Trending Now

चित्रकूट की राम कहानी, जहाँ आकर सत्ता भी पदकंदुक बनकर रह गई थी!

कामदगिरि की परिक्रमा और रामनाम के जाप के साथ नेता लोग राजनीति की वैतरणी पार करने के लिए यहाँ बहुधा आते हैं। इस बार मंदाकिनी में दीपदान के पहले चित्रकूट से सटे रैगाँव विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान होंगे। उत्तरप्रदेश के आसन्न चुनाव के देखते हुए भी यहाँ आमदरफ्त बढ़ी है। प्रायः हम ऐसे प्रपंचों में पड़कर मूल बात भूल जाते हैं। इतिहास, मर्यादा, पवित्रता, तप, संकल्प की वो पौराणिक कथा। चुनाव की चर्चाओं में बिंधने से पहले आइए जानेे एक बार फिर इस पुण्य पावन धाम के बारे में।

चित्रकूट राम कहानी का ही पर्याय है। इसके भूगोल, संस्कृति और अस्तित्व में राम कथा ही रची बसी है। किन्तु चित्रकूट की गौरवगाथा राम के जन्म से पहले ही देश-देशांतरों में व्याप्त हो चुकी थी। यहां अत्रि के आश्रम का उल्लेख पुराणों में है। उनसे भगवान कपिल की बहन और कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसुइया का विवाह हुआ था।

गंगा की धारा को चित्रकूट की धरती पर खींचकर लाने वाली अनुसुइया ही हैं, जिसे लोक मंदाकिनी के नाम से जानता है। यहीं पर त्रिदेव महासती के सामने पुत्र बनने के लिए मजबूर हुए और बाद में उन्होंने अपने अंशों का प्रतिदान किया। भगवान दत्तात्रेय का जन्म इन्हीं अंशों का साक्षी है।

Satna: Deepotsav Mela begins in Chitrakoot lakhs of people will donate today

भगवान शिव के क्रोध रूप दुर्वासा का जन्म भी यहीं हुआ। भगवान राम के आगमन से पहले ही सरभंग, सुतीक्ष्ण और अगस्त्य जैसे अनेक ऋषि चित्रकूट की चौरासी कोस की परिक्रमा के इर्द-गिर्द आश्रय लेकर बैठ गए थे। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने देवताओं से कहा था कि वे भगवान राम का सत्कार करने के लिए विभिन्न रूपों में बिखर जाएं। चूंकि चित्रकूट उनकी आश्रय स्थली बनने वाला था इसलिए देवता तमाम ऋषियों के वेष में चित्रकूट क्षेत्र में ही विराजमान हो गए थे।

मत्यगयेन्द्रनाथ आज भी चित्रकूट के उसी तरह राजा माने जाते हैं जैसे उज्जैन में महाकालेश्वर। सत्य यह है कि भगवान शिव ने यहां अपनी लिंग स्थापना भगवान राम के लिए ही की थी। इसलिए यह कहने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि चित्रकूट की कहानी ही राम की कहानी है।

रामायण के अनुसार भगवान राम ने प्रयाग में महर्षि भारद्वाज से पूछा था कि ऐसा कोई स्थल बताएं जहां मैं अपने वनवास का समय व्यतीत कर सकूं। महर्षि ने उन्हें चित्रकूट में रहने का आदेश दिया था। इस बात को रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने इस चौपाई के माध्यम से कहा है-‘चित्रकूट गिरि करहु निवासू, जहं तुम्हार हर भांति सुपासू।’

महर्षि वाल्मीकि ने भी उन्हें यही राय दी और मत्यगयेन्द्रनाथ की आराधना के बाद भगवान राम चित्रकूट के निवासी बन गए। दरअसल कामदगिरि की महिमा का वर्णन करना आलेख की परिधि से काफी आगे निकल जाना है। इसलिए इतना ही कह देना काफी है कि ‘कामदगिरि भे राम प्रसादा, अवलोकत अपहरत विषादा।’ अर्थात कामदगिरि स्वयं राम के प्रसाद बन गए और उनके दर्शन मात्र से ही विषाद तिरोहित हो जाते हैं।

इतना ही नहीं- ‘चित्रकूट चिंतामनि चारू, समन सकल भव रुज परिवारू’, ‘चित्रकूट के विहग मृग, तृण अरु जाति सुजाति। धन्य धन्य सब धन्य अस, कहहिं देव दिन राति।’ चित्रकूट के आवास की बारह साल की अवधि में भगवान राम ने ऐसे चरित्र दिए जो ‘सो इमि रामकथा उरगारी, दनुज विमोहनि जन सुखकारी’ हैं।

भगवान राम से व्यथित भ्राता भरत का मिलन इसी चित्रकूट में होता है। यह चित्रकूट साक्षी है मानव के आचरण की उस पराकाष्ठा का जहां लोभ, मोह और किसी तरह की ईर्ष्या हृदय को प्रभावित ही नहीं करती। भरत अयोध्या के राजतिलक की तैयारी करके चित्रकूट आए थे और भगवान राम को सम्राट घोषित करने पर आमादा थे। किन्तु सत्ता यहां कंदुक बन गई। एक लात भरत का पड़ता तो राम की ओर दौड़ती और राम के प्रहार से भरत की ओर आती। अंतत: सिंहासन पर आसीन हुई चरणपादुकाएं।

