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प्रकृति की सुरक्षा और आभार का पर्व है हरियाली अमावस्या

भारतीय परंपरा प्रत्येक तिथि- त्यौहार वैज्ञानिक अनुसंधान, सामाजिक विकास से जोड़ा गया है। प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के बिना जीवन नहीं चल सकता। यही प्रमुख संदेश श्रावण मास की हरियाली अमावस में है।

इस वर्ष इस तिथि का विशेष महत्व है। एक तो सूर्य मिथुन राशि से कर्क में प्रवेश करेगा। इस प्रकार यह सूर्य संक्रान्ति का दिन है, दूसरा इस दिन श्रावण मास का सोमवार है। और तीसरा इसी अमावस्या से अधिक मास आरंभ होगा। इसलिये इस तिथि पर किया जाने वाला व्रत पूजन अधिक पुण्यकारी है ।

सनातन परंपरा में श्रावण माह का अति विशेष महत्व माना जाता है। श्रावण माह को भगवान शिव की आराधना का माह है। प्रत्येक तीज- त्यौहार ,तिथियों का हमारे देश में अपना महत्व है। कृषि प्रधान भारत में प्रत्येक उत्सव का प्रचलन ऋतूपर्व के रूप में हुआ है। जीवन के लिये केवल वन संपदा ही महत्वपूर्ण नहीं अपितु गाँव और नगरों की हरियाली भी आवश्यक है। गाँव की हरियाली से जहाँ हमें अन्न फल सब्जी आदि कृषि उत्पाद मिलते हैं तो नगरीय हरियाली स्वच्छ वायु अर्थात आक्सीजन मिलती है। इन तीनों के संरक्षण का संदेश इसकी पूजन विधि और व्रत की दिनचर्या में है।

हमारे ऋषि- मनीषियों ने ऋतुओं के अनुसार मानव, प्रकृति की सुरक्षा का आकलन परंपरागत रूप त्योहारों की तिथियों के रूप में पहले से ही सुनिश्चित कर दिया थी। अमावस्या तिथि का प्रत्येक माह में आगमन होता है ,जिसका हमारे पितरों के श्राद्ध हेतु अपना महत्व है । श्रावण मास की अमावस्या को हम हरियाली अमावस्या के रूप में पूजते हैं ।इस बार 17 जुलाई को यह तिथि आएगी। प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए भी हम हरियाली तीज मनाते हैं।
जहां तीज त्यौहार हो और और मेले न भरे जाएं ऐसा हो सकता है क्या ? हरियाली अमावस्या पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। यह हरियाली तीज के 3 दिन पहले आती है।

ज्येष्ठ -आषाढ़ मास की गर्मी से सूखी हुई धरती सावन मास में वर्षा से स्व संचित होती हुई हरीतिमा से शोभायमान होती है। जिस तरह तपस्या से दुर्बल हुआ साधक परिणाम प्राप्त होने पर पुनः स्वस्थ हो जाता है। उसी तरह सभी जीव -जंतुओं, मनुष्यों के बीच भी चातक की तरह एक बूंद की प्रतीक्षा रहती है।
मान्यता है कि हरियाली अमावस्या के दिन पिंडदान ,श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पीपल ,बरगद ,आंवला, शमी ,अशोक, केले के वृक्षों पर देवी-देवताओं का वास है । यह हमारी आस्था का प्रतीक है ।इन सब पेड़ पौधे लगाने का विशेष महत्व है जिनके लगाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो हरियाली अमावस्या को लगाए गए पेड़ जो कि अपने पूरे जीवन काल में प्राणवायु (ऑक्सीजन)हमें प्रदान करते हैं। चारों और गाड़ियों से दूषित निकलता कार्बन मोनोऑक्साइड, फैक्ट्रियों, कल -कारखानों से निकलता विषैला पदार्थ वातावरण को दूषित करता है तब यह वन संपदा हमारे से कुछ भी लिए बगैर हमें नवजीवन प्रदान करती है। वृक्ष अपने पोषण के लिए प्रकृति से जितनी भी हवा, पानी और सूर्य की रोशनी लेते हैं उससे अधिक हमें लौटा देते हैं इसलिए भी हम प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए के रूप में हरियाली अमावस्या मनाते हैं।

