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केजरीवाल: व्यामोह में भटकती आत्माः 

हिन्दुत्व के घोर विरोधी दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने वोट बैंक की चाहत में अपने विचारों और कारनामों में भारी परिवर्तन कर लिया है – ऐसा प्रतीत होने लगा है। कभी राम के अस्तित्व को नकारने वाले, श्रीराम मंदिर के स्थान पर अस्पताल बनाने की बात करने के बाद अब भारतीय करेंसी में इन्डोनेशिया जैसे मुस्लिम राष्ट्र की तर्ज पर गणेश – श्री लक्ष्मी का चित्र छापने की माँग उठाकर अपने आपको हिन्दुत्व का कट्टर समर्थक सिद्ध करने के लिये प्रयास शुरू कर दिये हैं। इस हृदय – परिवर्तन का क्या अर्थ लगाया जाय?

अब केजरीवाल उसी राह पर चल पड़े दिखाई देते हैं, जिस राह पर भाजपा और श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कदम बढ़ाये थे। भाजपा कार्यकर्ता और नेता तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ही प्रेरणा लेते हुये जनसंघ और भाजपा के माध्यम से भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को सशक्त बनाने का शंखनाद प्रारम्भ से ही करते रहे हैं, इसके लिये उन्हें प्रारम्भिक अवस्था में तरह-तरह की परिस्थितियों-अपमान जनक अवसरों को झेलना पड़ा था, लेकिन उन्होंने अपने बढ़ते कदम न रोके, और न कोई रोक सका। वह तो अपना अटूट ध्येय लेकर अपने पथ पर डटे हुये हैं और दृढ़ता के साथ आगे भी डटे रहेंगे।

केजरीवाल चतुर-चालाक खिलाड़ी है, वोट पाने की लालच में कुछ भी कर सकता है। उसने देवी – देवताओं का चित्र छापने का दाँव केवल वोट लपकने के लिये फेंका है। अबतक उसके द्वारा फेके गये पाँसों का खेल देश भली – भाँति समझ चुका है। यह मुद्दा पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। अब तक की बयान बाजियों और आप पार्टी के कारनामों से यह तथ्य जगजाहिर हो चुका है कि केजरीवाल और उसकी पार्टी के अनेक नेता घोर हिन्दू-विरोधी हैं।  इस बार फिर उसने एक शिगूफा छोड़ा है। यह चुनावी स्टंट के अलावा और क्या हो सकता है? सब लोग समझने लगे हैं कि वह एक बड़ा ड्रामेबाज है। इतना ही नहीं वह विभाजन की एक दीवार खड़ी कर सिर्फ चुनाव जीतना चाहता है।

जमुना नदी की सफाई का मुद्दा उसकी घोषणा के बावजूद जहाँ का वहाँ पड़ा है। जमुना जी पहले से ज्यादा प्रदूषित हो चुकी हैं। यह भी वोट बैंक के लिये केजरीवाल की शाब्दिक मिसाईल है। मगर दिल के भीतर कुछ और फरेब चलता रहता है।

नोट बाथरूम में भी गिरेंगे और जमीन व सड़कों पर भी। क्या ये पैरों के नीचे पड़ने से बचाये जा सकेंगे? देवी – देवताओं के चित्र पत्र पत्रिकाओं में अन्य स्थानों पर पर्चों आदि में छापे जाकर जब दुरूपयोग होता है, तब क्या हिन्दु मान्यताओं को ठेस नहीं पहुंचती – इस बात पर अक्सर राजनेता ध्यान नहीं देते? उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ होता है, किसी भी तरह वोट बटोरना। कितना घिनौना परिणाम आने वाला है, इसे जाने बिना दिया जा रहा यह बयान बाजी वाला प्रस्ताव? एक पढ़े लिखे व्यक्ति की निहित स्वार्थों भरी सोच पर अभी घूस, जुआ, सट्टे आदि जैसे दुष्कर्मां में हो रहे करेंसी के दुरूपयोग की चर्चा नहीं की है। जो इन सबके अलावा है।

इसी प्रकार का एक प्रस्ताव राज्यसभा में कभी एक बड़ी पार्टी रही, के नेता ने भी पेश किया था। मेरा अपना मानना है कि देवी-देवताओं की मूर्तियों का पूजन-अर्चन उचित स्थान मंदिर और घरों में ही पवित्रता के साथ हो सकता है। इस पवित्रता को साफ-सुथरेमन और सुकर्मों के द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है। देश की प्रगति भी सुकर्मों और अच्छी नीयत से दायित्वों का पालन करने से ही होगी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री की माँग उनके पूर्व में दिये बयानों को संदर्भ में लिये जाने पर कोरी बकवास और उनकी हिन्दू विरोधी शक्ल को छिपाने की नाकाम कोशिश के सिवाय कुछ नहीं है।

यह पूरी षाड़यांत्रिक योजना ध्यान भटकाने वाली है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डालर की तुलना में रूपया लगातार गिर रहा है। बहस और चर्चा का विषय देवी-देवताओं के चित्र छापने की बजाय इस विषय पर चिन्तन-मनन होना चाहिये कि अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक क्षेत्र में रूपये की स्थिति कैसे मजबूत हो। ताकि देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जा सके।

केजरीवाल की चतुराई, चालाकी और लोगों को वोटों की लालच में भ्रमित कर देने वाले बयान के पीछे यह षड़यंत्र छिपाकर रखा गया है कि वे क्या इतने पढ़े लिखे होने का दावा करने के बावजूद इस तथ्य से अवगत नहीं है कि भारत संविधान से चलता है, धर्म से नहीं। इसके पीछे की कुत्सित मानसिकता को समझा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने भी मुख्यमंत्री बनने पर संविधान की शपथ तो ली है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों के संदर्भ में यह हिन्दू कार्ड खेला जाना राजनीति को दूषित करने वाला दुष्कृत्य ही माना जाना चाहिये। अपनी राजनीति चमकाने और बहुसंख्यक समाज को अपनी ओर आकर्षित करना, वह भी भ्रम की स्थिति पैदा करते हुये – क्या उचित कहा जायेगा? जबकि यह देश धर्म-निरपेक्ष है।

आप पार्टी के नेता के ऐसे बयानों को मक्कारी पूर्ण ही कहा जाना चाहिये। ऐसा कृत्य अफसोस का भाव जगाने वाला है। भारत में न तो इस तरह की राजनीति को प्रश्रय मिलना चाहिये, न ही इसके लिये यह उचित समय है। जबकि देश चुनौतियों का सामना करते हुये प्रगति के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ रहा है। केजरीवाल का बयान छल, कपट से पूर्ण व अत्यन्त निन्दनीय है इस वास्तविक तथ्य से देश के हर नागरिक को अवगत होने की आवश्यकता है कि श्री मोदी के नेतृत्व में विश्व में भारत की लोकप्रियता और वर्चस्व बढ़ रहा है। इस स्थिति में केजरीवाल जैसे नेताओं की सतही राजनीति और जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिशें भारत की लोकप्रियता के लिये कलंक न साबित होने पाये।

लेख़क – डाॅ. किशन कछवाहा