पंजाब में गत दिवस जो हुआ वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कफिले को बीच सड़क पर 20 मिनिट रोककर रखना और फिर उनका वापिस लौटना निश्चित रूप से सुरक्षा प्रबंधन की बड़ी चूक है.
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इस घटना पर जिस तरह का दोमुंहापन दिखाया उससे ये साबित हो गया कि वे बहुत ही घटिया मानसिकता वाले व्यक्ति हैं. एक तरफ तो उनका ये कहना कि प्रधानमंत्री की सभा में 70 हजार श्रोताओं की उम्मीद थी लेकिन 700 भी नहीं आये इसलिए वे लौट गये वहीं दूसरी तरफ उन्होंने ये भी माना कि प्रधानमंत्री का रास्ता रोकने वाले किसान थे जिन पर बलप्रयोग नहीं किया जा सकता था.
उल्लेखनीय है कुछ समय पूर्व श्री चन्नी की सभा में विरोध जताने आये किसानों को पुलिस ने घसीट कर भगाया था. मुख्यमंत्री की बदनीयती उस समय खुलकर सामने आ गई जब उन्होंने बिना जांच हुए ही ये सफाई दे डाली कि श्री मोदी की सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई इसलिए किसी पर कार्रवाई करने का सवाल ही नहीं है. हालाँकि बाद में अपराधबोध के दबाव में उन्होंने ये कहा कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को खतरा हुआ तो अपना खून बहा दूंगा.
दूसरी तरफ जिस किसान संगठन ने श्री मोदी के काफिले का रास्ता रोका उसने साफ़ कहा है कि जब तक किसानों की सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं तब तक उनको पंजाब में सभा नहीं करने दी जायेगी. गौरतलब है श्री मोदी को हेलीकाप्टर से सभास्थल जाना था लेकिन मौसम खराब होने से वे बठिंडा हवाई अड्डे से सड़क मार्ग से गन्तव्य की और चले लेकिन रास्ते में किसानों ने रास्ता जाम कर दिया जिनको हटाने के लिए पुलिस ने कोई प्रयास नहीं किया.
प्रधानमंत्री के मार्ग संबंधी जानकारी प्रदर्शनकारियों को किसने दी और जिस स्थान पर रास्ता रोका गया वहां से नजदीक स्थित एक धर्मस्थल में लगे लाउड स्पीकर पर लोगों को रास्ता रोकने कौन बुला रहा था , ये सवाल उठ खड़े हुए हैं. राज्य के पुलिस महानिदेशक ने प्रधानमंत्री के मार्ग को पूरी तरह आवागमन के लिए उपलब्ध बताया था जिसके बाद ही उनका काफिला सड़क मार्ग से निकला.
पंजाब के मुख्यमंत्री के बेहद लापरवाही भरे रवैये के बाद केंद्र सरकार ने मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. इस घटना पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है. लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि कांग्रेस के विधानसभा चुनाव संचालन समिति के मुखिया और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने ही मोर्चा खोलते हुए राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया.
चन्नी सरकार के एक मंत्री राणा गुरजीत ने कैबिनेट की बैठक बुलाने की मांग करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री रास्ता रोका जाना गलत है और राज्य के डीजीपी और गृहमंत्री को वैकल्पिक और सुरक्षित मार्ग का प्रबन्ध करना था तथा इस मामले में सुरक्षा चूक की जिम्मेदारी तय होना चाहिये.
इसी तरह कांग्रेस विधायक परमिंदर पिंकी ने कहा प्रधानमंत्री पार्टी नहीं अपितु पूरे देश का होता है. उन्होंने फरीदकोट और फिरोजपुर के एसएसपी को निलम्बित किये जाने की अटकलों के बीच कहा कि इसके लिए पुलिस महानिदेशक जिम्मेदार हैं जिनको प्रधानमंत्री के कार्यक्रम वाली जगह कैम्प करना चाहिए था. इन बयानों से लगता है कि मुख्यमंत्री अपने ही घर में घिर गये हैं.
