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विपक्ष ने लोकतंत्र की गरिमा को कलंकित किया

विगत दिनों संसद में जो कुछ हुआ, वह अत्यन्त शर्मसार एवं लोकतंत्र को कलंकित कर देने वाला कृत्य था। यदि ऐसा किसी योजनाबद्ध या सोची समझी साजिश के तहत किया गया तो यह और भी गम्भीर मामला है।

प्रश्न यह उठता है कि क्या जनता और जनप्रतिनिधियों द्वारा चुने गये सांसदों को देश के प्रजातंत्र की गरिमा, शुचिता, पवित्रता और देश की मर्यादा और संस्कृति की तनिक भी परवाह नहीं है। स्पष्ट है कि सदनों में ऐसी स्वेच्छाचरिता के चलते सार्थक और जनहित के कार्य आनुपातिक दृष्टि से बहुत कम संख्या में सम्पन्न हो पाते हैं और लोकतंत्र का मखौल उड़ाया जा रहा है।

अब प्रश्न यह उठने लगा है कि क्या विपक्ष अपने इस साजिशन इरादों के तहत देश के राजनैतिक, सामाजिक, सांवैधानिक, कानूनी और चुनावी ढाँचे को तोड़फोड़, चीरफाड़ और हंगामें की स्थिति पैदा कर समाप्त कर देने की मंशा पाले हुये हैं। ऐसे विपक्ष को निश्चय ही हमारा देश कभी पसन्द नहीं करेगा जो सदन में अवरोध उत्पन्न करने वाले एजेन्डे पर ही हमेशा सक्रिय रहता हो और जिसे राष्ट्रीय हितों में तनिक भी रूचि न हो।

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सदन में जो कुछ हुआ, वह कतिपय सदस्यों के हठीले, क्रूर और अविवेक पूर्ण व्यवहार का परिचायक तो था ही। पहले दिन ही नये मंत्रियों का परिचय देने के लिये अनुरोध किया गया था, जो मान्य परम्परा भी रही है, उस समय भी जानबूझ कर हंगामा किया गया।

इस तरह की हरकतों एवं असामान्य आचरण हीनता पर आँखें नहीं मूंदी जा सकती। यह सरासर जनहित और राष्ट्र के लोकतंत्र के खिलाफ मर्यादा हनन का मामला है। साथ ही अत्यधिक निन्दनीय भी। राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल की टेबिल पर रूलबुक का फेंका जाना, उस पर चढ़कर नाचना और नारे लगाना – उस टेबिल को नाचने और नारे लगाने का स्थल तो नहीं बनाया जाना चाहिये। वीडियों बनाना, वहाँ धक्का-मुक्की करना, शीशे तोड़ना, दरवाजे तोड़ना, सुरक्षा के लिये लगाये गये मार्शलों के साथ बदसलूकी करना, महिला मार्शल की गर्दन दबाने जैसी  क्रूरता पूर्ण हरकतें करना, इस तरह के अनेकानेक अमर्यादित व्यवहार सांसद कहे जाने वाले शख्सों द्वारा अंजाम दिये गये।

ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा संसद की कार्यवाही शांतिपूर्वक चलाये जाने को लेकर पहल न की गयी हो। बार-बार सर्वदलीय बैठकों के जरिये, विचार विमर्श के माध्यम से समस्याओं का हल निकालने का अनुरोध भी सरकार द्वारा किया गया था, किया जाता रहा है। लेकिन विपक्ष का रवैया हठपूर्ण ही बना रहा।

सांसदों की एक मर्यादा होती है, विरोध का एक तरीका होता है। प्रश्न उठाने के लिये अपनी बात कहने की एक नियमावलि भी बनी हुयी है। विरोध करने का तात्पर्य उपद्रव या हंगामा करने से तो कतई नहीं होना चाहिए। मेगासस मामले में जब सम्बंधित मंत्री जी बयान देने खड़े हुये तब भी उनके हाथ से कागज छीनकर फाड़ डाला गया। इतना ही नहीं सदन में फटे कागज उछाले गये।

