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बढ़ती भीषण गर्मी – डाॅ. किशन कछवाहा

इस वर्ष के मार्च के महीने से भीषण गर्मी ने जो निरन्तर बढ़त बनाकर रखी है, उससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि तापमान 50 डिग्री सेंल्सियस की सीमा को भी पार कर आगे जा सकता है। भारत के पश्चिम मध्य, पूर्वोत्तर भारत के उत्तरी भागों को यह तापमान परेशानी में डाल सकता है।

इस मामले में नासा के एक उपग्रह द्वारा ली गयी तस्वीरें तो और भी अधिक भय पैदा करने वाली प्रतीत होती हैं। कुछ हिस्सों में यह तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक दस्तक दे सकता है। वैज्ञानिक परीक्षण इसे मानव शरीर की सहन शक्ति के बाहर मानते हैं।

पड़ोसी पाकिस्तान के कतिपय इलाके, बलूचिस्तान क्षेत्र के तुरबत आदि क्षेत्रों में गत कुछ सप्ताहों से तापमान 50 के पार बना हुआ है।

लंदन इम्पीरियल काॅलेज के डाॅ. मरियम जकारिया और डाॅ. फ्रेडरिक ओेट्टो का मानना है कि भारत में बढ़ता यह उच्च तापमान जलवायु परिवर्तन की परिणाम है।

डाॅ. ओट्टो का विचार है कि जब तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन खत्म नहीं किया जाता, तब तक भारत एवं अन्य स्थानों पर महसूस किये जा रहे लू के थपेड़ों को सहना ही पड़ेगा। काशी विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे प्रो. अरूण देव का भी लगभग ऐसा ही मानना है। यह स्थिति आज से नहीं बल्कि सन् 1950 से इसी गति सेबढ़ती चली आ रही है। इससे समुद्र के जल स्तर में भी बढ़त सम्भावित है। जलवायु परिवर्तन के कारण यह देखने में भी आ सकता है कि गर्मी, ठंड, वर्षा आदि की जो मौसमी स्थिति है, उसमें तेजी बनी रह सकती है।

अभी तक हम कोरोना वायरस के प्रकोप से मुश्किल से ही उभर पाये हैं। अब तापमान बढ़नेे की  इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप एक नया वायरस स्थान ले सकता है, जिसके कारण और तापमान में हो रही वृद्धि कतिपय जीवों की प्रजातियों का अस्तित्व मिट सकती है।

जलवायु परिवर्तन पर लगातार अध्ययन में संलग्न प्रख्यात लेखक कोलिन जे. कार्लसन ने दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन ने अन्य महामारियों के खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है।

एक ऐसा भी अनुमान है कि बढ़ते जल स्तर के कारण इस सदी के अंत तक देश के 12 तटीय शहरों के पानी में डूब जाने की आशंकायें बढ़ गयी है। इसमें देश के मुख्य शहर मुम्बई, चैन्नई, कोच्चि और विशाखापत्तनम भी हैं।

अभी हाल ही में समुद का जल स्तर बढ़ने के संकेतों के मिलते ओडिशा और आंध्र प्रदेश के अंतर्गत उसके कई तटीय ग्राम प्रभावित हो चुके हैं।

700 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ लुप्त – इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के प्रख्यात प्रो. एन.बी. सिंह अपने अध्ययन शोध के अंतर्गत इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ग्लोबलवार्मिंग के परिणाम स्वरूप तापमान के बढ़ने से मनुष्य तो प्रभावित हुये ही हैं, उसी प्रकार पशु-पक्षियों पर भी उसका गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इस गर्मी के कारण पक्षियों की अनेक प्रजातियों की दिखना कम हो गया है, इस स्थिति में पेड़ -पौधों की प्रजातियाँ भी नष्ट हो चुकी हैं।

चिकित्सकीय क्षेत्रों में विशेषज्ञों का मानना है कि सामान्यतः तापमान में जब 30 डिग्री के ऊपर बढ़ोत्तरी होने लगती है, तब उस स्थिति में पीने के लिये पानी उपलब्ध न हो सके या कम पानी पिया जाये तो शरीर के अंदर विद्यमान प्रोटीन पिघलने लगता है। यह स्थिति मनुष्य के लिये अत्यंत खतरनाक भी सिद्ध हो सकती है।

इस स्थिति की भयानकता को देखते हुये केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों को कतिपय दिशा निर्देश भी जारी किये हैं। साथ ही पेयजल आपूर्ति गर्मी से संबंधित बीमारियों को रोकने  के लिये कहा गया है। लू से बचने की हिदायतें भी दी गयीं है। शरीर में पानी की कमी न होने दें। प्यास न भी लगे फिर भी पानी पीते रहें। यदि घबड़ाहट या बैचेनी की स्थिति महसूस हो तो तत्काल चिकित्सक से सलाह लेने में देर न करें।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सूत्र:- 9424744170