कांग्रेस नेताओं को ये समझ में आ रहा है कि इस घटना से प्रदेश सरकार की पहले से खराब छवि और खराब हो गई है जिसका असर आगामी चुनाव में पड़ना तय है. सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि किसानों की आड़ में खालिस्तानी तत्व किसी बड़े खतरे की जमीन तैयार कर रहे हैं. पंजाब तीन दशक पहले भी इसी तरह आतंकवाद के जाल में फंसा था और खालिस्तान के रूप में पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवादी पंजाब को देश से अलग करने पर आमादा थे.
राज्य के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के अलावा देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी खालिस्तानी आतंक के कारण जान गँवा बैठी थीं. पंजाब में हजारों निर्दोष मारे गये. इंदिरा जी की हत्या के बाद दिल्ली में हुए दंगों में हजारों सिखों की नृशंस हत्या की गई.
यद्यपि पंजाब के राष्ट्रवादी लोगों ने उस षडयंत्र को विफल कर दिया परन्तु अलगाववाद की भावना देश से दूर कैनेडा में फलती-फूलती रही जिसे किसान आन्दोलन के बहाने जोर पकड़ने का अवसर मिल गया.
दिल्ली में चल रहा धरना खत्म होने के बाद भी पंजाब में किसान आन्दोलन जिस तरह जारी है वह जाँच का विषय है क्योंकि उसका कोई संगठित रूप नजर नहीं आ रहा | हाल ही में विस्फोट के साथ ही निहंगों द्वारा हत्या किये जाने की वारदातें सामने आई हैं कांग्रेस पार्टी की अंतर्कलह के कारण चन्नी सरकार का शासन और प्रशासन पर नियन्त्रण पूरी तरह समाप्त हो चुका है.
प्रधानमंत्री के काफिले को गत दिवस जिस तरह रोका गया वह साधारण बात नहीं थी किन्तु श्री चन्नी ने उस पर जिस तरह से प्रतिक्रिया दी वह उनके सस्तेपन का प्रमाण ही है. पंजाब जैसे सीमावर्ती और संवेदनशील राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में श्री चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नवजोत सिंह सिद्धू को बिठाना पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की निर्णय क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए काफी है.
कल की घटना के बाद राज्य में पार्टी और सरकार के भीतर से जो बयान आये हैं वे आँखें खोलने वाले हैं. पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का क्या हश्र होगा ये उतनी बड़ी चिंता का विषय नहीं है जितना ये कि राज्य सरकार प्रधानमंत्री के आवागमन का इंतजाम तक नहीं कर सकी.
पाकिस्तान की सीमा करीब होने और पंजाब में हाल ही में घटी घटनाओं के कारण कल जो भी हुआ उसे महज किसानों के आन्दोलन से जोड़कर शांत हो जाना सही नहीं होगा. प्रधानमंत्री के कार्यक्रम पहले भी रद्द होते रहे हैं परंतु ये पहला वाकया है जब उनका रास्ता रोककर वापिस लौटने मजबूर किया गया.
बठिंडा लौटकर उन्होंने मुख्यमंत्री पर जो तंज कसा उसे उनकी झल्लाहट भी कहा जा सकता है किन्तु देश के लोकतंत्र और संघीय ढांचे के साथ ही सुरक्षा के मद्देनजर इस घटना की तह में जाना बेहद जरूरी है. केंद्र सरकार को चाहिए कि वह हर कोण से जांच करवाए क्योंकि जिस देश में प्रधानमंत्री निर्बाध आवागमन नहीं कर सकता वहां आम आदमी की स्थिति समझी जा सकती है.
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की मांग कहाँ तक जायज है ये कहना फ़िलहाल कठिन है. लेकिन वे भी पंजाब को इस हालत में लाने के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं.
किसान आन्दोलन रूपी अपने सिरदर्द को दिल्ली भेजकर उन्होंने उसे पंजाब विरुद्ध केंद्र का जो रूप दिया ये उसका ही प्रतिफल है. आने वाले दिन पंजाब के लिए काफ़ी संवेदनशील होंगे. चुनाव के दौरान होने वाली राजनीतिक खींचातानी देश के सम्मान और सुरक्षा पर भारी न पड़ जाए ये चिंता का विषय है.
चुनाव तो आते-जाते रहेंगे किन्तु इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकती है और खालिस्तानी आतंकवाद को पुनर्जीवित करने वालों का मकसद भी यही है.