‘भारत के सप्त चिरन्जीवी’ हनुमान जयंती के अवसर पर विशेष लेख सुधी पाठको को समर्पित
अंजनेय केसरी नंदन पवन सुत त्रेता युग के हनुमान अखिल ब्रह्मांड नायक श्री राम के अनन्य भक्त संकट मोचक सोच विमोचन अतुलनीय बल की अथाह राशि बुद्धि की पराकाष्ठा राम रँग का सिदूरी वदन स्वर्ण गिरी,
जैसा चमक दार शरीर सोष्ठव बुद्धि और सिद्धि दायकत्व अग्रगण्य पराम्बा आदि शक्ती सीता से अजर और अमरत्व वर पाने वाले हनुमान जयंती मे उनके उदात्त चारित्र समर्पण स्वामी भक्त्ती एवं कुशल नेतृत्वकारी मेधा शक्ती का हम अपने जीवन मे आत्म सात करे, जयंती से जाग्रति लाये।
केवल चमेली के तेल मे सिन्दूर लगा देने से संकल्प पूरा मान लेना मूल अभिप्राय नही है। सकल गुण निधान अप्रमेय बल के अथाह समुद्र के प्रतीक एवं अपने राजा स्वामी के हितो के लिये उनकी कूट नीति राज नीत एवं विदेश नीत कितनी समृद्दिशाली थी।
हम ही नही आज के सत्ता संचालक अवगाहन करे। वाक चातुर्य समृद्धीशाली संबाद योजना दंडकारण्य किष्किन्धा से सीता खोज रामेस्वर स्थापना अथाह समुद्र मे सेतु निर्माण युद्ध एवं संजीवनी लाना एवं राम राज्य तक के प्रसंग मे कितनी गूढ़ता है दर्शन है चितन है। कितनी कुशल नेतृत्व क्षमता का दर्शन है।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। भये लंकेस्वर सब जग जाना।।
गये थे, सीता की खोज मे लेकिन बुद्धि चातुर्य ने पहले विभीषण की खोज की और अपनी कूट नीत को भरी रात्रि मे केवल दो लोगो की मन्त्रणा का जमा पहिना कर भविष्य का निर्णय पारित कर अशोक वन तक की राह जानी क्योकि सीता को अशोक वन मे गीध राज ने बता दिया था।
और वहा क्या है कोन कोन है। वहा की भौगोलिक स्थिति क्या है। यह जुगत जानी जो आवश्यक थी। बाकी वहा क्या करना है। यह है देश काल के अनुकूल वातावरण का निर्माण करना विदेशी धरती पर नेतृत्व क्षमता का बेमिशाल उदाहरण यही होना चाहिये।
अगर हम श्री मद बाल्मीकि रामायण का आलम्बन ले तो पूरी निष्पक्षता के साथ लिखा है कि सीता की सुरक्षा व्यवस्था उत्तम एवं अँग रक्षक कितने मुश्तेद है लिखा है। सीता और संदेशवाहक के मध्य जो सम्भाषण हुआ उसमे प्रत्युतपन्न मति का दर्शन होता है।
श्री राम को यह पता था की सीता हनुमान पर आसानी से भरोसा नही करेगी तो एक बड़ी गुप्त बात बताई जो वचन बद्धता थी पहली एक नारी व्रती एवं नया नाम करूणा निधान राम नाम अंकित मुदरी का सीता माया नगरी मे विस्वास नही मानेगी। तब
राम दूत मे मातु जानकी। सत्य शपथ करुणा निधान की।।
आचार्य केसव अपनी राम चन्द्रिका मे हनुमान जी के संबाद मे उत्कृष्ट वाक वैदग्ध की प्रस्तुतिकरण करते हैं। में राम दूत मातु जानकी।। कोन सो, राम
दशरथ नंद कोन सो दशरथ, अज तनय चंद।।
साक्षात माँ सीता ने प्रगल्भ बुद्धि के समर्पित त्यागी को व्यथा कथन एवं हनुमंत की सांत्वना तथा राक्षसीयो को दहशत देने मे गजब की प्रयोगात्मकता थी।
अजर अमर गुन् निधि सुत होहू। करहू बहुत रघूनयक छौहू।।
पूरे अशोक वन को उजाड अक्षय कुमार को मार तहस नहस कर अपने बल का प्रदर्शन कर उभय पक्ष का आत्म बल कमजोर कर सैनिको का मनोबल समाप्त करना भावी कार्य योजना थी। इसे कहते है नीत निर्धारण अपने साम्राट के लिये।
ब्रह्मास्त्र मे बधना मेघनाद के साथ मुश्क मे बधना एक रणनीत थी। क्योकि अभेद्य दुर्ग की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान सभा सदो की बौद्धिक गुणवत्ता का आकलन एवं लंका के योद्धाओं के बल दर्प को भयभीत करने की कार्य योजना थी।
