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पादरी के चोंगे में छिपे भ्रष्टाचार और विदेशी तार का पर्दाफाश जरूरी  

म.प्र और छत्तीसगढ़ में ईसाई मिशनरियों की अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं | इसका मुख्य कारण यहाँ आदिवासियों की बड़ी जनसंख्या होना है | ब्रिटिश राज में योजनाबद्ध तरीके से सुदूर इलाकों तक में इन संस्थानों की नींव रखी गई थी |

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के नाम पर भोले – भाले आदिवासी समुदाय में धर्म परिवर्तन का अभियान चलाया गया | धीरे – धीरे उनके मन में ये बात बिठाई जाने लगी कि उनके देवी – देवता तथा पूजा पद्धति हिन्दुओं से अलग है | पूर्वोत्तर राज्यों में जो अलगाववाद फैला उसका बड़ा कारण वहां के मूल आदिवासी समुदाय का धर्मांतरण ही रहा |

म.प्र और छत्तीसगढ़ के साथ ही महाराष्ट्र, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में ईसाई मिशनरियों के प्रभावक्षेत्र में ही नक्सली गतिविधियों का फैलना महज संयोग नहीं अपितु देश को आन्तरिक रूप से कमजोर करने हेतु रचित षडयंत्र का हिस्सा है |

इस बारे में उल्लेखनीय है कि अंग्रेज जाने के पहले भारत में ईसाइयत की जड़ें मजबूत करने के लिए चर्चों को बहुत बड़ी मात्रा में जमीनें दे गए थे | जिनका उपयोग विद्यालयों, अनाथालयों, छात्रावासों और अस्पतालों के लिए भी किया जाने लगा | लेकिन इनका चरम उद्देश्य अंततः धर्मांतरण ही है |

यह विडंबना ही है कि अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद भी हम मानसिक तौर पर हीन भावना से नहीं उबर सके जिसका लाभ उठाकर ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में समाज के अभिजात्य वर्ग ने अपने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया | इसका नुकसान ये हुआ कि अंग्रेजी भाषा और संस्कृति युक्त शिक्षा प्राप्त कर प्रगति की दौड़ में आगे निकले लोग शासन और प्रशासन में जम गए जिसका लाभ ईसाई मिशनरियों ने जमकर उठाया |

ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि मिशनरियों को बड़ी मात्रा में विदेशों से धन मिलता रहा है जिसका उपयोग ईसाइयत के प्रसार के लिए किया जाता रहा | जब तक अंग्रेजी ज़माने के पादरी रहे तब तक तो इन संस्थाओं का काम केवल ईसाइयत का प्रचार – प्रसार रहा लेकिन जैसे – जैसे आजाद भारत में तैयार पादरी चर्चों और उनके द्वारा संचालित संस्थाओं से जुड़े वैसे – वैसे उनमें जमीन – जायजाद की हेराफेरी , गबन , नन बनी महिलाओं के यौन शोषण जैसी बातें भी सामने आने लगीं |

पहले – पहल तो धर्म के नाम पर लोग चुप रहे लेकिन जब पानी सिर से ऊपर आने लगा तब ईसाई समाज के भीतर से भी पादरियों एवं संस्थानों के पदाधिकरियों के काले कारनामों के विरुद्ध आवाजें उठने लगीं | हालाँकि इन्हें दबाने का काम भी होता रहा किन्तु चोरी के माल में बंटवारे के झगड़े के कारण बहुत सी बातें सामने आने लगीं | हालाँकि ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने वाले सत्ताधीशों ने ईसाई मिशनरियों के भ्रष्टाचार के प्रति आंखें मूंदें रखीं |

चर्चों की जमीनों की बंदरबांट होती रही और शासन – प्रशासन चुपचाप देखते रहे क्योंकि मिशनरियों द्वारा पढ़ाये नेता और अधिकारी समूचे तंत्र पर हावी जो रहे | इसका ताजा प्रमाण है म.प्र के जबलपुर शहर में गत दिवस एक वरिष्ट ईसाई बिशप पी.सी सिंह के यहाँ आर्थिक अपराध विंग (ईओडब्ल्यू ) द्वारा मारा गया छापा | इस दौरान उनके यहाँ से 1 करोड़ 65 लाख रु. नगद , 9 आलीशान कारें और 80 लाख के आभूषणों के अलावा 18 हजार डालर विदेशी मुद्रा के रूप में मिले | करोड़ों रूपये की जमीन – जायजाद के दस्तावेज भी जांच दल ने जप्त किये हैं | चूंकि श्री सिंह जर्मनी में हैं इसलिए उनसे पूछताछ उनके लौटने पर होगी |

