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अमृत महोत्सव: भूली बिसरी यादें

इस तथ्यात्मक विवरण को स्वीकार किया जाने लगा है कि देश की आजादी के लिये संघर्ष और आन्दोलन की प्रक्रिया, और उसके तहत उठाये जाने वाले क्रान्तिकारियों के कदमों की आहट प्रचारित सन् 1857 की क्रान्ति से पूर्व से ही स्वाभिमानी देशभक्त युवकों ने उठाने शुरू कर दिये थे। इनमें दो वारदातों का विवरण उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किये जाने हेतु मेरी बाध्यता बन गयी है।

सन् 1818 में उड़ीसा के वनवासी बंधुओं का पाईका सशस्त्र विद्रोह तथा सनृ 1848 के 14 अगस्त की रात्रि को पठानकोट से उत्तर की ओर स्थित शाहपुर कंडी के दुर्ग को  24 वर्षीय रामसिंह पठानिया के नेतृत्व में हमलाकर (ब्रिटिश शासन के कब्जे वाले दुर्ग को) कब्जा कर लेना शामिल है। इन दोनों हमलों में ब्रिटिश सैनिकों को भारी संख्या में मौत के घाट उतार दिया गया था।

इस तरह देश के कौने- कौने में अनेकों घटनायें-वारदातें उत्साही देश भक्तों के प्रयासों से छुटपुट या संगठित रूप से घटती रहीं हैं। इस स्वराज्य को पा लेने की उत्कृट लालसा के अंतर्गत प्रेरित करने वाला अहं देशप्रेम का भाव यह था ‘‘अंग्रेजो का बढ़ता जा रहा हस्तक्षेप और जीवन-मूल्यों पर किये जा रहे सुनियोजित हमलों के विरूद्ध सामान्य जन के साथ साथ जन जातीय समाज का भी उठ खड़ा होना। इस विरोध के दौरान अंग्रेजों ने भी क्रूरता की सभी हदें पार कर दी थी और भारी नरसंहार भी किया गया। लेकिन लोग पीछे नहीं हटे। यही एक लम्बे समय से चले आ रहे स्वातंत्र्य समर का सुफल था।’’

जब कपूर आयोग ने गांधीजी की हत्या के मामले में सावरकर की भूमिका को संदिग्ध  बताया

इस प्रकार के अनेक वीरता एवं साहसपूर्ण जनता के हौसलों का पूर्ण विवरण एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास ‘‘भारतीय क्रान्तिकारियों के बीच क्रान्तिवीर सावरकर द्वारा लिखा हुआ अत्यन्त लोकप्रिय हो गया था। स्वयं भगतसिंह ने इसे प्रकाशित कराकर इसकी सैकड़ों प्रतियाँ वितरित की थीं।’’

देश भर में एक, दो नहीं वरन् पाँच सौ से अधिक क्रान्तिकारी संगठन इस पावन कार्य में संलग्न थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष बाबू और उनकी आजाद हिन्द फौज ने अत्यन्त प्रभावी व श्लाधनीय भूमिका के अंतर्गत स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार का भी गठन कर लिया था। आजाद हिन्द फौज ने पूर्वोत्तर भारत के अनेक भागों पर अधिकार भी कर लिया था।

इन तमाम प्रशंसनीय और साहसपूर्ण कार्यों के माध्यम से देश को आजादी तो मिली लेकिन न भुलाये जा सकने वाले जख्मों, दर्द और पीड़ा देने वाले दुर्भाग्य पूर्ण विभाजन के साथ। परिणाम स्वरूप इस विभाजन से लाखों लोगों को असीमिति दुःख और प्रताड़ना झेलने मजबूर होना पड़ा। यह बंटवारा  भुलाये जा सकने वाला नहीं है।

आज मनाया जाने वाला आजादी का अमृत महोत्सव बलिदानियों, देशभक्तों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का पावन अवसर है। क्योंकि उसे नफरत और हिंसा की वजह से लाखों भाई-बहिनों को न केवल विस्थापन झेलना पड़ा वरन् मूल्यवान जानें भी गंवानी पड़ी और असहनीय पीड़ा भी झेलना पड़ी।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र:- 9424744170