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“भगवान् श्रीगणेश के आशीर्वाद से हुआ स्वाधीनता संग्राम में स्व का उत्कर्ष”

“ॐ गं गणपतये नम:”

सत्य सनातन धर्म में भगवान श्रीगणेश का आध्यात्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व अद्भुत एवं अद्वितीय है। सनातन धर्म में मांगलिक कार्यों की शुरुआत ही श्रीगणेश की पूजा से होती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश जी का प्राकट्य सतयुग में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि, स्वाति नक्षत्र, अभिजीत महोश्वर और सिंह लग्न के अनुसार दोपहर के प्रहर में हुआ था। सौभाग्य का विषय है, कि सन् 2023 में सतयुग जंसा गणपति स्थापना का शुभ उत्सव बनाया गया है। गजकेसरी सहित 4 शुभ योग बने हैं, गणेश जी के साथ ही मंगलवार का संयोग भी बनता है। श्रीगणेश स्थापना पर शश, गजकेसरी, अमला और प्रमुख नाम के राजयोग संयोजन चतुर्महायोग बन रहे हैं। ऐसा ही संयोग सतयुग में बना था जब विनायक का अवतरण हुआ था। सतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मृगेश्वर, द्वापर में गजानन और कलयुग में भगवान कल्कि के साथ श्रीगणेश का प्राकट्य धूम्रवर्ण और शूर्पकर्ण के रूप में होगा। जबलपुर में स्थित सुप्तेश्वर गणेश मंदिर इसका प्रमाण है। श्रीगणेश बुद्धि के देवता और विघ्नहर्ता के रूप सनातन धर्म में शिरोधार्य हैं।

भारतवर्ष और सनातनियों पर जब – जब संकटों के कृष्ण मेघ छाये तब – तब भगवान किसी न किसी रूप में संकटमोचक के रूप में आये। मध्य काल में मुस्लिम धर्मावलंबियों के विरुद्ध श्रीराम और श्रीकृष्ण आध्यात्मिक शक्ति के रूप में संकटमोचक बने तो हर हर महादेव का स्वर युद्धघोष बनाया। वहीं आधुनिक युग में जब स्वतंत्रता दिवस के विरोध में बरतानिया सरकार ने अपनी उत्कर्ष और स्व रक्षा के लिए श्रीगणेश आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बिंदु बनाया। भगवान श्रीगणेश की प्रेरणा से ही स्व के आलोक में लोकमान्य तिलक जी का नारा “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” उद्भूत हुआ था। इसलिए श्रीगणेश

स्वतंत्रता संग्राम के अमर महानायक, राष्ट्रीय एकता सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं।

हालाँकि अनादि काल भगवान गणेश की पूजा की शुरुआत हो रही है लेकिन सातवाहनों, राष्ट्र कूटों, चालुक्यों के काल से सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव के प्रमाण मिलते हैं।

छत्रपति शिवाजी महाराज की माताश्री जीजाबाई ने पुणे में गणपति की स्थापना कर लोक भाईचारे की स्थापना की। पेशवा युग गणेशोत्सव महोत्सव से मनाया जाने लगा लेकिन भद्र परिवार तक सीमित रहा। वहीं आगे की ओर बरटानिया सरकार ने व्यापारियों के त्योहारों को सार्वजनिक रूप से मनाए जाने पर रोक लगा दी। मूल रूप से लोकमान्य तिलक सर ने स्वतंत्रता संग्राम को व्यापक रूप देने के लिए, राष्ट्रीय एकता की स्थापना की और सामाजिक समरसता के सिद्धांत में जाट-पंत और स्वतंत्रता संग्राम को समाप्त करने के लिए गणेशोत्सव के वृहत् स्तर पर लोकसहयोग किया। जन-जन तकलांचना चाहते थे। एतदर्थ उन्हें एक सार्वजनिक मंच की आवश्यकता थी, मूलतः उन्होंने गणपति उत्सव को चुना और आगे बढ़ाया। तिलक जी ने गणेश उत्सव के बाद शिवाजी के नाम पर भी लोगों को संयुक्त रूप से तिलक लगाकर गणेश उत्सव से गजानन राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना दिया।