वही रावण को समझाना भी था ताकि राम को कोई आक्रांता ना कहे अस्वीकृति पर सभा मे खडे होकर कहा। हे लंकेश कोई साथ नही देगा केशव केवल काम को राम बिसारत अंतक अन्त अकोलो जैइ है
महा बली रावण का सौंदर्य राजसभा की व्यवस्था तथा दसो दिशाओं के देवताओ को हाथ जोड़े खडे देखा जो रावण की भ्रकुटि निहार रहे थे। वहा शान्ती प्रस्ताव रखा सन्धि की बात कही। लेकिन आशंक थे क्योकि रात्रि की मन्त्रणा जो थी।
यहा लंका मे कर जोरे और मिथिला की कर जोरी का एक साथ होना ही रक्ष कुल का विनाश केवल विभीषण जानते थे। बाल्मीक लिखते है की रावण की तीक्ष्ण बुद्धि उन्नत ललाट चौडा वक्ष स्थल रत्न जाड़ित सिंहासन लटकते झूमरो के नीचे हनुमान जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह खडे बारीकी से चोर दरवाजा देख रहे थे। नीत है की-
हमेशा शत्रु के गढ मे मार करने गुप्त रास्ता पता कर लेना बुद्धिमानी है। जब देवीय प्रदत्त शक्तियो से एवं स्वम के तप एव मायावी शक्ती प्राप्त शक्ति सम्पन्न शत्रु हो तब अपने भी अमोघ अस्त्रो का भय दिखाना जरूरी होता है। दूत को दण्ड पर विचार सभा सद कर रहे थे इधर बजरंगी अपनी पूछ पर जायदा प्यार जता रहे थे।
तब राय बनी की बन्दर को पूछ बड़ी प्यारी है आँग लगा दो यही प्रतीक्षा थी। बस क्या था पलक झपकते लंका धू धू कर जलने लगी लंका दहन और हनुमन्त का अमोघ आयुध पूछ का बो दम दिखाया की रावण और पूरी राक्षस पीढी दहल गई। फिर सीता से आज्ञा और चूडा मणि जैसा प्रमाणपत्र लेकर वापिस आकर सारा वृतांत सुना कर चिनाहरी सौप दी।
आज तक के इतिहास मे ना ऐसा संदेश वाहक ना शान्ती दूत ना राज दूत देखा ना पढा ना सुना गया। जितना कहा गया उससे एक लफ्ज भी जायदा नही कही और अपनी बुद्धि मत्ता से त्रेता के संहार को बचाने का प्रस्ताव रखा।
वाह रेअष्ट सिद्धि नव निधि के दायक संकट मोचक और देहिक देविक भौतिक ताप का शमन करने वाले अतुलित बल बुद्धि मे अग्र गण्य वन्ँ चर के रूप मे मानवीय संवेदना के दिव्य स्वरूप। राम राज्य के संस्थापक सदस्य वीर रस के स्थायी भाव की जन्म जयंती।
आज यह संदेश देना समय की मांग है की ऐसा संदेश या खबर न दे जिससे एक संस्कृति ही नष्ट हो जाय।दन्ड्क वन मे बहिन शूर्णपखा काम पिपासा मे घूम रही थी। बेहूदा जबरी प्रणय निवेदन स्वीकार ना करने और अक्रोशीत होने की दशा मे कान नाक का निपात कर दिया।
रावण की सभा मे क्या संदेश दिया इतिहास विद है। तौर जियत दशकंधर मोर की अस गति होय इन शब्दो ने भारत की सबसे बड़ी सल्तनत लंका का समूल ध्वंस एवं धरती से रक्ष संसकृति का खात्मा करा दिया गया। नाक काटना ही जरूरी था।
लक्षमण जी कोई और अँग काटते तो पूरी लंका मे किसको किसको जबाब देते देते थक जाती इसलिये बिना बताये लोग जान जाये की नाक कटाने गई थी सो कटा आईं। आज नेता अभिनेता स्वम सेवक समाज सुधारक धनपति ऐस्वर्य वान सत्ताधीश सरकार के सलाहकार
पाठ शाला गो शाला कोषागार सेन्य शक्ति आयुध शाला के प्रमुख रसद विभाग भैसज्य आवागमन विभाग एवं सम्पूर्ण भारत के अधिनायक गण हिंदू धर्म के अनुयायी एव् उपाशक हनुमान जयंती मे अवगाहन करे की हमारी नेतृत्व क्षमता हितकारी एवं समुन्न्त हो अपनी संस्कृति संस्कार
समृद्धीशाली होकर चतुर्दिक कीर्ति का प्रसार होकर एक धर्मयुग बने और राम राज्य स्थापित हो, हमारा आज संकल्प हो कि भारत राष्ट्र विस्व गुरु बने तभी पौराणिक इतिहास के रामार्चा के पुरोधा सकल गुण निधान जी रोग बाधा पीडा महामारी को समूल समाप्त करने वाले राम प्रिय अनंत
बलवन्त हनुमंत की जन्म जयन्ती मे मानवीय जाग्रति होगी। आइए हम सब ब्याप्त महामारी को खत्म करने की प्रार्थना करे।