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प्रस्तुत है विन्ध्य में जंग ए आजादी के इतिहास की चन्द लाइने !

आज का रीवा-शहडोल संयुक्त संभाग का भूभाग (डिंडोरी तहसील को छोड कर) रहा है बघेल युगीन, विन्ध्य-क्षेत्र। इसकी सब से बड़ी रियासत रही है रीवा और संयुक्त रही हैं कोठी, सोहाबल, नागौद, मैहर, बरौंधा के साथ ही जागीरें जसो, रयगाँव व अन्य चार छोटी जागीरें। रीमाँ नाम के बघेल राज्य की राजधानी स्थापित हुई रीमाँ। प्रायः तीन सदियो के अंतराल में चलता रीमाँ नाम, अंततः बदल कर हो गया रीवा।

१९वीं सदी आधी बीत चुकी थी, अचानक रीवा में एक घटना घटी। वहाँ पदस्थ पोलेटिकल एजेन्ट, ओसबार्न (असबरन) के आदेश से एक तैलंग ब्राह्मण को जासूसी का अभियोग लगा कर जेल में बंद कर दिया गया। रीवा के आजादी के दीवानों को शासन के खिलाफ विरोध करने का एक अच्छा धार्मिक बहाना मिल गया। वे एक जुट होकर ‘जय ब्रह्मण देव’ के रक्षा का नारा लगाते सड़क पर निकले, भारी जन समूह जुटता गया और जाकर ‘पोलेटिकल एजेन्ट’ के बँगले को घेर लिया लेकिन तब तक ‘पोलेटिकल एजेन्ट’ भाग चुका था ।

बाद में उसने ठाकुर रणमत सिंह को इस काण्ड का अगुआ निरूपित करते, उनके कई अन्य साथियों को भी राज्य छोड़ कर बाहर चले जाने का आदेश, राज्य सरकार से प्रसारित करा दिया। रणमत सिंह ने रीवा राज्य के सरहद से बाहर चित्रकूट के जंगल में रहते; आजादी के दीवानों की फौज का गठन किया। उनके खास साथी थे श्यामशाह, धीर सिंह, पंजाब सिंह, पहलवान सिंह, बृन्दावन कहार, तालिब बेग, शहमत खाँ और लोचन सिंह चँदेल।

Delhi Day – Gurkhas at the Siege of Delhi, 1857 | Welcome to the Gurkha Brigade Association

ठाकुर रणमत सिंह का पहला धावा कम्पनी सरकार के नागौद की ’रेजिमेन्ट’ पर हुआ। नागौद उन दिनो हुआ करता था ‘बुन्देल खण्ड पोलेटिकल एजेन्सी’ का मुख्यालय। रणमत सिंह की वाहिनी ने उसे लूट लिया। ‘अस्टिेन्ट पोलेटिकल एजेन्ट’ मेजर एलिस भागा और जा पहुँचा अजयगढ़। उसका पीछा करते रणमत सिंह अजयगढ़ की ओर बढ़ रहे थे। बीच राह भेलसाँय में कम्पनी सरकार और अजयगढ़ राज्य की संयुक्त सेना से मुठभेड़ हो गयी। सेना आधुनिक आयुध और तोप युक्त थी। सरगना केसरी सिंह, रणमत सिंह द्वारा मारा गया, किन्तु वे भी बुरी तरह घायल हो वे भूमिगत हो गए।

कम्पनी सरकार ने उनके लिए रुपये 2000 का इनाम घोषित किया। घायल रणमत सिंह नागौद रहते अपनी सेहत सुधार रहे थे। चलने-फिरने लायक हुए तो पुनः विश्वस्त साथियों को जुटा कर चल दिए, उस काल के जंगे आजादी के महानायक तात्या टोपे के साथ हो जाने को। जिनसे खत-किताबत हो चुकी थी।

तात्याटोपे बुन्देल खण्ड की रियासतें हथिया रहे थे। रियासत चरखारी को हथिया लिया था। रणमत सिंह आगे बढ़ें उनके रास्ते मे ही थी; कम्पनी सरकार की नौगाँव छावनी, लगे हाथ उसे लूट लिया। उसी समय जंगे आजादी के नायक कुँवर सिंह भी बिहार से कूच कर बढ़ रहे थे तात्याटोपे से मिल जाने को। कम्पनी सरकार की फौज उन्हे आगे न बढ़ने देने के लिए जगह जगह तैनात थी जो बाधक बन गयी रणमत सिंह के राह की भी। राह बदल रणमत सिंह नेे पग बढ़ाये अपने पुराने ठिकाने चित्रकूट की ओर। जंगल में टकरा गयी कम्पनी सरकार की एक फौजी टुकड़ी। उसे निपटा कर रणमत सिंह ने पुनः राह बदली, चल दिए जंगे आजादी के सिपाही; अपने मित्र रणजीतराय दीक्षित की डभौरा गढ़ी की ओर। उनके पीछे ही तो थी बाँदा से चली आ रही कम्पनी सरकार की फौज। बरसने लगे गोले गोले गढ़ी पर। इतने कि गढ़ी घ्वस्त हो गई।

