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जाने नागपंचमी का आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक महत्व

सावन मास में नाग पंचमी पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शंकर के साथ नाग देवता की पूजा का विधान है। शास्त्रों के अनुसार, नागपंचमी के दिन किसी जीवित सांप नहीं बल्कि नाग देवता की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर की विधिवत पूजा व रूद्राभिषेक करने वाले भक्त को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। जीवन में खुशहाली व सुख-समृद्धि का आगमन होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बताया कि इस दिन गरुण जी ने तक्षक नामक नाग को अभयदान दिया था और उसी समय से के दिन नाग की पूजा अर्चना की जाती है।हिंदू ग्रंथों में वर्णित वासुकि, अनंत, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख इन अष्ट सर्पो की पूजा की जाती है। नाग पंचमी के दिन नाग देव की पूजा से सांपों का भय दूर होता है। कुंडली में कालसर्प दोष वाले लोगों को इस पूजा से राहत मिलती है।

नाग पंचमी का त्योहार इस वर्ष 21 अगस्त 23 सोमवार को मनाया जाएगा । ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं ।

गरूड़ पुराण में ऐसा सुझाव दिया गया है कि नागपंचमी के दिन घर के दोनों बगल में नाग की मूर्ति बनाकर पूजन करना चाहिये। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं अर्थात् शेषनाग आदि सर्पराजाओं का पूजन पंचमी को होना चाहिए। पौराणिक कथा के अनुसार अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सांपों से बदला लेने और नागवंश के विनाश के लिए एक नाग यज्ञ किया, क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोक दिया। उन्होंने सावन की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वाले दिन ही नागों को यज्ञ में जलने से रक्षा की और उनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की। उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नाग के काटने से मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया,उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। उस दिन तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई। एक और प्रचलित कथा के अनुसार नाग पंचमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग का अहंकार तोड़ा था और नाग पूजा का महत्त्व बताया था।

पौराणिक कथाओं में नागों की प्रमुख भूमिका है। वे अक्सर दिव्य देवताओं से जुड़े होते हैं और उनमें सुरक्षात्मक और विनाशकारी दोनों गुण होते हैं। साँपों को शक्ति, परिवर्तन और पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।

नाग पंचमी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है। कुछ स्थानों पर, लोग बाम्बी के पास दूध या चावल रखते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनमें सांपों का निवास होता है।कुछ स्थानों पर जनमानस बड़ी श्रद्धा से साँपों की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। अनेक स्थानों में गाय के गोबर और पानी के मिश्रण से दीवारों पर साँपों की प्रतीकात्मक चित्र बनाएं जाते हैं और उन्हें फूलों और सिन्दूर से सजाया जाता है और पूजन किया जाता है।नागपंचमी के दिन सांप को दूध पिलाना हमेशा ‌पवित्र मानते हैं, लेकिन नागपंचमी के मौके पर यह प्रथा खासी लोकप्रिय है। अगर डॉक्टरों और सर्प विशेषज्ञों की बात मानें, तो सांप को दूध कतई पसंद नहीं आता। यह हमारी गलतफहमी है, जिसे हम बीते कई साल से ढो रहे हैं।

नागपंचमी पर खास तौर पर सांपों को दूध पिलाने का चलन देखने में आया है। लेकिन हम सभी को यह बात पता होनी चाहिए कि सांप कभी दूध नहीं पीता, क्योंकि उसे यह ‌बिलकुल पसंद नहीं आता। अगर कहीं गलती से सांप के मुंह में दूध चला भी जाए, तो वह तुरंत मर भी सकता है।

हमारे पारिस्थितिक तंत्र में हर प्राणी का एक विशेष महत्व है। सांप भी उन्हीं में से एक है। आमतौर पर सांप को बहुत ही खतरनाक प्राणी माना जाता है और देखते ही मार दिया जाता है। यही कारण है कि सांप की कई विशेष प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो सांप मनुष्य का शत्रु नहीं बल्कि मित्र है, क्योंकि ये अनाज और खेतों में लगी फसलों को बर्बाद करने वाले चूहों को खाता है।