लोकतंत्र का मंदिर कलंकित हुआ है। विपक्ष का एजेंडा साफ प्रतीत होता है। उसकी हताशा छिपाये, छिप नहीं रही है। वह देशभर में अराजकतापूर्ण माहौल बनाना चाहता है। संसद में गतिरोध उत्पन्न करना उसी साजिश का एक हिस्सा हो सकता है।

लोकसभा में भी और राज्यसभा में भी भारी हंगामा हुआ। जिसके कारण संसद सत्र को, जो 13 अगस्त तक चलने वाला था, बीच में ही अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर देने का निर्णय लेने मजबूर होना पड़ा।

राज्यसभा के काँग्रेसी सांसद प्रतापसिंह बाधवा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह सहित सांसदों ने सभापति की आसंदी के सामने हंगामा शुरू कर दिया और नारेबाजी की। कुछ कागज फाड़कर फेंके, रूलबुक को जो भारी वजनदार होती है, उपस्थिति अधिकारियों की ओर फेंकी गयी। परिदृश्य इतना कठिन और गैर जिम्मेदाराना था, नियंत्रण के बाहर हो गया, प्रतीत हो रहा था। तब 50 मार्शलों द्वारा सुरक्षा घेरा बनाया गया ताकि सभापति को सुरक्षा मिल सके। धक्का-मुक्की हुयी मार्शलों के साथ भी। राज्यसभा में संसदीय मर्यादाओं को बेरहमी के साथ उल्लंघन हुआ।

आम आदमी पार्टी के सांसद ने तो प्रजातंत्र के मान्य सिद्धान्तों को न केवल उल्लंघन किया वरन् टेबिल पर चढ़कर जोर- जोर से नारे भी लगाये। महिला मार्शन के साथ किये गये दुव्र्यवहार को वीडियों में स्पष्टदेखा जा सकता है।

इस कृत्य और आचरण के बावजूद काँग्रेसी सांसद बाजवा ने अपने कृत्य पर सदन में अफसोस व्यक्त न करके अपनी बेशर्मी की पराकाष्ठा कर दी यह संसदीय इतिहास का अत्यन्त शर्मनाक दृश्य था।

इन तमाम निन्दनीय वारदातों को अंजाम दिये जाने के बाद विपक्ष का यह रोदन भी अत्यधिक शर्मनाक और आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया देने वाला बन जाता है, जब यह कहा गया कि सरकार ने, स्पीकर ने सदन क्यों नही चलने दिया? विपक्ष द्वारा किये गये दृष्कृत्यों का जो वीडियो सामने आया है, उसने हकीकत को पूरी तरह उजागर कर दिया है, शंका- आशंकाओं का कोई गुंजाइश बकाया नहीं रह गयी है। एैसी-एैसी ओछी हरकतें सामने आ गयी हैं, जिन्हें देखकर शरमदार को चुल्लू भर पानी में डूब मरने का ख्याल उठ सकता है। जैसी बेशर्मी पूर्ण हरकतें वीडियो में नजर आ रही है, वे लोकतंत्र के लिये घिनौनी और कलंकित कर देने वाली हैं। शालीनता की पराकाष्ठा पार कर दी गयी है – ऐसा कहा जाय तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।

लोकसभा अध्यक्ष ने सदन में कहा कि विपक्षी सदस्यों का ऐसा व्यवहार और कृत्य अत्यन्त दुःखदायी और पीड़ा जनक है।

विपक्ष भले ही अपनी पीठ थपथपाये कि उसने हंगामा करने से सरकार के जनोपयोगी कार्यों पर रोक लगाने में सफलता प्राप्त कर ली है। लेकिन इसे नकारा नहीं जा सकता। ये कृत्य देश विरोधी एवं ओछी मानसिकता के परिचायक आज भी माने जा रहे हैं, और आने वाले कल भी  माने जायेंगे। ये शर्मसार और कलंकित कने वाले कृत्य है।