किन्तु न मिले जिन्दा या मुर्दा, रंजीतराय और रणमत सिंह। फौज पहुँचने के पहले ही दोनो गायब हो गए थे; न जाने कहाँ। बाद में कम्पनी सरकार को सुराग मिला कि रणमत सिंह क्योटी की गढ़ी में छिपे हैं। राजकीय फौज को हुक्म हुआ ‘गढ़ी पर हमला बोल, रणमत सिंह को जिन्दा या मुर्दा पेश करो, मदद के लिए कम्पनी की फौजी टुकड़ी भेजी जा रही है।’जंगे आजादी का दल क्योटी की गढ़ी में था; जब दोनो फौजों ने गढ़ी पर धावा बोला। बच निकलने के फेर में दल बाहर आया, झपट पड़ा ‘कम्पनी कमाण्डर’ रणमत सिंह पर। रणमत की तलवार चली और हमलावर का कटा सर दूर जा गिरा। रणमत सिंह जंगल में घुसे और गायब हो गए। साथी भी तितर बितर हो गए।इसके पूर्व की घटना है -रणमत सिंह ने रीवा के दक्षिणी इलाके सोहागपुर के ठाकुर गरुण सिंह को उकसाया, जिन्होने हथियार उठा कर बगावत कर दी।

लिहाजा सिपाही सिंह धौवा के कमाण्ड में रीवा की फौज ने जाकर गढ़ी पर गोले बर्षाये। गरुण सिंह ने हथियार डाल दिए। मैहर का राजा नाबालिग था। उसके चाचा बागी हो गए। अपने रिश्तेदार जूरा, कन्हवाह और कंचनपुर के ठिकाने दारों के साथ हथियार उठा लिए। इनको सबक सिखाने के लिए रीवा की फौज ने धावा बोला। लूट-पाट मचाते, गढि़यों को कब्जिआते भारी आतंक मचाया लिहाजा बागी तितर-बितर हो गए। नागौद की छावनी बघेलखण्ड और बुँदेलखण्ड के बीच में स्थिति थी। वहाँ के देशी सिपाही बागी हो गए।

रोज कोई अफवाह फैलाई जाय और रोज किसी न किसी वारदात को अंजाम दिया जाय। कभी जेल के कैदी रिहा किये जा रहे हैं, वहाँ के चैकीदार को मार कर हथियार लूट लिये गये हैं, कभी अंग्रेज़ हाकिमों को घेरा जा रहा है। अंजाम, अंगरक्षक मार दिए जा रहे हैं। कभी अंग्रेज़ हाकिमों के बँगलो पर धाबा बोल कर लूटा जा रहा है। कुछ न पाने पर आग लगाई जा रही है। ’पोलेटिकल रेसिडेंस’ भी आग के हवाले कर दिया गया था। अंग्रेज़ हाकिमों ने असुरक्षा को देखते हुए अपने परिवार जनो को अन्यत्र भेज दिया था। एजेन्सी का एक हाकिम कोल्स, नागौद राजा के किले में शरण लिए रहा। एक कम्पनी को कालिंजर जाने का हुक्म जारी हुआ। कम्पनी ने ‘तुम्हारे हुक्म की ऐसी-तैसी’ कहते जाने से इन्कार कर दिया। कुएँ में डलबा दिए गए थे हथियार, इस डर से कि कहीं बागी सिपाही इन्हे छिना न लें। भयंकर भयभीत थे वहाँ पदस्थ कम्पनी सरकार के अँग्रेज हाकिम और नागौदा के राजा भी। जबकि बागी सिपाही शहर की ओर रुख नहीं कर रहे थे।

नागौद के राजा ने रीवा राजा को पत्र भेज कर फौज की एक टुकड़ी की मांग की थी। घिघ्घी बँधी हुई थी नागौद पदस्थ ’असिसटैन्ट पोलेटिकल एजेन्ट’ मेजर एलियस की। बार बार रीवा के ’पोलेटिकल एजेन्ट’ को मदद के जिए पत्र लिखा। एक बार तो दो सिपाहियों ने उस पर झपट्टा मारा। उनमें से एक को तो तमंचे से मार गिराया, दूूसरा भाग गया। बगाबत भड़काने के शक पर दो भारतीय सूबेदार, दो सारजेन्टो और लैंसनायक शोख पूरन को भी शूट कर दिया गया था। अंततः मेजर एलियस छिपते छिपाते नागौद से भाग गया था।

