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“सनातन का मूल : जनजातीय नवरात्र परंपरा”

जय माँ भगवती खेरदाई  

भारत का हृदय स्थल जबलपुर है, जहाँ जनजाति संस्कृति की आत्मा बसती है। यही वह नगर है जहां आज भी जनजातीय समाज हिंदू संस्कृति के ऐक्य भाव को समाहित कर माँ भगवती की उपासना करते हैं। पूजन पद्धति भले ही पृथक हो।

संपूर्ण भारत वर्ष में यही देखने को मिलता है। (श्रम साध्य शोध को प्रकाशित करने के लिए डाॅ. अजय खेमरिया जी के साथ समस्त स्वदेश समाचार पत्र परिवार का अनंत कोटि आभार) जबलपुर में माँ बड़ी खेरमाई (खेरदाई) मंदिर भानतलैया और मां बूढ़ी खेरमाई (खेरदाई) मंदिर चार खंबा में सैकड़ों वर्षों से गोंडवाना काल में स्थापित माँ भगवती खेरमाई की उपासना कर रहे हैं।

सनातन धर्म और संस्कृति शाश्वत है। दुनिया में विविध धर्म हैं, परन्तु शायद ही इनके अधिष्ठाताओं ने नारी को शक्ति के रुप अभिव्यक्त किया हो, वहीं दूसरी ओर जनजातीय अवधारणा – जय सेवा. जय बड़ा देव. जोहार. सेवा जोहार – का मूल – कोयापुनेम (मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता) में निहित है, जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” के रुप में भारतीय संस्कृति में शिरोधार्य है।

विश्व में भारत से ही जनजातीय समाज और संस्कृति का आरंभ हुआ। और उनके हमारे आदि देव फड़ापेन और भगवान् शिव एक ही हैं, अर्थात अद्वैत है। “शम्भू महादेव दूसरे शब्दों में शम्भू शेक (महादेव की 88 पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है – प्रथम… शंभू – मूला, द्वितीय – शंभू – गौरा और अंतिम शंभू – पार्वती) ही हैं” शंभू मादाव (अपभ्रंश – महादेव) ही हैं।

संपूर्ण भारत वर्ष में नवरात्र का उत्सव विविध रुपों में शक्ति की उपासना का सर्वोच्च पर्व है। नवरात्र पर्व में जनजातीय समाज की उपासना पद्धति हिन्दू संस्कृति के चित्रफलक में प्रकृति के विविध रंग भरती है। हमारा मूल एक ही है, इसलिए अपकारी शक्तियों द्वारा बाँटने का कुत्सित प्रयास कभी सफलीभूत नहीं होगी। पाश्चात्य विद्वानों और तथाकथित सेक्यूलरों द्वारा जनजातीय समाज में मूर्ति पूजा का निषेध बताना मूर्खता है क्योंकि मूर्तियां निर्गुण की उपासना का प्रतीक हैं।

गोंड समाज में खेरो माता, भील समाज में नवणी पूजा, कोरकू समाज में देव दशहरा, झारखंड में दसांय नृत्य से उपासना, म.प्र. के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में डूंगरी माता, गुजरात के जौनसार-बावर में अष्टमी पूजन, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में जइया पूजा, गुमला जिले में श्रीबड़ा दुर्गा मंदिर का पूजन प्रमाण हैं।

आदिशक्ति का सर्वव्यापीकरण विशेष कर महाकौशल, बुंदेलखंड और विंध्य में खेरमाई के रूप में हुआ है जो गोंडवाना में खेरदाई के रुप में शिरोधार्य है और जबलपुर के मंदिरों और अन्यत्र अधिष्ठानों में स्थापित खेरदाई की प्रतिमाएं नवरात्र पर्व में माँ भगवती के विविध स्वरूपों में पूजनीय हैं।

खेरमाई (खेरदाई) अपकारी शक्तियों से हमारी धरती के साथ सभी प्राणियों और वनस्पतियोंकी रक्षा करती हैं। जबलपुर में नवरात्र पर्व का यह अद्वैत भाव अद्भुत एवं अद्वितीय होने के साथ मार्गदर्शी भी है।

– डॉ. आनंद सिंह राणा