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कोरोना महामारी से जूझने सामूहिक इच्छाशक्ति….

पूरा भारत महामारी का संकट झेल रहा है। यह राजनीति का नहीं, इस संकट का मुकाबला करने के लिये राष्ट्रीय एक जुटता का परिचय देना चाहिये।

जिन लोगों ने सन् 2020 के अंत का कठिन समय का देखा है, वे स्मरण करें कि पहली छैः माही में ही सन् 2021 गलत साबित हो गया जितनी तेजी से महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया, उसने सँम्हलने का भी अवसर नहीं दिया। अतः राजनैतिक लाभ लेने के अवसर तो आगे और भी मिलेंगे।

यह समय इस महामारी से देश के नागरिकों को बचाने के लिये एक जुट होने में लगाया जाना चाहिये। इस सयम सभी सक्षम व्यक्तियों से आगे आकर सहयोग की अपेक्षा है। ऐसा प्रतिकूल समय में हमारे देश ने अतीत में भी अनेक अवसरों पर बेजोड़ एक जुटता का परिचय देकर आपात आयी भयंकर परिस्थितियों का मुकाबला किया है। इसका इतिहास साक्षी है।

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यह अत्यन्त दुःख दायी प्रसंग है कि कोरोना की विश्वविख्यात वैक्सीन कोविशील्ड बनाने वाली कम्पनी सीरम इन्स्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला ने आरोप लगाया है कि वैक्सीन को लेकर भारत के कई शक्तिशाली लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं। ब्रिटेन में ‘द टाईम्स’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि ‘‘सब कुछ मेरे कन्धे पर आ गया है।

मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता, मैं ऐसी हालत में नहीं रहना चाहता, जहाँ आप काम कर रहे हों और एक्स, वाई, जे़ड की मांगों की सप्लाई को पूरा नहीं कर सकें। यह भी पता नहीं हो कि वे आपके साथ क्या करने जा रहे हैं।’’ एक ओर दूसरी लहर से खतरा तो बढ़ा है लेकिन आशाजनक तत्य यह है कि महामारी के डर पर हौंसलों की जीत भी हुयी है।

महामारी के व्याप्त डर के बावजूद हमारे फ्रन्टलाईन वर्कर्स के समर्पण और हौसले में कमी नहीं आयी है, वे उसी हौसले और उत्साह के साथ अपने पावन कर्तव्य में जुटे हुये हैं, जिस तेजी से महामारी ने अपने पैर फैलाये हैं, उसका अंदाजा कोई भी नहीं लगा सकता था। ट्वीट करके या मुँह जुबानी बकवास करके कह देना आसान है।

ऐसे बकवासी घर से बाहर भी नहीं निकल रहे हैं। उन्हें मैदानी अनुभव है ही नहीं, बहुतेरे तो केवल खामियाँ गिना रहे हैं, आगे आकर संक्रमितों की मदद के लिये हाथ बढ़ाने का कष्ट करें तो हकीकत से दो-चार हुआ जा सकता है। देश के संसाधन और विदेशों से आ रही सामग्री आँख खोल देने के लिये पर्याप्त नहीं है?

यह समय राजनैतिक लाभ उठाने का कतई नहीं है। महामारी विकराल रूप धारण कर चुकी है। इसकी गम्भीरता को हर देशवासी को समझना चाहिये। इसकी जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति पर थोपी नहीं जा सकती। आज देश की आबादी 136 करोड़ के आसपास है। इस तथ्य से क्या कोई इंकार कर सकता है? इस महामारी के चलते हर प्रयास बौने साबित हो रहे हैं।

तारीफ किये जाने वाले प्रयास – इसी बीच जबलपुर शहर के नेताजी सुभाषचन्द्र बोस मेडिकल काॅलेज अस्पताल ने कोरोना मरीजों के लिये बीस बिस्तरों का टेंटनुमा एसी कोविड सेन्टर तैयार किया है जिसे इन्फलेटेबल स्ट्रक्चर मटेरियल से तैयार किया गया है जिसमें संक्रमितों को सभी सुविधायें उपलब्ध होंगी तथा इस वेंटिलेटर  युक्त इस वार्ड में आक्सीजन  भी वहीं तैयार होगी।