एक साधारण से पादरी के यहाँ इतनी बड़ी मात्रा में मिली नगदी और सबसे बड़ी बात विदेशी मुद्रा का पाया जाना अनेकानेक संदेहों को जन्म देने वाला है | सबसे रोचक बात ये है कि जिस चर्च से आरोपी बिशप जुड़े हैं उसी के सदस्यों की शिकायत पर उनके यहाँ फीस घोटाले की जाँच हेतु दबिश दी गई थी लेकिन ईओडब्ल्यू टीम की आँखें फटी रह गईं जब फीस घोटाले संबंधी दस्तावेजों के अलावा अनपेक्षित रूप से करोड़ों रूपये की नगदी के साथ ही बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिली | जिससे लगता है बिशप के तार विदेशों से जुड़े भी हो सकते हैं | उनके पासपोर्ट आदि की जांच से भी बहुत से तथ्य उजागर होंगे | इस छापे के बाद ये बात सामने आई है कि श्री सिंह के विरूद्ध देश के अनेक हिस्सों में 99 आपराधिक प्रकरण लंबित हैं |

ज़ाहिर है शासन – प्रशासन में अपने रुतबे के कारण वे अभी तक बचते रहे | हालाँकि वे अपने बचाव में ईसाई होने के कारण प्रताड़ित होने का शिगूफा छोड़ सकते थे लेकिन उनकी गर्दन में फंदा डालने वाले चूंकि उन्हीं की संस्थाओं से जुड़े लोग हैं इसलिए वे प्रदेश सरकार पर ईसाई विरोधी होने का आरोप भी नहीं लगा सकेंगे |

जिस प्रकार की खबरें उक्त छापे के बाद छन – छनकर आ रही हैं उनसे लगता है ईसाई मिशनरियों के कारोबार में धर्मांतरण के साथ ही भारी भ्रष्टाचार भी है | चर्चों से जुड़ी संपत्तियों का भूमाफिया के साथ मिलकर पादरियों ने जिस प्रकार व्यवसायीकरण किया है वह उन शर्तों का खुला उल्लंघन है जो इनके आवंटन से जुडी हुई हैं | ये सब देखते हुए कहना गलत न होगा कि ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित संस्थाओं में भारी अनियमितताएं हैं और पादरी का चोंगा पहिनकर धर्मगुरु बने लोग न सिर्फ धर्मांतरण के षडयंत्र में लिप्त हैं अपितु आर्थिक अपराधों में भी उनकी सक्रिय भूमिका है |

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हजारों ऐसी ही धार्मिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं का असली चेहरा सामने आया जिसके बाद उनको मिलने वाली विदेशी सहायता पर रोक लगा दी गयी | ईसाई समाज के भीतर भी ऐसे अनेक फर्जी लोग निकले जो सेवा प्रकल्प के नाम पर विदेशी सहायता का जुगाड़ करने के बाद उसका उपयोग ईसाइयत के प्रचार – प्रसार हेतु करते थे | ये सब देखते हुए जरूरी हो गया है कि केंद सरकार की जांच एजेंसियां चर्चों की संपत्तियों के गोलमाल के साथ ही ईसाई संस्थानों के कारोबार की सूक्ष्म जांच करवाएं क्योंकि ये बात अनेक मामलों में सामने आ चुकी है कि सेवा की आड़ में धर्मांतरण का जो खेल चल रहा है उसकी वजह से राष्ट्रविरोधी ताकतें मजबूत हो रही हैं |

बिशप पी. सी . सिंह की सम्पन्नता के साथ ही उनके यहाँ बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की जप्ती से अनेक सवाल खड़े हो गए हैं | सबसे बड़ी बात ये बात ये है कि उनके विरुद्ध उनके समाज के लोगों ने ही शिकायतें जाँच एजेंसियों को भेजी हैं | यदि इस दिशा में निडर होकर जांच की जावे तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आयेंगें | धर्म परिवर्तन की आड़ में देश को भीतर से कमजोर कर रहे तत्वों का पर्दाफाश राष्ट्रहित में होगा |

लेख़क – रवीन्द्र वाजपेयी