटनाओं से संबंधित अपराधियों ने भी जाकिर नाईक से संबंधित होने की बात कबूली थी। उसने अपनी तकदीर में ओसामा बिन लादेन का भी समर्थन किया था। उसने अपने दिये बयान में यह भी कहा था कि अगर ओबामा इस्लाम के दुश्मनों से लड़ रहा है तो उसके लिये हूँ। उसने यह भी कहा था कि अगर वह दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी अमेरिका को आतंकित कर रहा है तो वह उसका सहयोगी है और हर मुसलमान को आतंकी होना चाहिये। इस प्रकार की तमाम खबरों के बावजूद जाकिर नाईक मलेशिया में आराम से रहता है। मलेशिया ने उसके प्रत्यर्पण की मांग भी खारिज कर चुका है। मलेशिया के पूर्व राष्ट्रपति महाथिर बिन मोहम्मद ने साफ-साफ यह भी कह दिया था कि हम जाकिर नाईक को अपराधी नही मानते और भारत को नहीं सौपेंगे।

मलेशिया मजहबी कट्टरपंथियों को आश्रय देता है, वह स्वयं इस्लामी कट्टरवादी देश है किन्तु जाकिर नाईक मलेशिया से अन्य देशों को भी जाता है जहाँ वह अपने भाषणों के माध्यम से जहर उगलता है। यद्यपि मलेशिया ने सन् 2020 में राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार मानकर उसके भाषण देने पर रोक भी लगा दी थी। इसके बावजूद कतर द्वारा फीफा फुटवाल आयोजन में आमंत्रित किया जाना आश्चर्यजनक है। 

जाकिर नाईक को कतर द्वारा इतनी अहमियत दिया जाना प्रश्न तो खड़ा करता है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत कोई भी देश किसी आतंकवादी या आतंक में लिप्त संगठन को खुले आम प्रश्रय नहीं दे सकता। यह पहला उदाहरण नहीं है। कतर ने तालिबान को भी विश्व भर में प्रतिबंधित होने के बावजूद कतर में ही अपना राजनीतिक मुख्यालय बना लेने की तमाम सुविधायें मुहैया करायी थी। 

नुपुर शर्मा के मामले में कई देशों ने अपना विरोध जताया था उसमें कतर और मलेशिया भी शामिल थे। अतः भारत सरकार द्वारा उन्हें ताकीद दी जानी चाहिये कि वे परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से एक आतंकवादी को प्रोत्साहित कर रहे हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का न केवल उल्लंघन है, वरन् अवमानना भी। 

इधर एक इराकी नागरिक अबू अल हुसैन अल कुरैशी ने आई.एस. की कमान सम्भाल लेने की खबर भी मिली है। इस्लामिक स्टेट के इस नये खलीफा को समर्थन देने के लिये दुनियाभर के आई.एस. समर्थक उसके पास पहुंच रहे  है। कुरैशी का संबंध पैगम्बर मुहम्मद साहब के एक कबीले से है। इस्लामिक स्टेट का सरगना होने के लिये इस कबीले का सदस्य होना जरूरी होता है। 

इस्लामिक स्टेट ने भारत में भी एक प्रान्त बनाया है। आई.एस. के ये आतंकी कश्मीर में सुरक्षाबलों पर हमले करते रहते हैं। आई.एस. ने इस प्रान्त का नाम बिलायाह ऑफ हिन्द दिया है। यह आतंकी संगठन कई भारतीय सैनिकों की शोपिया और अन्य जिलों में हत्या कर चुका है। 

अभी हाल ही में अफगानिस्तान प्रान्त की राजधानी मजारे शरीफ में हुये विस्फोट की घटना भीड़ भरे इलाके में घटी है, जिसमें दस से अधिक लोगों के माने जाने की खबर है। ऐसे हमले तालिबान सरकार के सन् 2021 में अस्तित्व में आने के बाद क्षेत्रीय इस्लामिक स्टेट द्वारा जारी रखे गये हैं। तालिबान सरकार के अधिकृत प्रवक्ता का मानना है कि यह विस्फोट एक वाहन, जो सड़क के किनारे खड़ा था, उस समय हुआ जब हापरतन गैस एंड पेट्रोलियम की बस अपने कर्मचारियों को काम के लिये जे जाने आयी थी। 

बताया जाता है कि सोफी नामक एक आतंकवादी कश्मीर में लगभग एक दशक से सक्रिय था और उसकी आई.एस. के साथ मिली भगत थी, लेकिन सुरक्षा बलों ने उसे मार गिराया था। लेकिन अब नये आतंकियों के आई.एस. के खलीफा से मिलने से पुनः खतरा बढ़ जाने की आशंकायें बढ़ चली हैं। इस्लामिक स्टेट पूरी दुनिया मं इस्लामिक साम्राज्य स्थापित करना चाहता है। अब इस नयी खबर से भारतीय सुरक्षा बालों की चिन्तायें बढ़ सकती हैं।