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छोटे-छोटे पलों में बड़े-बड़े लक्ष्य

जिन दिनों भारत में भगवान महावीर और गौतम बुद्ध धार्मिक सुधार को लेकर अपने नए विचार रख रहे थे। उन्हीं दिनों चीन में भी एक सुधारक का जन्म हुआ, जिनका नाम कंफ्यूशियस था। उस समय चीन में झोऊ राजवंश का शासन चल रहा था। समय के साथ झोऊ राजवंश के कमजोर पड़ने के कारण चीन में बहुत से राज्य कायम हो गए, जो हमेशा आपस में लड़ते रहते थे। ऐसे समय में कंफ्यूशियस ने चीन के नागरिकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उनका जीवन बहुत ही साधारण था। कन्फ्यूशियस पशुओं को घास डालते हुए जब जीवन के कारण सिद्धांतों पर सोचते रहते, तो किसी को उन पर यकीन नहीं होता था कि यह शख्स एक दिन उनका जीवन बदल देगा। 27 साल तक मजदूरी करने के बाद जब उन्होंने 8 बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो भी यह फिजूल ही नजर आया।

37 साल की उम्र में उन्होंने चीन की परंपरागत किताबों को खंगालने के बाद एक सिद्धांत सामने रखा। ईश्वर राज्य और जनता का सिद्धांत, जिसके सामने सब झुक गए। उन्होंने कहा, मैं सत्याभास को सत्य से, जौ को गेहूं से, मीठी जुबान को अच्छाई से और कड़वे वचन को ईमानदारी से अलग मांगता हूं, तभी सही न्याय कर पाता हूं। ऐसी मान्यता है कि एक विचारक बिल्कुल अलग तरह की जिंदगी जीता है, जबकि कन्फ्यूशियस ने इसी चीज को बदला। जब उनसे पशुओं को चारा देने को कहा जाता था, तो वह उसमें अपने तरीके से दर्शन ढूंढ लेते। दिन-रात घर लौटने पर जब उनके सामने से खाने की प्लेट हटा ली जाती तो, वे उसमें भी दूसरों के हक की बात सोच लेते थे। सचमुच महान व्यक्ति छोटी चीजों में बड़ी चीजें खोज लेता है। अभिभूत हमें भी छोटे-छोटे पलों में बड़े-बड़े लक्ष्यों को ढूंढकर उन्हें साकार करने की पहल हर हाल में करना चाहिए।

हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
संपर्क सूत्र – 9174660763