यह प्रदेश का पहला प्रयोग है। हवा भरते ही इसकी टेन्टनुमा आकृति आकार ले लेती है। इस चिकित्सा वार्ड की सामग्री एक ट्रक में आ जाती है, जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से ले जाया जा सकता है। इस सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकता कि कोरोना की यह दूसरी लहर चार गुना नुकसान दायक है।

लेकिन कतिपय मुंहबोलों की राजनैतिक कलाबाजी के कारण इस बीमारी की दहशत से आम आदमी में एक विशेष प्रकार का डर भर गया है, जिसके कारण हर छोटे छींक, खाँसी, बुखार के लक्षण को देखकर हड़बड़ा जाता है, और उसे या उसके परिवार को कुछ सूझता नहीं है। इस घबड़ाहट में अपनी जान दे देता है। इस जानलेवा भय को कम करने की इस समय बड़ी जरूरत है।

कोरोना संकट के दौरान लगातार आ रही नकारात्मक खबरों के बीच यह भी खबर है कि भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में लगातार दूसरे, तीसरे दिन भी स्वस्थ्य होने वालों की संख्या नयं संक्रमित होने वालों से ज्यादा है। संक्रमितों की भी संख्या क्रमशः कम होती जा रही है।

कोरोना संक्रमित मरीजों के मामले में हमारा देश शीर्ष स्थान पर पहुँच चुका है। इस आपदा की घड़ी में अमेरिका, रूस, इंग्लैण्ड आदि देशों में आक्सीजन, वैक्सीन, वेंटीलेटर व जीवन रक्षक दवायें मोदीजी की सक्रियता के परिणाम स्वरूप आना प्रारम्भ हो चुकी हैं।

यह उसी नीति का सुपरिणाम है कि भारत की विश्व के देशों को आपदा के समय अपने हाथ आगे बढ़ाता रहा है। साथ ही विदेशों से 6 करोड़ टीके मँगवाये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने भी केन्द्र सरकार से परामर्श करके मेडिकल आक्सीजन रेमडेसिविर इंजेक्शन आदि का इंतजाम तेजी से कर लिया है।

ये खबरें भी मिल रहीं हैं कि कतिपय देश विरोधी ताकतें व्यापारियों से साँठ-गाँठ कर दवाईयों एवं चिकित्सा सम्बंधी अन्यान्य साधनों की ब्लेक मार्केटिंग में जुटे हैं। जीवन रक्षक इंजेक्शनों की चोरी भी करायी जा रही है, पुलिस ने ऐसे कतिपय तत्वों को गिरफ्तार भी किया है।

मध्यप्रदेश में कोरोना कफ्र्यू का कड़ाई के साथ पालन कराया जा रहा है।

विश्व में कोरोना – विश्वभर में कोरोना महामारी का कहर बढ़ता ही जा रहा है। गत 24 घन्टों में विश्व में संक्रमितों की संख्या बढ़कर साढ़े नौ लाख के आस पास पहुंच चुकी है। कोरोना पीड़ितों का आँकड़ा बढ़कर 15 करोड़ के पार पहुंच गया है।

मजबूत राष्ट्रीय इच्छाशक्ति – आक्सीजन का कोई अभाव नही है हमारे देश में ही प्रतिदिन एक लाख टन आॅक्सीजन का उत्पादन होता है। गुजरात की एक कम्पनी ही अकेले इसके पाँचवें हिस्से का उत्पादन करती है। इसका परिवहन भारी, सुरक्षित टैंकरों के जरिये होता है, जिसमें प्रत्येक पर 45 लाख रूपये की लागत आती है।

सबसे बदतर बात तो यह है कि मात्र 300 रूपये के आक्सीजन को रखने वाले सिलेण्डर की कीमत 10,000 रूपये होती है। महामारी के समय पर आपूर्ति श्रृंखला दबाव का सामना नहीं कर सकी। दिल्ली का प्रत्येक अस्पताल इस खर्च को वहन कर सकता था, लेकिन कोई भी आॅक्सीजन संयत्र लगाने के लिये अपनी कीमती जगह आवंटित करने के लिये तैयार नहीं था।

आपदा के समय आक्सीजन र्वाध आपूर्ति के लिये योजना नहीं बनाई इस कारण आक्सीजन पूर्ति के लिये मुनाफाखोर सफल हो गये। पहले तो कांग्रेस सहित कतिपय अन्य विपक्षी नेताओं ने कोवैक्सीन के खिलाफ होहल्ला मचाकर भ्रम फैलाने की कोशिश की, लोगों के मन में संशय पैदा किया।

