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गोंड याने कोयतुर, कोयतुर याने, पहाड़ों में रहने वाले योद्धा : लक्ष्मण सिंह मरकाम

“राजा संग्रामशाह से लेकर राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह तक सभी राजा, शिव भक्त, काली भक्त और नर्मदा भक्त थे। राजा संग्रामशाह और रानी दुर्गावती देश की स्वाधीनता के लिए मुगलों से लड़े तो राजा शंकरशाह और उनके बेटे कुँवर रघुनाथशाह ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। अंग्रेजों ने उन्हें तोप के मुँह पर बाँधकर मृत्युदंड दिया, और उसके बाद सैकड़ों लोगों को फाँसी पर चढ़ाया। इन बलिदानियों में सभी वर्णों के लोग थे। रानी दुर्गावती का साम्राज्य कोयतुर साम्राज्य कहलाता था, जिसे विदेशियों ने गोंड नाम से पुकारा” उक्त आशय के विचार विचारक, लेखक लक्ष्मण सिंह मरकाम ने कल्चरल स्ट्रीट सभागार में रानी दुर्गावती सेवा न्यास द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने कहा “आज भ्रम फैलाया जा रहा है कि गोंड हिंदू नहीं हैं। शिव भक्त, काली भक्त राजा शंकरशाह हिंदू कैसे नहीं हैं, माता दुर्गा और भगवान गणेश की आराधना करने वाले करोड़ों गोंड और जनजातीय बंधु हिंदू कैसे नहीं हैं?” कार्यक्रम राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथशाह के बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित किया गया था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मश्री अर्जुन धुर्वे ने अपने उद्बोधन में बड़ादेव के गीत की पंक्तियाँ गाई।

“शारदा मैया, गौर गण, रामायण सुमिरो रे..” इन पंक्तियों को सब श्रोताओं ने तालियों के साथ दुहराया। वरिष्ठ शिशु रोग विशेष डॉ. प्रदीप दुबे और न्यास के अध्यक्ष असाढूलाल उइके ने कोइतूर साम्राज्य की जनकल्याणकारी परम्पराओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम के गायन से हुआ। इस अवसर पर हॉल श्रोताओं से भरा था।