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कांग्रेस का मौजूदा संकट गांधी परिवार के प्रति असंतोष का परिणाम

कांग्रेस के भीतर हालिया राजनीतिक घटनाचक्र जिस तेजी से घूमा वह पार्टी के लिए नई बात है क्योंकि अब तक छोटे से छोटे निर्णय को भी गांधी परिवार के जिम्मे छोड़ने की परिपाटी रही है राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से बचने के लिये राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस तरह का खेल रचा उसके बाद पूरे देश में कांग्रेसजन उनको गद्दार बताने लगे । बीते रविवार जयपुर में आलाकमान द्वारा भेजे गए पर्यवेक्षकों के साथ मुख्यमंत्री समर्थक विधायकों और मंत्रियों ने बहुत ही अपमानजनक व्यवहार किया परन्तु पार्टी नेतृत्व ने केवल तीन नेताओं को नोटिस देने की औपचारिकता निभाई । हालाँकि सर्वविदित है कि बिना श्री गहलोत के किसी मंत्री या विधायक की हिम्मत नहीं थी जो पर्यवेक्षकों को ठेंगे पर रखते हुए विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करता । बहरहाल सोनिया गांधी से माफी मांगने के बाद श्री गहलोत ने अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करते हुए ये भी कह दिया कि उन्होंने मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला श्रीमती गांधी पर ही छोड़ दिया है । दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर दिल्ली आ पहुंचे और आज नामांकन भरने वाले थे । कहा जा रहा था कि श्री गहलोत के पीछे हट जाने के बाद गांधी परिवार के विश्वस्त होने के कारण उन्हें ये दायित्व सौंपा जायेगा । गांधी परिवार का ठप्पा लगा होने से उनकी जीत में संदेह भी नहीं था । लेकिन बात यहीं नहीं थमी क्योंकि जी 23 के नेता आनंद शर्मा के घर हुए जमावड़े में मनीष तिवारी, पृथ्वीराज चव्हाण, भूपिंदर सिंह हुड्डा ने तय किया कि गांधी परिवार की कठपुतली प्रत्याशी का विरोध किया जावेगा । संभवतः मनीष को असंतुष्ट गुट मैदान में उतारेगा । इस बैठक के बाद आनंद शर्मा ने दिल्ली में श्री गहलोत के ठिकाने पर जाकर उनसे मुलाकात भी की । यदि असंतुष्ट गुट श्री तिवारी अथवा किसी अन्य को उतारता है तब मुकाबला रोचक हो जायेगा । इसीलिए आनंद शर्मा और श्री गहलोत की भेंट को लेकर पार्टी के भीतर काफी सुगबुगाहट है क्योंकि मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला श्रीमती गांधी पर छोड़ने की बात कहने के बावजूद श्री गहलोत ने पद छोड़ने का कोई संकेत न देकर अनिश्चितता बनाये रखी है । श्रीमती गांधी ने उन्हें मिलने के लिए दिन भर जिस तरह से इंतजार करवाया उससे उनको निश्चित रूप से नीचा देखना पड़ा । लेकिन श्री पायलट को भी श्रीमती गांधी की तरफ से कोई आश्वासन मिलने के संकेत नहीं आये । श्री गहलोत ने माफीनामे रूपी चाल से अपनी गद्दी बचाने का जो प्रयास किया वह कितना कारगर होगा ये फ़िलहाल स्पष्ट नहीं है । लेकिन उनको गांधी परिवार की नजरों में गिरने का एहसास हो गया है क्योंकि कहाँ तो उनको पार्टी का मुखिया बनाया जा रहा था