देवत्व के अभिमान को दंडित करने वाला इसी चित्रकूट का स्फटिक शिला क्षेत्र है। पौराणिक प्रसंग के अनुसार ‘एक बार चुनि कुसुम सुहाए, निज कर भूषन राम बनाए’, ‘सीतहि पहिराए प्रभु नागर, बैठे फटिक शिला परमादर।’ दरअसल यह दृश्य सौंदर्य को आदर देने का था। परन्तु इंद्र का पुत्र जयंत अपने घमंड में आया और अनादर कर चला गया। भगवान राम को तो तब पता चला ‘चला रुधिर रघुनायक जाना, निज कर सींक बान संधाना।’ आखिरकार यह सींक का बाण तब शांत हुआ जब उसने शरण में आए हुए जयंत की एक आंख का हरण कर लिया।

चित्रकूट में यदि ऋषि थे तो निशाचरों की संख्या भी कम न थी। विराध जैसे अनेक राक्षसों के वध के प्रसंग रामायण में है। चित्रकूट ही वह स्थल है जो भगवान राम की प्रतिज्ञा का केंद्र बना। जब सरभंग ऋषि ने उन्हीं के सामने स्वयं की काया अग्नि को समर्पित कर दी और वह आगे बढ़े तो आज के सिद्धा पहाड़ में उन्हें हड्डियों का ढेर दिखा। उन्होंने पूछा तो पता चला कि निशाचरों ने मानवों का खाकर यह ढेर लगाया है। उन्होंने यहीं संकल्प लिया-‘निसिचर हीन करौं महिं, भुज उठाइ प्रन कीन्ह। सकल मुनिन्ह के आश्रम जाइ जाइ सुख दीन्ह।’

भगवान राम इसी चित्रकूट अंचल में सुतीक्ष्ण से मिलते हैं और अंत में अगस्त्य से। रामकथा के अनुसार अनेक अस्त्र-शस्त्र उन्हें अगस्त्य मुनि ने ही सौंपे थे। जिनमें वह बाण भी शामिल था जिससे रावण मारा गया। रामकथा के महान चिंतक रामकिंकर महाराज के अनुसार चित्रकूट में अकेले गंगा की धारा मंदाकिनी ही नहीं आई थी, अपितु राम के चरण प्रक्षालन के लिए गुप्त रूप से गोदावरी और सरयू जैसी नदियां भी किसी न किसी अंश में यहां अवतरित हुई थीं।

परन्तु अब सरयू का कोई अस्तित्व नहीं बचा। जिसे सरयू कहा जाता है वह एक नाला है जिसका वर्णन रामचरितमानस में यूं है-‘लखन दीख पय उतरि करारा, चहुंच दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा।’ सरयू कहे जाने वाले अब इस धनुषाकार नाले का भूगोल विलोपित हो चुका है और उसके प्रवाह क्षेत्र में बन गए हैं अनेक भव्य भवन।

उस चित्रकूट का अब अता-पता तक नहीं है जहां प्रकृति अपने संपूर्ण श्रृंगार के साथ विराजती थी। न तो पेड़-पौधे बचे और न ही जंगल। उनकी जगह उग आए हैं कंक्रीट के बियावान वन। वैसे चित्रकूट ने बड़ी प्रगति की है। यहां अनेक शिक्षण संस्थान हैं, भव्य आश्रम हैं और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करने के अनगिनत आयाम भी। अगर नहीं है तो भगवान राम का वह चित्रकूट जहां शेर, मृग और हाथी के एक साथ विचरण करने कथाएं पुराणों में हैं।

Nidhi Sharma ?? on Twitter: "चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर।… "

कहते हैं कि तुलसीदास से मिलने कभी यहां मीरा बाई आई थीं और उन्होंने ही उन्हें रैदास के पास भेजा था। यहां रहीम का रमना उनके साहित्य में ही वर्णित है। रहीम देश के सम्राट अकबर के मामा और देश के कोषाधिपति थे। लेकिन उन्हें सबसे प्रिय चित्रकूट ही लगा। तभी तो उन्होंने कहा- ‘चित्रकूट में बसि रहे रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा परत है सो आवत यहि देश।’

मूर्तिभंजक के रूप में विख्यात औरंगजेब जैसे शासक भी चित्रकूट आकर नतमस्तक हो गए थे और उन्होंने बालाजी मंदिर के लिए कई गांव दान में दिए थे। जिसके दस्तावेज आज भी मंदिर में रखे हुए हैं। परन्तु क्षोभ है कि जिस चित्रकूट को औरंगजेब जैसे सम्राट खंडित नहीं कर पाए उसे वर्तमान विकास के झंडाबरदारों ने तहस-नहस कर दिया।

हद तो यह है कि कामदगिरि का परिक्रमा क्षेत्र ही अतिक्रमण के दायरे में है, यह बात अलग है कि उसे कानूनी जामा पहनाकर नकारने की कोशिश की जा रही है। लगातार जंगल कट रहे हैं और बड़े-बड़े भवन तन रहे हैं। पर्वत श्रृंखलाओं में चलने वाली खदानों ने चित्रकूट का नक्शा ही बदल दिया है। न तो सरभंगा का संभार पर्वत बचा और न सिद्धा पहाड़। कामदगिरि के आसपास भी अनेक खदानें इस अंचल के स्वरूप को कुरूपता प्रदान कर चुकी हैं। अब तो ‘सुरसिर धार नाऊं मंदाकिनि’ के वजूद पर ही बन आई है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के सर्वेक्षण के मुताबिक वह पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। रामघाट के आगे तो गंगा की इस धारा का अस्तित्व गंदे नाले के अतिरिक्त कुछ रह ही नहीं जाता।

 लेखक :- जयराम शुक्ल