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प्राचीन भारत: समरसता का समर्थक

चतुर्वव्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः श्रीमद्भगवद्गीता की ये अमूल्य पंक्तियाँ सिद्ध करती है कि विश्व में हिन्दू चिन्तन सबसे विशिष्ट और अनोखा है। यह हिन्दू समाज का दुर्भाग्य है कि उसका श्रेष्ठ तत्व ज्ञान और व्यवहार दोनों में अलग-अलग दिखाई देने लगे। हम सब भारत माता के पुत्र हैं, यह भाव सभी में उत्पन्न हो। यही तो संघ का भी लक्ष्य है।

हिन्दवो सोदरा सर्वे न हिन्दू पतितोभवेत्ः मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम् मंत्रः समानता संघ के स्वयंसेवकों में हरिजन-गैर-हरिजन जैसा कोई विचार नहीं होता। हम सब हिन्दू हैं। बाबा साहब भी यही कहा करते थे- ‘हमें अब अपना हृदय पवित्र करना चाहिये’, सद्गुणों की ओर हमारा खिंचाव हो, इस तरह हमें धार्मिक बनना चाहिये हिन्दू समानता की कल्पना सर्वांगीण समरसता की कल्पना है। उसकी मूलभूत श्रद्धा यह है कि सभी में एक ही आत्मा है, सभी में भगवान का अंश है, इसलिये कोई ऊँचनीच नहीं है। सांख्यदर्शन (कारिका 5.7) में स्पष्ट है कि सारे मनुष्य एक ही जाति के हैं, मानजाति के हैं।

भारतीय संस्कृति के विनाश में इस्लाम का सबसे बड़ा यांगदान। छोटे-मोटे जातिपंथ सम्प्रदाय के भेद से ऊपर उठकर हिन्दू एकजुट हो सकते हैं, वे आगे बढ़ सकते हैं। समता -मूलक है, मूल भारतीय चिन्तन। हमारे अनेकानेक प्राचीन धर्मग्रंथों में ‘शूद्र’ वर्ण को सम्मानित स्थान पर बताया गया है। वे राज्य की प्रगति के सूत्रधार बताये गये हैं। शासन संचालन में उनकी महती भूमिका सर्वज्ञात थी। इस वर्ग से ‘अस्पृश्यता’ का दुराग्रह रखने जैसा कोई अनुदेश या आग्रह हमारी सनातन संस्कृति में कहीं नही था।

सम्राट शांतनु ने एक मछुआरे की पुत्री सत्यवती से विवाह किया। उनका बेटा ही राजा बने, इसलिए देवव्रत (भीष्म पितामह) ने विवाह नहीं करने की भीष्म प्रतिज्ञा ली। सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?

महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछुआरे थे, पर महर्षि बन गए। वे गुरूकुल चलाते थे। विदुर, जिन्हें महापंडित कहा जाता है, एक दासी के पुत्र थे। वे हस्तिनापुर से महामंत्री बने। उनकी लिखी हुई विदुर नीति राजनीति का एक महाग्रंथ है। भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया। श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वाले परिवार से थे। उनके भाई बलराम खेती करते थे और हमेशा हल साथ रखते थे। यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रांतों पर शासन किया और श्रीकृष्ण सबके पूजनीय हैं। उन्होंनें विश्व का गीता जैसा ग्रंथ दिया।

राम के साथ वनवासी निषादराज गुरूकुल में पढ़ते थे। उनके पुत्र लव-कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरूकुल में पढे, ये महर्षि वनवासी थे और पहले डाकू थे। यह हो गई वैदिक काल की बात। स्पष्ट है कि कोई किसी का शोषण नहीं करता था। सबको शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। अपनी योग्यता के आधार पर कोई भी शीर्ष पद तक पहुंच सकता था। वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे, जो बदले जा सकते थे। आज के अर्थशास्त्र में इसे ही डिविजन ऑफ लेबर यानी श्रम विभाजन कहते हैं।

इसी तरह, प्राचीन काल में भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा, वे जाति से नाई थे। नन्द वंश की शुरूआत महापùनन्द ने की थी, जो राजा के नाई थे। बाद में वे राजा बन गए और फिर उनके वंशज क्षत्रिय ही कहलाए। उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरूआत चन्द्रगुप् से हुई, जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे। एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें सम्राट बनाया।

506 साल देश पर मौर्यां का राज रहा। फिर गुप्तवंश का राज आया, जो अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे। गुप्तों का राज 140 साल तक रहा। प्राचीन काल में केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़कर 92 प्रतिशत समय तक देश में शासन उन्हीं का रहा, जिन्हें आज दलित- पिछड़ा कहते हैं, तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शेषण वाली बात नहीं है।

फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय तो सन् 1100-1750 ई. तक हैं। इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा। अंत में मराठों का उदय हुआ। बाजीराव पेशवा, जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया। अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थीं। उन्होंने ढेरों मंदिर और गुरूकुल बनवाए।

मीराबाई जो कि राजपूत थीं। उनके गुरू रविदास एक चर्मकार थे। रविदास के गुरू रामानन्द, जो कि ब्राह्मण थे। यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है। मुगलकाल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी कुराीतियों की शुरूआत हुई।

1800-1947 ई. तक अंग्रेजों का शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ। ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत उन्होंने ऐसा किया। अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब ‘कास्ट ऑफ माइंड’ में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत के बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इसका राजनीतिकरण किया। इन हजारों सालों के दौरान देश में कई विदेशी आए, जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर कितावें लिखीं, जैसे कि मेगास्थनीज की ‘इंडिका’, फाहियान, व्हेनत्सांग और अलबरूनी आदि ने कहीं भी नहीं लिखा कि यहां किसी का शोषण होता था।

योगी आदित्यनाथ,जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं। पिछड़ी जाति की उमा भारती महामंडलेश्वर रहीं हैं। जन्म आधारित जातीय व्यवस्था हिंदुओं को कमजोर करने के लिए लाई गई थी। इसलिए हिंदुस्थानी (हिन्दू धर्म) होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं।

लेखक – डाॅ. किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र – 9424744170