हरियाली अमावस्या के दिन दीप पूजन भी प्रमुख अनुष्ठान है ।लोग घरों की सफाई करते हैं। रंगीन दीयों से घरों को सजाते हैं। दीपपूजा इष्ट देवी/देवताओं के साथ-साथ पंचमहाभूत (वायु ,जल ,अग्नि ,आकाश और पृथ्वी) को समर्पित है ।दीपक पूजा ऐश्वर्य प्रदान करती हैं ।दीए की रोशनी सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर कर हमारे जीवन से अंधकार को दूर भगा देती है ।अन्न दान का भी विशेष महत्व है जरूरतमंदों को चावल गेहूं ज्वार धान का दान भी किया जाता है।

मेले और तीज -त्योहार एक दूसरे से मिलने के अवसर होते हैं। प्राचीन समय में जब संचार और परिवहन की कोई ऐसी सुविधाएं नहीं थी तो इन मेलों और त्यौहारों में रिश्तेदारों और दूर-दूर स्थानों पर रहने वाले परिवार, गाँव के लोगों से आपस में मिलने का एक सामाजिक महत्व भी होता था । हरियाली अमावस्या पूरे भारतवर्ष में मनाई जाती है और इसके निमित्त तीर्थ क्षेत्रों में तथा भारतवर्ष के अनेक स्थानों पर विशेष मेलों का भी आयोजन किया जाता है राजस्थान के उदयपुर में हरियाली अमावस्या का मेला विश्व के अनूठे मेलों में सबसे प्राचीन मेला माना जाता है। दो दिवसीय मेला अपने आप में अनूठा इसलिए हैं कि दूसरे दिन केवल महिलाओं के लिए होता है।

1898 उदयपुर के राजा फतेह सिंह मैं दुनिया में पहली बार महिलाओं को अकेले मेले का आनंद उठाने का अधिकार दिया था मेले की विशेष एक बात और हैकि इस मेले में उदयपुर के लोग ही नहीं अपितु आसपास क्षेत्र के जनजातीय भाई बंधु भी विशेष रूप से सम्मिलित होते हैं। अजमेर का कल्पवृक्ष मेला भी 800 वर्ष पूर्व एक तपस्वी की साधना और साधकों की मनोकामना की पूर्ति के लिए शुरू किया गया जो आज तक पूजनीय है । नीमच का सुखानंद धाम मेले के लिए प्रसिद्ध है ।मध्य प्रदेश के चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र में भी मंदाकिनी नदी में हजारों श्रद्धालु डुबकी लगाने आते हैं और मत्स्यगजेंद्रनाथ शंकर भगवान का जलाभिषेक करते हैं । जलाभिषेक के बाद कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा की जाती है।

गुजरात में दिवासो के नाम से हरियाली अमावस्या मनाई जाती है । इस दिन जी का दिया जलाया जाता है जोकि 36 घंटे तक जलता रहता है।दीया जो आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है, बुराई को दूर करता है। देवी पार्वती को भी प्रसन्न करने के लिए दीया जलाया जाता है। कर्नाटक में इस अमावस्या को भीमना अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इसे ज्योति भीमेश्वर व्रत के रूप में भी मनाया जाता है जो महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। अविवाहित कन्याएं भी अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं पति ,भाई और पिता के स्वस्थ जीवन के लिए भी यह व्रत रखती है। यह व्रत लगातार 9 वर्षों तक रखा जाता है और विशेष बात यह है की यहां आटे का दीपक तैयार करते हैं जिसे हम थिम्बत्तू दीया कहा जाता है जो जीवन में प्रकाश का प्रतीक है।

हरियाली अमावस्या प्रकृति के संरक्षण, इसमें रहने वाले जीवों के पालन पोषण, इष्ट देवी -देवताओं को पूजने ,पितरों के प्रति श्रद्धा, समाज परिवार को जोड़ने और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाती है।

सुषमा यदुवंशी
लेखिका, शिक्षविद