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“नवरात्रि में गरिमापूर्ण हो गरबा आयोजन”

– प्रोफेसर मनीषा शर्मा

पर्व व त्यौहार भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह हमारी परंपरा के प्रतीक है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक माँ की आराधना का पर्व नवरात्रि का आयोजन सम्पूर्ण देश मे व्यापक पैमाने पर किया जाता है। जहां यह एक और भक्ति व आराधना का त्यौहार है वही दूसरी और हमारी सनातन परंपरा में स्त्रीके सम्मान का प्रतीक भी है।गरबा एक गुजराती लोक नृत्य है जो स्त्री अर्थात शक्ति रूप को पूजन व उत्सव के रूप में मनाता है। यह संस्कृत शब्द गर्भ से उत्पन्न हुआ है गर्भ। गर्भ जो स्त्री की सृजन क्षमता का बताता है। माँ के पूजन हेतु प्रयुक्त मटके में स्थापित दीप को गर्भ दीपक कहा जाता है इसी के प्रज्वलित कर इसके चारों ओर गरबा किया जाता है। इस शब्द का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है। यह नृत्य प्रजनन क्षमता का उत्सव मनाता है और नारीत्व को सम्मान और गौरव प्रदान करता है।

गुजरात से प्रारंभ गरबा हुआ विश्वप्रसिद्ध :

गुजरात से प्रारंभ हुआ गरबा आज संपूर्ण देश ही नहीं बल्कि विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है। मां दुर्गा की आराधना हेतु एकम को घट स्थापना की जाती है जिसमें एक रंग-बिरंगे छोटे-छोटे छिद्र वाले मिट्टी के मटके में अंदर अखंड ज्योति जलाई जाती है जिसे गर्भ कहते हैं। दूसरे दिन किसी अन्य घड़े में सप्त धान्य को जवार के रूप में उगाया जाता है इसे माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर के पास स्थित कर इसके चारों ओर घूम कर तालिया द्वारा पारंपरिक गरबा नृत्य किया जाता है। गरबा के समय पहले दो प्रकार के लोक नृत्य होते थे पुरुषों द्वारा गोलाकार खड़े होकर समूह गीत गाते हुए तालियां बजाते हुए नृत्य और स्त्रियों द्वारा ताली से किए गए नृत्य को गरबा कहते थे। गरबा के समय अंबा, काली आदि देवियों के स्तुति गीत गाए जाते थे ।वीर रस का निर्माण करने हेतु अनेक वाद्य यंत्र जैसे ढ़ोल शहनाई, नगाड़ा आदि का प्रयोग किया जाता था।

गरबा में फूहड़ता के भौंडेपन का संकट :

वर्तमान में उनकी जगह फूहड़ व भौंडे फिल्मी गानों का प्रयोग किया जाता है। डीजे पर तेज लाउड संगीत बजाकर वातावरण को उत्तेजक बनाया जाता है। माँ शक्ति की भक्ति भाव स्वरूप उनकी आराधना के लिए प्रारंभ यह गरबा आज पूरी तरह व्यावसायिक रूप में बदल चुका है। महानगर में लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर गरबे हेतु विशेष पंडाल लगाए जाते हैं उन्हें बहुत भव्यता के साथ सजाया जाता है। यहां पर बड़ी बड़ी लाइटिंग की चकाचौंध की जाती है नामी गिरामी हस्तियों को बुलाया जाता है। इस सारे कार्य की मार्केटिंग में लाखों रुपए तक खर्च किए जाते हैं। इन गरबा पंडाल में प्रवेश की फीस बड़े शहरों में 1500 से ₹10000 तक रखी जाती हैं। नौ दिन तक कई तरह के आयोजन किए जाते हैं जिसमें खूबसूरत फेस, बेस्ट ड्रेस अप, बेस्ट कपल, बेस्ट मेकअप के नाम पर अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है। इस आयोजन में भारतीय संस्कृति की बजाय लड़कियां व महिलाएं भारी भरकम मेक-अप, बैकलेस ब्लाउज और अंग प्रदर्शन को वरीयता दे रही है। यहां युवा अपने कपड़े और शरीर को ही प्रदर्शित करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगा देते हैं। इन लड़कियों और औरतों को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि यह माँ के आराधना हेतु भक्ति भाव से यहां गरबा करने आई है।

गरबे में संस्कृति की यह विकृति..!

फिल्मों ने इस तरह की चीजों को और बढ़ावा दिया। चाहे बात लवरात्रि फिल्म की हो या फिर डांडिया के बहाने आ जाना, कहीं मिलने मिलने आ जाना गाने की। मानो गरबा उत्सव और नवरात्रि के वक्त लव और स्वच्छंदता ही चलती है। स्वच्छंदता का ऐसा माहौल देखा युवा वर्ग मे बड़ी संख्या में यह जाते हैं और खूब मौज मस्ती भी करते हैं क्योंकि कोई रोक-टोक नहीं है। पंडाल में इस कदर भीड़ होती हैं कि घर वालों को पता तक नहीं चलता कि हमारा बच्चा कहां और किसके साथ है। युवक युवतिया आपसी आकर्षण के कारण भी इसमें जाते हैं इससे अनैतिकता बढ़ रही है ।अनेक पुलिस अधिकारियों के अनुसार गरबा पंडाल के बाहर ये लड़के लड़कियां शराब व अन्य नशे कर रात भर घूमते हैं और हंगामा करते हैं। इस प्रकार गरबे में संस्कृति की यह विकृति हिंदू धर्म का माखौल उड़ा रही है। इस दौरान होने वाले ये कृत्य परंपरा व संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। गरबा उत्सव के बहाने पैसे की लूट, नृत्य व पहनावे में खुलापन,अश्लीलता आदि इसकी पवित्रता को नष्ट कर रहे हैं जिससे नई पीढ़ी पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। इस तरह के आयोजन को निरंतर बनाए रखना हमारा दायित्व है। लेकिन वर्तमान में देवी के प्रति आस्था व भक्ति के पर नवरात्र में गरबा आयोजन के नाम पर जो संस्कृति को विकृत करने का जो गोरखधंधा चल रहा है इस पर विचार करना और रोक लगाना जरूरी है। गरबे के नाम पर समाज में सांस्कृतिक प्रदूषण ना पनपने दिया जाए और मर्यादित रूप में इसका आयोजन हो।


लेखिका एक शिक्षाविद है