यदि ऐसा न होता तो वैक्सीनेशन की तादाद, काफी बढ़ गयी होती कम से कम दोगुनी तो हो ही गयी होती। अब वैक्सीनेशन की कमी, आक्सीजन की कमी का होहल्ला मचाया जा रहा है। आखिर कार इस पाप के भागीदार हैं कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला, शशि थथूर, मनीष तिवारी, जयराम रमेश और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव जैसे लोग जिम्मेदार हैं।

इसके अलावा कांगे्रस तथा विपक्ष की पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल, पश्चिम बंगाल और झारखण्ड सरकारों ने टीकों के बारे में लोगों के मन मे संदेह पैदा करने में निन्दनीय भूमिका अदा की जिसके कारण लोगों में टीके के प्रति झिझक पैदा हुयी।

दिल्ली में आक्सीजन की कमी से हुयी मौतों के लिये दिल्ली की सरकार जिम्मेदार रही जिसने भावनात्मक रूप से इतना प्रभावित किया कि सारे तथ्य फीके पड़ गये। जबकि आक्सीजन तो जाने के लिये परिवहन व्यवस्था करने में ही दिल्ली सरकार नाकारा साबित हो चुकी थी।

यह तथ्य सही नहीं हे कि अचानक कोरोना महामारी के चलते कोरोना का टीका बना लेने वाली सरकार ने संसाधन जुटाने में कोई तैयारी नहीं की थी? केन्द्र सरकार लगातार राज्यों से व्यवस्था बनाये रखने के प्रयास में जुटी रही, लेकिन संकट के समय भी दूषित राजनीति और कारपोरेट अस्पताओं ने तथ्य से परे जाकर भ्रम को नागरिकों तक परोसने का काम किया।

इस तमाम बन गयी स्थितियों का मुकाबला करने के लिये सामूहिक राष्ट्रीय इच्छाशक्ति की जरूरत है जिसका उदाहरण भारत ने पहले भी आपदाओं के आने पर प्रस्तुत किया है। अब भी भारत किसी भी आपदा से जूझने में सक्षम है। ऐसा भरोसा है।

रूसी वैक्सीन भारत पहुँची – रूसी वैक्सीन ‘स्पुटनिक-वी’ की पहली खेप भारत पहुंच चुकी है। इसमें 15 लाख डोज हैं। यह भारत के लिये कोरोना से लड़ने तीसरा सशक्त हथियार है।
भारत में वैक्सीनेशन का तीसरा चरण भी प्रारम्भ हो चुका है।

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विपक्षी राजनैतिक दलों के कतिपय नेताओं द्वारा कोरोना महामारी का जो भय का आतंक खड़ा कर दिया गया है, उसके परिणामस्वरूप डर का भयानक मंजर, बढ़ते मरीज, बीमारी मामूली लक्षण दिखते ही अस्पताल की चिन्ता, और अस्पताल पहुंचते ही चिकित्सकों के मानसिक दबाव ने कोरोना के मामूली मरीजों को भी गम्भीर स्थिति में पहुंचा दिया है।

कोरोना का प्राथमिक उपचार वुनिश्चित दवाईयों द्वारा स्थितियाँ सम्भल जाती हैं। लेकिन इस डर ने जेहन में स्थान बना लिया है, जिसके परिणामस्वरूप कोरोना का विकराल रूप दिखाई देने लगता है। जैसे ही अस्पताल में सुविधायें मिलती हैं, वह वहाँ जाकर अपने को किसी भी हालत में सुरक्षित करने में जुट जाता है। इस स्थिति का फायदा मेडिकल माफिया उठा रहे हैं।

जिन्हें जरूरत भी नहीं है, उन्हें भी रेमडेसिविर से लेकर शक्तिशाली एन्टीबायोटिक डोज के लिये पर्ची (लिस्ट) थमा दी जाती है। इंजेक्शन ड्रिप, के साथ-साथ मरीजों को महंगी दवाईयों की ओर ढ़केल दिया जाता है। इन दवाईयों के साईड एफक्टस् से ही बीमारी गम्भीर लगने लगती है। यहीं से अस्पतालों का खेल शुरू हो जाता है। आखिर मरीज का परिवार करे तो क्या करे?

लेखक :- श्री किशन कछवाहा जी
संपर्क सूत्र :- 9424744170