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राष्ट्र नींव में विसर्जित गुमनाम पुष्प अर्जुन भारद्वाज

जरा याद इन्हें भी कर लो….

  • हटा के पिता पुत्र ने लड़ी थी आजादी की लड़ाई,
  • क्रांतिकारी दल में थे हटा के अर्जुन भारद्वाज 6 माह जेल रहे बंद
  • हटा का क्रांतिकारी परिवार गुमनामी ने भारत सरकार को गोला बारूद खरीदने दान किया- “ढाई किलो सोना”

देश की आजादी की लड़ाई में बहुत से क्रांतिकारियों के नाम तो हम जानते हैं। लेकिन कई ऐसी शख्सियत आज भी गुमनाम हैं। जिन्हें समय के साथ या तो हमने भुला दिया या फिर राजनीतिक महत्वकांक्षी नेता उनकी पहचान को लील गए। वर्तमान परिदृश्य में समाज के बीच में नकली समाजसेवियों की कतार लगी हुई है। कुछ सफेदपोश स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर कलेक्टर से सम्मानित भी हो जाते हैं।

हम खोजकर लाएं हैं दमोह जिले में हटा के ऐसे क्रांतिकारी परिवार को जिनका क्रांतिकारी दल की गतिविधियों में अहम योगदान रहा। ये कहानी है स्वर्गीय पंडित अर्जुन भारद्वाज उपाख्य अर्जुन राय बहादुर और उनके पुत्र स्वर्गीय भगवान दास शर्मा उपाख्य लम्पुराव साहब की। दोनों पिता पुत्र ने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ झोंक दिया।

पहले बात करते हैं 1860 में जन्में स्वर्गीय अर्जुन भारद्वाज जी की। जिन्होंने स्वतंत्रता के समर में सम्पूर्ण हटा क्षेत्र की क्रांति की मशाल जलाए रखी।आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने के चलते क्रांतिकारी गतिविधियों को हर प्रकार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष व आर्थिक सहयोग करते रहते थे। स्वर्गीय अर्जुन जी जबलपुर के क्रांतिकारी दल के सक्रिय सदस्य थे जिस के संबंध में उन्हें कई पत्राचार भी दल के द्वारा हुए हैं। जो आज भी सुरक्षित हैं।

1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के चलते  पूरे देश में आक्रोश का माहौल था और क्रांतिकारी दल ने भी कुछ बड़ा धमाका करने की योजना बनाई थी जिस के संबंध में अर्जुन भरद्वाज को इसी अक्टूबर माह में आज से 103 साल पहले पत्र लिखकर टाउनहॉल बुलाया गया था। नवंबर माह में क्रांतिकारी गतिविधि की बैठक में भाग लेते समय जबलपुर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 6 माह तक कारावास में रखा गया।

1920 की शुरुआत में  बाद स्पेनिश फ्लू महामारी के रूप में प्रवेश कर चुका था। जब महामारी और भुखमरी का दौर मध्यप्रदेश में चरम पर था। जेल से बाहर आते ही महामारी के चलते समाज की सेवा में लग गए। उस समय अर्जुन राव साहब ने अपनी निजी खेती का अनाज तक आसपास के 100 से ज्यादा गांवों में बांट दिया। पंडित जी ने वंचित और पीड़ित परिवारों के लिए भोजन कपड़ा 6 माह तक लगातार मुहैया कराया। इसके अलावा उन्होंने अपनी फसल जमीन बेचकर तक दवाएं खरीदकर निशुल्क बांटी। जिससे 1926 ब्रिटिश सरकार ने प्रभावित होकर उन्हें रायबहादुर की उपाधि से भोपाल बुलाकर पुरस्कृत किया। जिसका प्रमाण पत्र आज भी हटा के शर्मा परिवार के पास सुरक्षित है।

लेकिन क्रांतिकारी दल से उनके संबंध के चलते कई बार अंग्रेज सरकार ने उन्हें प्रताड़ित भी किया और 1935 में पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके घर से ले गई और गिरफ्तारी के 3 दिनों बाद बनगांव के कुँए से उनका शव बरामद किया गया था।

ढाई किलो सोना दिया था दान –

पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उनके पुत्र भगवानदास शर्मा उपाख्य लम्पु राव ने भी स्वतंत्रता के कई आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। देश आजाद होने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध में भारत के आर्थिक हालात कमजोर हो रहे थे। जिसमें भगवानदास शर्मा जी ने अपने खानदान का पूरा सोना भारत सरकार को दान तक कर दिया था।जिसकी वर्तमान कीमत ढाई करोड़ से ज्यादा होगी।

खानदानी सन्दूक से निकले क्रांतिकारी होने के प्रमाण –

हटा में इन क्रांतिकारियों के वंशज मनीष पुष्पराज शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि उनके दादा और परदादा दमोह से स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा अग्रणी भूमिका में रहे हैं। मनीष ने अपनी दादी से बहुत सी घटनाएं सुनी जिनके प्रमाण खोजने अपने खानदानी सन्दूक को खोला तो उन्हें बहुत से क्रांतिकारियों की चिठ्ठियाँ और प्रमाण पत्र मिले। मनीष के अनुसार राय बहादुर जी को ऊपर से आंदोलन से संबंधित जानकारी आती थी। जिसे वे निचले स्तर तक कई गोपनीय बैठकों के द्वारा फैलाते थे। साथ ही ऊपर के क्रांतिकारियों द्वारा जो कार्य दिए जाते थे उनको पूरा करवाते थे। इनका जुड़ाव जबलपुर के क्रांतिकारी दल से था और हमेशा टाउनहाल जबलपुर में इनका आना जाना रहता था। इनको चिठियां भी जबलपुर से आती थी। इनके लिए अंग्रेज सिपाहियों के द्वारा कई बार प्रताड़ित भी किया गया।

सन 1920-21 में भुखमरी एवं महामारी के समय अर्जुन भारद्वाज ने स्वयं खर्चे पर सैकड़ों गाँव के लिए महीनों तक दवाई, खाना, एवं कपड़ो की पूर्ति की गई जिसके लिए इनको भोपाल स्टे्ट के द्वारा राव बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया गया जिसका प्रमाण पत्र इनको 1926 में मिला।

1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध मे भारत सरकार के आह्वान पर इनके ही बेटे भगवानदास उर्फ लंपु राव साहब ने भारत सरकार को 2.5 किलो ग्राम सोना दान किया। जिसके लिए तत्कालीन कलेक्टर दमोह  एम.पी. कोनहार 15 अगस्त 1966 को दादाजी प्रशस्ति पत्र से सम्मानित भी किया।

लेख़क – दिनेश चौबे
8085266265