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बिखर रहा है वामपंथियों का ताश का महल

 विज्ञान और धर्म का जो टकराव वामपंथियों की सोच ने पैदा किया है, वह पूरी तरह झूठा एवं बनावटी है। धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक रहे हैं और आगे भी रहेंगे। वैज्ञानिक उपलब्धियों ने मानवजीवन को सहज और सुविधापूर्ण बनाया है।

आज भी प्रकृति के अनेक ऐसे रहस्य हैं, जिसे विज्ञान सुलझाने में असफल है। पूर्व राष्ट्रपति स्व. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक थे, जिनका अपना मौलिक चिन्तन था। उन्होंने कभी ईश्वर के प्रति अनास्था व्यक्त नहीं कीं।

औरंगजेब को सन्त बताने वाली आड्री ट्रश्क, श्रीरामजन्मभूमि के खिलाफ जहरीली डाक्यूमेंट्री बनाने वाले आनंद पटवर्धन, रक्षाबंधन को हत्यारों का त्यौहार बताने वाली कविता कृष्णन, नक्सल समर्थक नंदिनी सुन्दर आदि ऐसे कुछ और भी चर्चित नाम हैं, जो हिन्दुओं हिन्दू विचार धारा के घुर-विरोधी हैं। इनके द्वारा हिन्दुत्व के खिलाफ खौफनाक विषवमन जारी रहता है। हिटलर की तरह इनका उद्देश्य सिर्फ प्रोपेगेन्डा आधारित है।

प्रख्यात रूसी साहित्यकार लियो टालस्ताय (1828-1910) ने कहा था- ‘‘हिन्दू और हिन्दुत्व ही एक दिन दुनिया पर राज करेंगे, क्योंकि इन्हीं में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है।’’

रामायण को काल्पनिक कथा बतलाने वाले वामपंथी इतिहासकारों की झूठ पर झूठ से पर्दे उठने शुरू हो गये हैं। इन तथाकथित झूठों के सरदारों ने रामायण को काल्पनिक कथा बताकर, उलट-पुलट करने की नापाक कोशिशें की थी। कतिपय झूठ के सौदागरों ने तो अपनी अकल की लियाकत को दाँव पर लगाते हुये श्रीराम को ही काल्पनिक बता दिया था। इस झूठ को बेशर्मी के साथ सर्वोच्च न्यायालय की देहली तक पहुँचाने में शर्म का अनुभव नहीं किया।

रामायण हमारा पवित्र इतिहास है। एक एक शब्द में वैज्ञानिक दृष्टिकोंण हैं, तार्किक भरोसे लायक दृष्टि भी। यही कारण है कि भारतीय इतिहास-संस्कृति पर अब भारतीयों के साथ साथ पश्चिम के लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। जबकि रामायण को काल्पनिक कहने वाले अपना मुँह चुरा रहे हैं, बोलती बंद है। विश्वसनीयता खो चुके हैं। मंदिर-मंदिर भटक रहे हैं और कुर्ते के ऊपर जनेऊ धारण कर भारतीय और सनातनी बनने का ढोंग करने मजबूर हैं।

रामायण की किसी भी घटना की ओर ध्यान दें तो पता चलता है कि उसमें कितनी गहरी सोच छिपी है और कितनी दूरदृष्टि और वैज्ञानिकता से ओतप्रोत है। महाबली रावण ने धोखे से माँ सीता का अपहरण किया और वापिस लौटा लंका। अपहरण हुआ था महाराष्ट्र प्रदेश के नासिक में और वहाँ से हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आन्ध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुँचा था।

रामायण की इस घटना और लंका तक जाने के सीधे मार्ग की जानकारी उस समय के लेखक, ऋषि-मुनियों, गं्रथकारों को सटीक प्रमाण सहित रही होगी-इस तथ्य को क्या झुठलाया जा सकता है, जबकि आज विज्ञान ने वे सब यंत्र सुलभ करा दिये हैं, जिनसे इस प्रकार की सोच-समझ-तार्किकता को सहज ही सुलझाया जा सकता है। क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि लाखों वर्ष पहले यह सटीक जानकारी थी?

वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के साथ कितना छल किया, कितना प्रपंच फैलाया इसे आज के समय में ठीक से समझा जा सकता है। क्या उस युग में गूगल मेंप था? जिसके माध्यम से मार्ग का पता लगाया जा सकता?