और कहाँ श्रीमती गांधी ने उन्हें मिलने का समय देने में 12 घंटे लगाये । ये भी हो सकता है कि अध्यक्ष का चुनाव होने तक गांधी परिवार राजस्थान में यथास्थिति बनाये रखे ताकि गहलोत खेमा गड़बड़ न कर पाए । लेकिन आनंद शर्मा का गत दिवस दिल्ली में उनसे मिलना नयी पटकथा का आधार बन सकता है । इसी के साथ ये खबर भी आ गई कि दिग्विजय सिंह की बजाय गांधी परिवार ने मल्लिकार्जुन खडगे पर दांव लगाने की सोची है क्योंकि श्री सिंह अपने विवादस्पद बयानों के कारण पार्टी को मुसीबत में डालते रहे हैं । और कल तक जोर – शोर से मैदान में उतरने का हौसला दिखा रहे दिग्विजय आज श्री खडगे के प्रस्तावक बनने राजी हो गये । नामांकन का आज आखिरी दिन है । चूंकि शशि थरूर ने भी चुनाव लड़ने का पक्का इरादा जताया है इसलिए 8 अक्टूबर को नाम वापसी के बाद ही स्थिति साफ़ होगी । बहरहाल इस समूचे घटनाक्रम से कांग्रेस कितनी ताकतवर हुई ये तो समय बताएगा लेकिन गांधी परिवार की धाक को जबरदस्त धक्का पहुंचा है । एक तरफ तो राहुल गांधी आंतरिक लोकतंत्र लाने की बात करते हैं दूसरी तरफ उनका परिवार अपनी मर्जी के विरुद्ध एक बात भी सहने राजी नहीं है । राजस्थान में जो हुआ उसका ठीकरा कुछ विधायकों और मंत्रियों पर फूटे या श्री गहलोत पर परन्तु जिस तरह से केन्द्रीय पर्यवेक्षकों की उपेक्षा हुई वह सीधे – सीधे इस बात का संकेत थी कि प्रथम परिवार की अवहेलना करने वाली मानसिकता पार्टी में जड़ें जमा चुकी है । शायद यही सोचकर दिग्विजय से कहलवाया गया कि जो भी अध्यक्ष बने उसे गांधी परिवार के अधीन रहकर ही काम करना होगा । दरअसल कांग्रेस में आज जो आंतरिक खींचतान है वह सैद्धांतिक न होकर गांधी परिवार के वर्चस्व के प्रति उपजी असहमति का परिणाम है । जी 23 में शामिल नेताओं ने कभी भी पार्टी की नीतियों से नाराजगी नहीं जताई । उनकी मांग सदैव ये रही कि संगठन के विधिवत चुनाव कराये जावें । कांग्रेस कार्यसमिति में होने वाले मनोनयन पर भी उँगलियाँ उठती रही हैं । ऐसे में जब श्री गांधी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हों तब अध्यक्ष के चुनाव के समानांतर राजस्थान में पैदा हुआ राजनीतिक संकट केवल श्री गहलोत और श्री पायलट के बीच का शीतयुद्ध नहीं अपितु गांधी परिवार की पसंद को खुलकर नकारे जाने के दुस्साहस के तौर पर सामने आया है । गांधी परिवार से अध्यक्ष नहीं बनाने का राहुल का निर्णय वाकई लाभदायक होता लेकिन चुनाव शुरू होने के पहले ही जिस तरह की घटनाएँ घट गईं उनकी वजह से सारा किया धरा व्यर्थ हो रहा है । श्री गहलोत का अध्यक्ष बनना सुनिश्चित होने के बाद जिस तरह से बाजी पलटती जा रही है वह आज नहीं तो कल जी 23 के विस्तार के रूप में सामने आ सकती है । और यदि इस गुट की तरफ से कोई मैदान में उतरा तो बड़ी बात नहीं 1969 में हुए कांग्रेस विभाजन की कहानी फिर दोहराई जाए । संयोग ये है कि तब भी उसका कारण गांधी परिवार था और मौजूदा संकट भी उसी के इर्द – गिर्द मंडरा रहा है ।

    लेख़क 
रवीन्द्र वाजपेयी 
9425154295