लोकमान्य तिलक के कर कमलों से श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई की स्थापना हुई। स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए अनेकों महाविद्यालयों को एकजुट किया गया। क्रांतिकारियों को संरक्षण दिया गया।

अविलंब ही इसका व्यापक विस्तार हुआ। पूरे भारत में सभी ब्रांड के लोग गणेशोत्सव में शामिल हुए। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में कवि गोविंद ने गणेशोत्सव के समय राष्ट्रीयता से ओटप्रोत का वोग सम्मिलित किया जिसमें “पोवाडे” कहा गया था। गणेशोत्सव के समय लोकमान्य तिलक जी, मठाधीश सुभाष चंद्र बोस, पं. मदन मोहन मालदीव, विनायक दामोदर वीर सावरकर जी लगातार श्रद्धांजलि अर्पित करते थे और अपने भाषणों में आजादी की लड़ाई और राष्ट्रीय एकता के अलख जागते थे।

हालाँकि जबलपुर में भी 1893 में सेठोत्सव में गणेश स्थापना हुई थी, लेकिन लोकमान्य तिलक जी 1916 में पहली बार और उनके बाद 1917 में जबलपुर में भी सार्वजनिक रूप से भालदारपुरा में मराठी समाज के साथ मिलकर सभी ने सामूहिक गणपति जाने की पारंपरिक शुरुआत की। जो अब महाराष्ट्र विद्यालय में पारंपरिक चल रही है।

पुणे के ग्राम देवता अर्थात कस्बा पेठ गणपति, स्वाधीनता पूर्व काल पूर्णता में जनमानस में राष्ट्र की भावना जागृति के उद्देश्य से मेलों और सभाओं का आयोजन किया गया था।

सन् 1901 में स्थापित तुलसी बाग़ गणपति, गणेशोत्सव मंडल के कार्यकर्ता पुणे के क्रांतिकारी की गुप्त सभाओं में सहभागी होते थे।

सन् 1928 में गणेश गली, लालबाग सार्वजनिक उत्सव मंडल की स्थापना हुई। सन् 1945 में अद्भुत एवं अनोखी हुनकी प्रस्तुत की गई, जिसमें रथ में स्वतंत्रता के सूर्योदय का रथ चल रहा है और रथ में श्रीगणेश भंडार हैं। यह हुंकार इतना लोकप्रिय हुआ कि 10 दिन की जगह पर 45 दिन बाद गणेश जी का विसर्जन किया गया था।

लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल द्वारा सन् 1934 से सन् 1947 तक विभिन्न राष्ट्रीय संघ के नेताओं का भाषण आयोजित किया गया। देशभक्ति की भावना को बढ़ाने वाली झाकियां, सजावट की सजावट की गई थी।

सन् 1920 में स्थापित श्री गणेशोत्सवमान्य अली मंडल ने सन् 1931 में आस्पृश्यों के लोक का आयोजन किया था। बाल गंगाधर तिलक जी के विचार का विमोचन करते हुए, खामगांव बुलढाणा के तानाजी गणेशोत्सव मंडल के अनुयायियों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गोया मुक्ति परिषद की स्थापना की तथा जिले में भी समय अज्ञात था।

सिंहावलोकन का कहना है कि श्रीगणेश भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्व के प्रतीक ही वर्ण राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता के आध्यात्मिक पिता नहीं बने। वर्तमान में भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में गणेशोत्सव पर्व सनातनियों द्वारा मनाया जाता है। विश्व के सुख और समृद्धि की कामना की जाए, सनातनियों का यह गणेशोत्सव पर्व, हर युग में जारी रहे। “एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्। गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।”

लेखक –
डॉ. आनंद सिंह राणा