रामायण महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित अद्भुत महाकाव्य है, जिसके रचयिता को पंचवटी से श्रीलंका तक के सबसे सीधे और छोटे-सरल मार्ग की जानकारी थी-इसे क्या आज झुठलाया जा सकता है। वेद-ग्रंथों को साधारण कथा-कहानी की किताब कहने वाले शर्मिन्दा हों, चाहे न हों।

आज से 500 साल पहले श्रीरामचरित मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास महाराज को कैसे पता चल गया होगा कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी कितनी है? (इसी का उदाहरण है- जुग सहस्त्र योजन पर भानु) हनुमान चालीसा। जबकि आधुनिकतम यंत्रों के उपलब्ध होने के बाद नासा द्वारा कुछ वर्षों पूर्व ही इस दूरी का पता लगाया गया है।

ये आरोप तो लगाया जा सकता है कि भारत अपने ज्ञान- विज्ञान संस्कृति को भूल चुका है। लेकिन रामायण तात्विक, तथ्यों भरी हुयी है, जिसके माध्यम से महर्षि वाल्मीकि जैसे उद्भट विद्वानों ने सत्यतापूर्ण इतिहास की अभिव्यक्ति की है, जिसमें वैज्ञानिक प्रमाण भी उस सच्चाई की गहरायी तक पाठकों को ले जाते हैं।

वामपंथी इतिहासकार लम्बे समय से भारतीय इतिहास पर कुदृष्टि डाले हुये रहे और उसे कपोल कल्पित सिद्ध करने की कोशिश करते रहे। वे स्वयं भ्रमित थे। उन्होंने भारतीयों को भ्रमित करने की प्राण-पण से कोशिश की। उनमें न तो किसी घटना की प्रमाणिकता को चुनौती देने की क्षमता है, न ही उनकी जानकारी तथ्यों तक ले जाने में समर्थ हैं।

पाश्चात्य विद्वान हमारे वेद- शास्त्रों का गहन अध्ययन करने में जुटे है, और हिन्दुत्व की सही और सटीक व्याख्या भी करते हैं। जाहिल सोच वालों से क्या उम्मीद की जा सकती है, कट्टर इस्लामी सोच रखने वाला, दो-दो बीबियों को तलाक देने वाला व्यक्ति ‘सत्यमेव जयते’ नाम से हिन्दू मान्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।

देश के सेकुलर और वामपंथी बुद्धिजीवी जोर-जोर से गंगा-जमुनी तहजीव की वकालत करते हैं, जबकि ऐसी कोई संस्कृति है ही नहीं। मोहन जोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन के परिणामस्वरूप जो सच उजागर हुआ है। वह तो इस बात का साक्षी ही है कि उस काल से अब तक हमारा सांस्कृतिक प्रवाह शाश्वत है। यह हिन्दू धारा है।

हिन्दू धर्म, दर्शन, संस्कृति के गहन अध्येता डेविड फ्राॅली उपाख्य पं. वामदेव शास्त्री का स्पष्ट मानना है कि आधुनिक भाषा में हिन्दू धर्म की पुनः प्रस्तुति होने के बाद से यह विश्व के अनेक खुले विचार वाले लोगों में लोकप्रिय, प्रगत, और भविष्योन्मुख बनकर उभरा है।

परमाणुवाद के जनक: आचार्य कणाद-
वैशेषिक दर्शन सूत्र के 10 वें अध्याय में पदार्थ के सूक्ष्मतम सूत्र की व्याख्या करते हुये ऋषि एवं आचार्य कणाद ने ‘‘परमाणुओं को सतत् गतिशील बताया है, तथा द्रव्य के संरक्षण की बात कही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि परमाणु कभी स्वतंत्र नहीं रह सकते। ईसापूर्व 600 में परमाणु संबंधी यह प्रतिपादन जान डाल्टन की संकल्पना से मेल खाता है। इस बात की पृष्टि प्रख्यात यूरोपीय इतिहासकार टी.एन. कोलबुर्क ने की है।’’

मानव जीवन के विकास की यात्रा काल-कालांतरण में आयी विकट चुनौतियों का सामना करते हुये अन्य प्राणियों की तुलना में अग्रिम पंक्ति में खड़ा तो कर चुकी है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियाँ मानव के अस्तित्व को ही संकट की चेतावनी देती आगाह करती नजर आ रही है।

मनुष्य का मनुष्य बनाने का एक ही मार्ग है, और वह है धर्म के आश्रय में जाना। यह धर्म सनातन धर्म है। यहीं से शिक्षा मिलती है कि सृष्टि की रचना के मूल में एकत्व है।

वाल्मीकि रामायण अपने आप में एक विशाल ग्रंथ है। रामायण की सम्पूर्ण समझ मानवता का समृद्ध कर सकती है। इसमें निहित मूल्य कालातीत हैं। गहन अध्ययन और द्वेष मुक्त एजेन्डे को लेकर दुष्प्रचार में संलग्न इन वामपंथियों का यह तथ्यात्मक जानकारी भी होना चाहिये थी कि ऋषि कन्या वाक् जैसी विदुषी महिलाओं ने इस देश में जन्म लिया था और जगत् की उत्पत्ति का रहस्य को भी प्रकट किया था।

आज ब्रह्माण्ड का अध्ययन करने वाली विज्ञान की इस शाखा का नाम (COSMOLOGY) है। सृष्टि की उत्पत्ति के सिद्धान्त का निरूपण ऋग्वेद के दशम मंडल के 125वें सूक्त में इनका समावेश हुआ है। श्री दुर्गाशप्तशती के ‘‘श्री देव्यथर्वशीर्षम्’’ में भी ये मंत्र आये हैं।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170