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गुरु नानक देव बनाम वंशवाद

जब गुरु नानक देव का जन्म वर्ष 1469 में हुआ, उस दौर में देश में मुस्लिम आक्रमणकारियों के हिंदुओं पर अत्याचार जारी थे. जिसके चलते हिंदू धर्म पतन की ओर अग्रसर था. हिंदू धर्म की आत्मा विलुप्त हो चुकी थी और जातिवाद तथा पाखंड का बोलबाला शुरु हो चुका था . गुरु नानक के बचपन के कई चमत्कारी कहानियां प्रसिद्ध हैं. गुरु नानक को झूठे आडंबरों से बड़ी चिढ़ थी.

एक बार एक धनवान जागीरदार मलिक भोगो ने उन्हें भोज पर आमंत्रित किया, पर जब नानक वहां नहीं गए तो वह लालो बढ़ई के घर गया, जहां नानक सूखी रोटी खाते मिले. मलिक भोगो के आपत्ति करने पर नानक ने एक और तो उसका पकवान लाया दबाना शुरू किया तो दूसरी ओर लालो बढ़ई की सूखी रोटियां! मालिक भागो के पकवान से लहू तथा लालोबढ़ई की रोटियों से दूध निकलने लगा. नानक ने साफ-साफ कहा मलिक भागो तुमने जिस धन से भोज का आयोजन किया था. वह गरीबों का खून चूस कर किया गया है. मैंगरीबों का खून नहीं पी सकता था. भाईलालो की सूखी रोटी मैं इसलिए खा रहा था क्योंकि इसमें प्रेम परिश्रम और श्रद्धा का दूध बहता है.

गुरु नानक देव ने प्रचार प्रसार के लिए चार उदासी “यात्राएं” की.. वह सिख धर्म के पहले गुरु थे और करतारपुर में पहली गद्दी स्थापित की थी. चौथी उदासी पूरी होने के बाद उन्होंने गुरु गद्दी के लिए अपने उत्तराधिकारी के बारे में सोचना शुरु कर दिया. बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने अपने परम शिष्य लहंना को गुरु गद्दी देने का ऐलान कर दिया.. इस एलान  पर भारी विवाद हुआ.. सबसे अधिक आपत्ति गुरु साहब की पत्नी ने इस पर किया, क्योंकि वह अपने बड़े पुत्र श्रीचंद को इस गद्दी पर बैठाना  चाहती थीं.. जब गुरु साहब ने कहा कि वह इस गद्दी के लायक नहीं है तो वे अपने छोटे बेटे लख्मीदास को गुरु गद्दी देने की जिद करने लगी.. पर गुरु साहब गुरु गद्दी को खानदानी जागीर बनाने के सख्त खिलाफ थे. उनकी इच्छा थी कि इस गद्दी पर वहीं बैठे जो अपने निस्वार्थ सेवाओं द्वारा लोगों का कल्याण कर सके.. उन्होंने पत्नी को शांत करने के लिए कहा, मैं दोनों बेटों की परीक्षा लूंगा, यदि दोनों में से कोई परीक्षा में पास हो गया तो उसे गुरु गद्दी सौंप दूंगा.. अपने दोनों पुत्रों की परीक्षा करने के लिए एक बर्तन किसी गंदे एवं गहरे तालाब में फेंक दिया और उसे दोनों पुत्रों को निकाल लाने के लिए कहा. इस पर दोनों पुत्रों ने कहा – हमारे पास बर्तनों की कौन कमी है फिर भी यदि बर्तन निकलवाना है तो क्या आपके पास सेवकों की कमी है? गुरु साहब ने उसी समय लहना को बुलवाया तथा तालाब से बर्तन निकाल लाने को कहा… लहंना तत्काल तालाब में कूद पड़े, बर्तन को तालाब से निकाला और उसे साफ कर गुरु साहब के चरणों पर रख दिया.. तब गुरु साहब ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा —- जो व्यक्ति गिरे हुए को पाप के कीचड़ से निकालकर उसे स्वच्छ और पवित्र नहीं बना सकता,, भला गुरु गद्दी का कैसे हकदार हो सकता है? तुम्हारे दोनों पुत्रों में अहंकार  है किसी में भी सेवा भाव नहीं है, इस पवित्र गद्दी के लायक तो भाई लहना ही हैं.. गुरु साहब की पत्नी इससे संतुष्ट नहीं हुई और पुनः परीक्षा लेने की जिद करने लगी. अंधेरी रात थी सर्दी अपने चरम पर थी.. गुरु साहब ने अपने दोनों बेटों को जगाया और बोले – मेरे सारे कपड़े मैलेपड़े हैं,, तुम लोग दरिया पर जाकर मेरा एक जोड़ा धो लाओ, सुबह संगत में उन्हें पहनना है. इस पर दोनों पुत्र गुस्से से चिल्ला उठे, लगता है बुढ़ापे में आपका दिमाग खराब हो गया है. इतनी सर्दी में आप हम लोगों को कपड़े धोने भेजना चाहते हैं, हम नहीं जाएंगे, किसी सेवक को भेज दीजिए. गुरु साहब ने भाई लहना को आवाज दी, वह तुरंत उपस्थित हुए. गुरु साहब के आदेश पर सारेमैले कपड़े उठाकर दरिया पर जा पहुंचे. रगड़ रगड़ कर गुरु साहब के उन कपड़ों को धोया. रगड़ रगड़ कर गुरु साहब के कपड़ों को धोया, हवा में फैला कर सुखाया और सुबह-सुबह गुरु  साहब के चरणो मैं ला कर रख दिया. पर गुरु साहब की पत्नी इससे भी संतुष्ट नहीं हुई और उन्होंने एक अंतिम परीक्षा लेने को कहा. तीसरी परीक्षा में आधी रात को जब तेज वर्षा हो रही थी तब गुरु साहब ने अपने बेटों से  टूटी हुई दीवार की मरम्मत करने को कहा. दोनों पुत्रों ने बुरा सा मुंह बनाया और वहां से चले गए.. तब गुरु साहब ने लहना को उक्त  दीवार की मरम्मत का हुक्म दिया. गुरु साहब के आदेश पर लहना रात में ही उक्त काम में जुटगए. इस तरह से लहना गुरु अंगद देव के नाम से गुरु गद्दी पर बैठे. इस तरह से हम देख सकते हैं कि उस 15 मी सदी के दौर में जब सब कुछ वंश के आधार पर ही तय होता था, नानक जैसे संत दार्शनिक एवं समाज सुधारक ने कैसे एक क्रांति पैदा की.सिखों में यह परंपरा गुरु रामदास तक चली. बड़ा प्रश्न यह है कि स्वतंत्र भारत में जो वंशवाद एक महामारी बन चुका है क्या गुरु नानक से कुछ सबक लेगा?

लेखक – वीरेंद्र परिहार
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