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कैंसे स्वीकार करें? सुभाष बाबू कि आज आपका महा बलिदान दिवस है

क्या आप विमान हादसे में ? या किसी गहरी साजिश का शिकार हुए ? क्या आपकी आजाद हिंद सेना से सभी थर्रा गये थे ? इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने क्यों स्वीकार किया था कि हमारा भारत छोड़ने का प्रमुख कारण आजाद हिंद सेना थी?

आजाद हिंद सेना के कारण ब्रिटिश भारत की सेनाओं में विद्रोह के स्वर क्यों गूंजने लगे थे? सच तो ये है कि महात्मा गाँधी के आंदोलनों की असफलता से लोग विशेषकर युवा ऊब गये थे और वो अब सुभाष बाबू के साथ जाना चाहते थे. शेष प्रश्नों के उत्तर आप समझ ही गये होंगे.

परंतु आज उनके तथाकथित बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन करते हुए जबलपुर में उनके सर्वशक्तिमान स्वरुप की स्वर्णिम यादें इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत की ओर से प्रस्तुत कर रहा हूँ क्यों था त्रिपुरी अधिवेशन 1939 (जबलपुर) इतिहास का भूकंप? आईये जानते हैं

नई दुनिया समाचार पत्र के साथ एक शोध आलेख के आलोक में इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत की ओर से तत्कालीन विश्व की राजनीति का सबसे घातक बयान था “पट्टाभि की हार मेरी (व्यक्तिगत) हार है”

महात्मा गाँधी, गाँधी जी जान गये थे की देश की युवा पीढ़ी और नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस के हाथ में चला गया है अब क्या किया जाए? इसलिए उक्त कूटनीतिक बयान दिया गया. अब त्रिपुरी काँग्रेस अधिवेशन में पट्टाभि की हार को गाँधी जी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था..

इसलिए कांग्रेस की कार्य समितियों ने सुभाष चंद्र बोस के साथ असहयोग किया (यह अलोकतांत्रिक था परंतु गांधी जी का समर्थन था और यही तानाशाही भी) साथ ही सुभाष बाबू को गांधी जी के निर्देश पर काम करने के लिए कहा गया, जबकि अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस थे।

सुभाष बाबू का विचार था कि अब अंग्रेजों को छ: माह का अल्टीमेटम दिया जाए कि वो भारत छोड़ दें. इस बात पर गांधी जी और उनके समर्थकों के हांथ – पांव फूल गए, उधर अंग्रेजों भी भारी तनाव में आ गए और अंग्रेजों ने गांधी जी और कांग्रेस पर दवाब डाला की सुभाष बाबू का असहयोग किया जाए. इसलिए एक गहरी साजिश के चलते सुभाष बाबू का विरोध किया गया और अंतत: सुभाष बाबू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

सुभाष बाबू ने कहा था कि द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होने वाला इसलिए यही सही समय है जब अंग्रेजों से आरपार की बात की जाए परंतु गांधी जी और उनके तथाकथित चेलों ने विरोध किया. सच तो ये है कि सुभाष बाबू की बात मान ली गई होती तो देश 7 वर्ष पहले 1939 में ही आजाद हो जाता और विभाजन की विभीषिका नहीं देखनी पड़ती. इस्तीफे के बाद भी सुभाष बाबू चरमोत्कर्ष हुआ, उन्होंने 60 हजार योद्धाओं के साथ आजाद हिंद सेना का निर्माण किया और भारत की ओर कूच किया जिसके दवाब में अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए बाध्य हुए.

लेखक:- डॉ. आनंद सिंह राणा