नागपंचमी को सिर्फ धार्मिक नजरिए से देखा जाता है, लेकिन इसकी अपनी वैज्ञानिक विशेषता भी है। थामस कुरुविला ने बताया कि सांप को इको सिस्टम की सबसे मजबूत कड़ी माना जाता है। सांपों को किसानों का मित्र भी कहा जाता है। सांप चूहे, कीड़े-मकोड़ों, छिपकलियों को खाता है, जिसके कारण इको सिस्टम मजबूत रहता है। माना जाता है कि जुलाई-अगस्त में सांपों का प्रजनन होता है, इस कारण इनकी संख्या अधिक होती है। भय के कारण लोग इसे मार देते थे, इस कारण इसको धर्म से जोड़ा गया ताकि लोग सांपों को मारना छोड़कर इनकी पूजा करने लगें।

पहले सांपों की पूजा होती थी, लेकिन उन्हें पकड़ना, पिटारा में बंद करने के गंदे खेल नहीं खेले जाते थे। लेकिन बदलते दौर में इसका व्यवसायीकरण हो गया और इको सिस्टम गड़बड़ाने लगा। अब हमें इस बात पर गौर करना होगा कि सांपों का वजूद न केवल धार्मिक कारण, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

एक परंपरा नागपंचमी पर खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी खोदने से लेकर घास उखाड़ना भी पूरी तरह से वर्जित होता है। खेतों में जाकर जुताई, खुदाई और गुड़ाई तक करने को अपशकुन माना जाता है। ऐसी मान्यता है घास काटने के दौरान उखड़ जाती है। इससे नागदेवता नाराज हो जाते हैं किन्तु इसके पीछे का विज्ञान यह कहता है कि वर्षा ऋतु रहती है चारों तरफ पानी जमीन में पानी भरा होता है वही दूसरी और सांपों की बाम्बी बनी होती है जहां उनके अंडे रहते हैं जमीन खोदने पर पानी इन बाम्बियों में भरकर अंडों को नष्ट कर सकता है । उन्हें सुरक्षित छोड़ दिया जाए इसकी स्मृति कराने के लिए ही संभवत श्रावण मास में यह पर्व आता है।

जब सारा दिन खेत खलिहानों में कोई कार्य नहीं होता था तो पूरा का पूरा गांव एकत्रित होकर पूरे दिन कबड्डी और कुश्ती खेलते थे। हालाकि समय के साथ इन चीजों में परिवर्तन आ गया है। परम्परागत खेलों से लोगों का लगाव कम हुआ है। बावजूद इसके नागपंचमी के दिन कबड्डी खेलने की परम्परा आज भी गांवों में कायम है।

भारत के कई क्षेत्रो में नाग देवताओं के प्रति श्रद्धा-भाव देखने को मिलता है और सांपों को मारना पाप माना जाता है। साथ ही सांपों का संरक्षण करने की भी परंपरा मानी जाती है। इसी श्रद्धा-भाव और परंपरा के चलते भारत में कई जगह सांप मंदिर भी बनवाएं गए हैं। इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि  नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।

नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए रात 12 बजे मंदिर के पट खुलते हैं तथा नागपंचमी की रात 12 बजे मंदिर में आरती के बाद मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाते हैं। माना जाता है कि सर्प राज तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए बहुत ही कठिन तपस्या की थी। सर्प राज तक्षक की घोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न भी हुए। जिसके बाद उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। उनकी इच्छा थी कि कोई भी उनके एकांत में किसी भी प्रकार का विघ्न ना डाले। जिसके बाद से वर्षों से यही प्रथा चली आ रही है और इसीलिए केवल नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। उसके बाद उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए और परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।विशेष बात यह है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

अंत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण में साँप को गुस्सा, क्रोध अहंकार से जोड़ा गया है क्योंकि उनके अंदर का विष किसी को भी खत्म करने के लिए काफी होता है तो उनमें अहंकार होना स्वाभाविक है लेकिन इतने शक्तिशाली होने के बाद भी अपने आपको स्थिर शांत और दयालु बनाए रखना महानता होती है नागपंचमी का पर्व अपने अंदर का क्रोध और अहंकार इसी व्रत पर्व के साथ खत्म करने की बहुत बड़ी सीख लिए होता है।


सुषमा यदुवंशी
शिक्षविद एवं लेखिका