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“महारथी मदन लाल धींगरा की धमक से दहल उठा था लंदन”

“सांस बनी है आँधी सी, तूफान उठा है सीने में..जब तक गुलाम है देश मेरा,तो मौज़ कहाँ है जीने में”
-श्रीयुत मदन लाल धींगरा

भारत भूमि वीर प्रसूता रही है, विभिन्न काल खंडों में हमारे ‘स्व’ के अस्तित्व पर जब – जब आंच आई है, तब-तब भारतवर्ष के भूमि पुत्र-पुत्रियों ने पूर्ण आहुति देकर भी ने ‘स्व’ की ज्योति जगमगाए रखा। इसी क्रम में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महारथी मदन लाल धींगरा का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए क्योंकि वह भारत के प्रथम क्रांतिवीर थे, जिन्होंने लंदन में कर्जन वायली का सरेआम वध कर समूचे लंदन को दहला दिया था। उन्होंने यह साबित कर दिया था कि एक भारतीय युवा अकेले ही बरतानिया सरकार को हिला सकता है।

महा महारथी मदन लाल धींगरा की जन्मतिथि को लेकर विभिन्न मत हैं परंतु सर्वमान्य मत यह है कि उनका जन्म 18 फरवरी सन् 1883 (कुछ विद्वानों के अनुसार 18 सितंबर) को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता दित्तामल और संपूर्ण परिवार का अंग्रेजों के साथ मैत्री भाव था, परंतु मदन लाल धींगरा बाल्यावस्था से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे। इसलिए मदन लाल धींगरा को लाहौर के एक विद्यालय से उन्हें निकाल दिया गया था और परिवार ने भी उनसे अपना नाता तोड़ लिया था।

उसके उपरांत मदन लाल धींगरा ने अपने जीविकोपार्जन के लिए लिपिक की नौकरी की, तांगा भी चलाया, एक कारखाने में श्रमिक के रूप में कार्य भी किया। उन्होंने एक यूनियन बनाने का भी यत्न किया परंतु वहां से भी उन्हें निकाल दिया। कुछ दिन मुंबई में कार्य करने के बाद वह अपने बड़े भाई के विचार विमर्श से 1906 में उच्च शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में यांत्रिकी प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया वहीं उनकी मुलाकात महारथी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे महान् क्रांतिकारियों से हुई और वीर सावरकर ने उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। मदन लाल धींगरा “अभिनव भारत” के सदस्य बन गए थे और इंडिया हाऊस में रहते थे । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी विदेशों पृष्ठभूमि तैयार कर रहे थे जिसकी जानकारी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में षड्यंत्र पूर्वक उजागर नहीं की गई है। इंडिया हाऊस और गदर पार्टी के योगदान का भी आकलन अभी तक उपेक्षित ही रहा है। कर्जन वायली लंदन में इंडिया हाऊस में रहने वाले भारतीय छात्रों की जासूसी करता था, तथा भारत सचिव का राजनीतिक सलाहकार भी था। एक सेवानिवृत्त अंग्रेज़ फौजी अफसर – विलियम कर्जन वायली की इन हरकतों से लंदन में सभी भारतीय विद्यार्थी तंग हो गये थे, और भारत में बरतानिया सरकार द्वारा युवा क्रांतिकारियों को फांसी की सजा देकर दमन चक्र चलाए जा रहा था। उपर्युक्त कारणोंवश इंडिया हाऊस में बरतानिया सरकार को लंदन में ही सबक सिखाने का विचार बनाया था।इस संदर्भ में कर्जन वायली और पूर्व वाईसराय कर्जन के वध की योजना बनाई गई।

महा महारथी श्रीयुत मदन लाल धींगरा भी लंदन में अध्ययन में अध्ययनरत थे, जल्दी ही उनकी मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर जी से हुई और वे अभिनव भारत के सदस्य बन गये। आखिरकार 1 जुलाई सन् 1909 को कर्जन वायली पर महा महारथी श्रीयुत मदन लाल धींगरा ने 5 फायर खोल दिए जिसमें 4 कर्जन वायली को लगे और वह नरक वासी हो गया। मदन लाल धींगरा एक गोली स्वयं को मारने वाले थे, परंतु महा महारथी को हिरासत में ले लिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को लंदन की पेंटोनविले जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। इस तरह भारतीय स्वाधीनता संग्राम में ‘स्व’ के लिए महा महारथी श्रीयुत मदन लाल धींगरा की पूर्णाहुति हुई।अमर बलिदानी ने अंत में कहा कि “मैं तुम अंग्रेजों को पिछले एक सौ पचास वर्षों में लगभग 8 करोड़ भारतीय लोगों की हत्याओं और खरबों रुपये की लूट का जिम्मेदार मानता हूँ। मुझे फाँसी पर चढ़ा दीजिए, लेकिन याद रखियेगा, समय का चक्र घूमेगा और आपको मेरे देश की आने वाली पीढ़ी मुंहतोड़ जवाब देगी”।

पाश्चात्य विचारधारा से अभिप्रेत भारतीय परजीवी इतिहासकारों, एक दल विशेष के समर्थक तथाकथित सेक्युलर इतिहासकारों के साथ वामपंथी इतिहासकारों ने षड्यंत्र पूर्वक इस प्रकार का मत प्रवाह स्थापित किया कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जिन्होंने सत्ता के लिए के लिए संघर्ष किया, उन्हें स्वाधीनता संग्राम का महा नायक बना दिया, परंतु जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए भारत में एवं विदेशों में जाकर वास्तविक संग्राम किया तथा विदेशों में गदर पार्टी और इंडिया हाउस जैसी संस्थाएं बनाई और अपना संपूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया। उनके इतिहास के बारे में केवल नाम लिखकर उनके इतिहास का पटाक्षेप कर दिया तथा उन्हें प्रकारांतर से आतंकवादी, लुटेरा और विद्रोही बताकर अपराधी साबित कर दिया। यह उक्त प्रकार के इतिहासकारों का जघन्य अपराध है।

अमृत महोत्सव में यही बातें सामने आ रही हैं कि देश में ही नहीं विदेशों में भी जिन महारथियों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने प्राणों की पवित्र आहुतियांँ दी हैं, उनका इतिहास में ठीक प्रकार से मूल्यांकन नहीं किया गया है, जो कि राष्ट्रवाद के लिए सर्वाधिक अपेक्षित है। अतः इतिहास का पुनर्लेखन प्रगति पर है और अविलंब सफलीभूत होगा।

जय हिंद, जय भारत, वंदेमातरम्

डॉ आनंद सिंह राणा