नागौद छावनी पर धाबा बोलने के लिए रणमत सिंह को आमंत्रित किया था जसो के जागीरदार ईश्वरी सिंह, कोनी के होरिल सिंह तथा अमकुई, कोटा और बमुरहिया ठकुरइस के लोगों ने। उनके कंधे से कंधा भिड़ा कर भेलसाँव के जंग में शहीद हुए थे- करजाद अली, मुकुन्द सिंह, छत्तर सिंह, रणछोर सिंह एवं गंदर्भ सिंह। इस जंगे आजादी के मुखिया सिपहसालार रहे हैं अमर शहीद रणमत सिंह मददगार सिपहसालार अमर शहीद श्यामशाह। जिनकी याद हम करते हैं रीवा नगर में खड़े ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय तथा श्यामशाह चिकित्सा महाविद्यालयों को देख कर। कम्पनी सरकार की काँटा से काँटा निकालने की शातिर चाल ने जंग समन का खिलौना बनाया रीवा राजा रघुराज सिंह को। इनाम में वापस किया उनके पुरखों द्वारा गवाँया भूभाग जो है वर्तमान में म0प्र0 का नवनिर्मित राजस्व संभाग शहडोल, बना है राजनीत का अखाड़ा।

मौलाना रहमान अली की ’तवारीख-ए-बघेलखण्ड (हिन्दी तर्जुमा) के पन्नो पर दर्ज है इबारत-‘1-धीर सिंह साकिन कछियाटोला बड़गड़ में फौज से सरकार की शिकस्त खाई और मफकूहुल खबर होकर मर गया।

2-पंजाब सिंह साकिन मझियार जिला अँग्रेजी में गिरफ्तार होकर जिला बाँदा को भेजा गया मुकाम करबी में बाद तहकीकात कामिल रिहा होकर अपने घर आया।

3-रनमत सिंह साकिन रीवाँ बमोकाम रीवाँ हबिदयाल मीर मुन्शी एजेन्टी के हुजूर में केप्टन असबरन साहब बहादुर के हाजिर हुवा साहब मौसूफ ने उसकी पालकी सवार करके बाहिरासत हो सौ नफर सिपाहियान बहमराही हारौल इशरजीत सिंह जिला बाँदा को रवाना किया तहकीकात से कत्ल करना किसी योरोपियन का उसके जिम्मे साबित हुवा इसलिए अगस्त सन् 1860 ई0 में उसने बमुकाम बाँदा फाँसी पाई।

4-स्यामसाह साकिन खमरिया को बलबीर सिंह साकिन मनकीसर इलाका रामनगर ने कत्ल कर के लाश उसकी केप्टन असबरन साहब बहादुर के हुजूर में भेजी।

इसी से संबंधित कर्नल जनार्दन सिंह लिखित ‘रीवा राज्य का सैनिक इतिहास में इबारत दर्ज है- रणमत सिंह को पकड़ने के लिए ब्रिटिस सरकार का एक रिसाला बाँदा से कयोटी आया। कर्नल कमांडेट अंग्रेज आफिसर था जो रणमत सिंह के हाथ से क्योटी मेंमारा गया और रणमत सिंह जंगल लेकर गायब हो गये। तब रिसाला हताश होकर वापस गया। कुछ दिनो पश्चात रणमत सिंह राजकीय सेना द्वारा गिरफ्तार होकर ब्रिटिस अफीसरों के सिपुर्द बाँदा में किये गये। पता नहीं कि फिर उन्हे क्या हुुआ।

रणमत सिंह के चाचा श्यामशाह साकिन खम्हरिया अपने भतीजे के साथ बागी थे। इनका राज्य के हुक्म से देवी सिंह बघेल साकिन बुड़बा ने मारा था और इसके उपलक्ष में हाथी रखने की शर्त पर 600/(रुपए) सालाना की नौकरी इनको दी गई थी।‘

इतिहास गवाह है कि जब जब भारत देश ने विदेशियों के खिलाफ जंग लड़ी, तब तब मात खाई अपने यहाँ के गद्दारो के गद्दारी से। सन 1857 का जंगे आजादी को फतह किया कम्पनी सरकार ने और अपने सारे सत्व तथा अधिकार सौंप दिए ब्रिटेन की साम्राज्ञी विक्टोरिया को। तब भारत देश की सरकार हो गई ‘ब्रिटिश इण्डिया गवर्नमेन्ट’। दिनांक एक नवंबर को साम्राज्ञी विक्टोरिया ने घोषणा की, जिसका हिन्दी तर्जुमा है- ‘हम उन सब संधियों तथा इकरारों को स्वीकार करते हैं जो ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ द्वारा अथवा उसकी ओर से लिए गये हैं, हम उनपर पूर्ण रूप से पावंद रहेंगे। हम अपने वर्तमान क्षत्रे़ में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं चाहते।’

 लेखक:- उमाशंकर तिवारी “सूरज”