इस हंगामें के कारण देश की जनता तक सीधे-सीधे यह संदेश पहुंच चुका है कि विपक्ष द्वारा संसद के कीमती समय और संसद का कामकाज चलाने के लिये खर्च किये जाने वाले जनता के भारी-भरकम धन का बुरी तरह से दुरूपयोग हुआ है।

तथ्यात्मक कर्तव्य को पूरी तरह से भुला दिया गया है। विपक्ष का दायित्व है कि वह सरकार के राष्ट्र हितैषी कार्यों में अपना रचनात्मक सहयोग प्रदान करें, न कि अवरोध उत्पन्न करें। इस वास्तविक और मौलिक तथ्य की भी गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के कारण अवहेलना हुयी है।

इस सत्र की दुर्गति को देखकर राज्य सभा अध्यक्ष वैंकैया नायडू अपनी भावुकता को रोक नही सके। उन्होंने अत्यन्त दुःखी मन से विपक्षी सांसदों के बर्ताव की निन्दा की और कहा कि ऐसे असंवेदनशील व्यवहार से ‘‘मैं बहुत दुःखी हूँ, इससे सदन की गरिमा को भी गहरा आघात पहुँचा है, मैं पूरी रात सो भी नहीं सका।’’

ऐसे सांसदों के दुराग्रहपूर्ण रवैये के कारण वर्तमान सत्र एक दिन भी शांति से नहीं चल सका। अनावश्यक मामला उछालकर अवरोध खड़ा करने  की कोशिश न की हो। बार-बार सर्वदलीय बैठकें बुलायी गयीं। सर्वसहमति का माहौल बनाने की कोशिशें भी की गयीं लेकिन हंगामा खड़ा करने वाले सांसद शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से बहस क्यों नहीं करना चाहते? बहस करने से क्यों बचना चाहते हैं?

इस वर्ष देश स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह (अमृत महोत्सव) मनाने बृहत स्तर पर तैयारी कर रहा है, ऐसे समय जनजन की आस्था के देवालय की देहरी पर कैसा शर्मनाक वातावरण निर्मित किया जा रहा है – यह चिन्तनीय विषय है। इसके पीछे उद्देश्य क्या है? संसद में हंगामा खड़ा करके ये सांसद देश को और दुनिया को क्या संदेश देना चाहते हैं?

ये सवाल अब तो जनता पूछेगी ही कि क्या इन्हें कागज फाड़कर आसन्दी की तरफ फेंकने, फाईलें अध्यक्ष की ओर फेंकने, टेबिल पर चढ़कर नारे लगाने, चेयरमेन के पेनल, टेबिलस्टाफ और सेक्रेटरी जनरल, महिला सुरक्षा कर्मी पर हमला करने जैसा सर्कस दिखाने संसद में भेजा गया है या जनता की आवाज उठाने के लिये भेजा है आखिर ये सांसद संसद में जाकर करते क्या हैं?

ऐसे तमाम कृत्यों की सार्वजनकि रूप से निंदा होनी ही चाहिये। इन्हें संसदीय नियमावलि के तहत दंडित भी किया जाना चाहिये। 130 साल पुरानी पार्टी जिसके सिकुड़ते-सिकुड़ते बुरे हाल हो चुके हैं, उसे तो इन तमाम बातों से सबक लेना चाहिए। कभी उसके नेता घुसपैठियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं, कभी आतंकियों के और कभी ‘‘देश के टुकड़े-टुकड़े’’  करने के मंसूबा पाल रखने वालों  के पक्ष में – आखिर इस दल को इसके नेता किस ओर ले जाना चाहते हैं? इस ओर भी आम लोगों को ध्यान देना चाहिये।

पत्रवार्ता के माध्यम इन तमाम घटनाओं का ब्यौरा देते हुये मंत्रियों ने राजसभा अध्यक्ष से हुड़दंग और सदन की मर्यादा का उल्लंघन करने वाले सांसदों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करने की माँग की है।

लेखक – डॉ. किशन कछवाहा