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देवों की दीवाली: देव दीपावली

भारत देश त्यौहारों एवं उत्सवों की भूमि है। प्रत्येक त्योहार का अपना सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है।हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का महत्वपूर्ण स्थान है। सनातन धर्म में प्रत्येक माह आने वाली पूर्णिमा का महत्व की है लेकिन कार्तिक माह की पूर्णिमा विशेष महत्व की है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाए आती है परंतु जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर सोलह हो जाती हैं।

प्राचीन काल से कार्तिक पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व रहा है। इसे देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। यह एक दिव्य त्यौहार है। माना जाता है कि इस दिन देवता दिवाली मनाते हैं। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यदि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कृतिका नक्षत्र हो तो इसे महाकार्तिकी के नाम से जाना जाता है । वही इस दिन रोहिणी या भरणी नक्षत्र होने पर इससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन लोग विभिन्न तीर्थ स्थलों पर जाते हैं और सूर्योदय के समय कार्तिक स्नान करते हैं। सारा दिन उपवास रख पूजन, अर्चन करते है। सत्यनारायण भगवान की कथा सुनी व व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।

इस पवित्र दिवस से जुड़ी कई मान्यताएं है। कार्तिक पूर्णिमा भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य अवतार जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह दिन वृंदा (तुलसी पौधे) के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी इसी दिन हुआ था।

ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने दिवाली मनाई थी। इससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में त्रिपुर नाम का एक राक्षस था। उसने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक अत्यधिक कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या देखकर पृथ्वी के सभी जीव और देवता भयभीत हो गये। देवताओं ने उसे रोकने और उसकी तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं का सहारा लिया उन्हें उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। त्रिपुर अपनी सफलता में सफल हो गया। उसकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उससे मनचाहा वरदान मांगने को कहा।उसने वर मांगा कि मेरी मृत्यु न देवताओं के हाथों हो न ही मनुष्य के हाथों हो। ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गये। वरदान से वह अहंकारी हो गया और लोगों पर अत्याचार करने लगा। अहंकार से वशीभूत होकर उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई कर दी। इसके पश्चात त्रिपुर व महादेवजी के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। अंत में ब्रह्मा जी, विष्णु जी की सहायता से शिव जी ने त्रिपुर का अंत किया और संसार को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी में सैकड़ों दीप जलाएं। तभी से देव दिवाली का उत्सव मनाया जाने लगा। इस दिन प्राचीन नगरी काशी के रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखरी तक करोड़ों दीए जलाकर गंगा नदी का पूजन किया जाता है। इस दिन जगमगाती काशी का अद्भुत सौंदर्य देखते ही बनता है।

मान्यता है कि देव दिवाली के दिन सूर्यास्त के पश्चात तालाब नदियां, कुंड में आटे के दीपक बनाकर दीप जलाने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और सुख समृद्धि आती है। इसी दिन सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था अतः सिख धर्म में इस दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सिख संप्रदाय के लोग गुरुद्वारे में जाते हैं, गुरुवाणी का पाठ सुनते हैं। अतः इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है जिसका मतलब है गुरुओं का उत्सव। अपने गुरु के प्रति आस्था का भाव रख उनके संदेश का पालन कर नैतिकता व सच्चाई के मार्ग पर चलने का प्रण लेते हैं।

इस दिन से जुड़ी एक अन्य मान्यता के अनुसार महाभारत काल में अठारह दिन तक कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ। इस विनाशकारी युद्ध में कई लोग मारे गए। इस युद्ध में योद्धाओ और अपने सगे संबंधियों को मृत्यु पाता देख युधिष्ठिर का मन अत्यधिक विचलित हो गया। तब श्री कृष्ण पांडवों को साथ लेकर गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए।

When Is Dev Diwali 2022 Dev Diwali 2022 Date Time And Shubh Muhurat Dev Deepawali Deep Daan Importance And Vidhi - Dev Diwali 2022: देव दीवाली पर दीपदान का है खास महत्व,

कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया व कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। बाद में रात होने पर दिवंगत आत्माओ की शांति व मुक्ति हेतु दीपदान किया। तभी से इस दिन पितरों को दीप दान किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन नदी, सरोवर, धर्मस्थल में स्नान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण इस दिन दान देने का खास महत्व है और माना जाता है कि इस दिन दिया गया दान स्वर्ग में संरक्षित होकर रहता है व मृत्यु के पश्चात व्यक्ति को स्वर्ग में पुनः मिलता है। ऐसे दिव्य, शुभ व आस्था के महापर्व

देव दीपावली और प्रकाशोत्सव
की अनेक मंगलकामनाएं…
     लेखिका
प्रो. मनीषा शर्मा
9827060364