Trending Now

भारत में इस्लामीकरण की ओर बढ़ते चरण

भारत ही नहीं वैश्विक परिदृश्य में कुछ वर्षों से जिहाद/इस्लामीकरण की गतिविधियां बढ़ती चली जा रही हैं ।पहले बहुत वर्षों तक समाज ने इसे हल्के में लिया व ज्यादा गंभीरता से ध्यान नहीं दिया । परिणाम स्वरूप इन हिंसात्मक/कट्टरपंथी घटनाओं की वृद्धि होती चली गई।

देश के समाज की सरलता, सहिष्णुता को इन जिहादियों ने कमजोरी के रूप में लिया । क्योंकि जिस इलाके में कोई हिंसा, लव जिहाद, धर्मांतरण इत्यादि की घटना जब होती है तो वह व्यक्ति लोक-लाज के भय से अथवा अपवाद मान कर भूलने का प्रयास करता है। अथवा वहां के लोगों के संगठित प्रतिरोध ना करने के कारण यह ‘विष बेल’ बढ़ती चली गई।

एक एजेंडे के तहत यह पंचरपुत्र समाज हिंदुओं के बीच सुकून से घुसकर रहते हैं। अधिक से अधिक जमीनों पर कब्जा करते जा रहे हैं। किसी खाली पड़ी सरकारी जमीन पर यह पहले चरण में छोटी सी हरे रंग की मजार बनाते हैं व वहां साप्ताहिक लोभान/इबादत/फूल चढ़ाते हैं। फिर धीरे-धीरे आजू-बाजू की जमीन पर झंडे गाड़ कर अपना अतिक्रमण बढाते चले जाते हैं।

खासकर जब चुनाव आता है। तभी अतिक्रमण का कार्य तेज गति से करते हैं। और वोट के चक्कर में कोई भी पार्टी या व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं करता है और यह जिहादी बड़ी चालाकी से अपना एजेंडा पूरा करते चले जाते हैं।

देश की जमीनों पर बड़ी मात्रा में कब्रिस्तान, मजार, मस्जिद, ईदगाह बनती चली जा रही हैं। देश का समाज हाथ पर हाथ घरे बैठा है। “हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई” कर रहा है। कश्मीरी भाइयों ने भी ऐसा ही भाई-भाई किया था। किंतु 1990 को परिणाम में क्या मिला? जिहादी हिंसा, पलायन, बहन-बेटियों का बलात्कार, जमीन घर से बेघर, नृशंस हत्याएं हुई। क्या उस समय देश में सरकार -सुप्रीम कोर्ट -मानवाधिकार आयोग नहीं था? सब कुछ था फिर ऐसा अन्याय/अधर्म कैसे हो गया?

सुनियोजित षड्यंत्र के तहत लगभग छह लाख हिंदू कश्मीरियों को खदेड़ दिया व बड़ी संख्या में हत्याएं हुई। बे कहीं के नहीं रहे, ना घर के ना घाट के, बचे-खुचे लोग मारे-मारे, दर-दर की ठोकरें खाते फिरे। जो किसी प्रकार बच गए अनुपम खेर (फिल्मी अभिनेता) जैसे उनके मुख से दर्द कभी-कभी निकलता रहता है। पर ऐसा लगता है।

कभी-कभी की देश का समाज संवेदनहीन, स्वार्थी, अन्याय को सहने का आदि हो गया है। किंतु हम भूल जाते हैं कि अगला नंबर हमारा भी है। जरा सोचिये एक गांव का मुस्लिम मुनव्वर नाम का बहुत साल पहले कह रहा था कि- “भैया जी कछु दिन और रुक जाओ हमरो राज आवे बारो है।”

यह जिहादी हत्याकांडों का सिलसिला बड़ा पुराना है। गुरु गोविंद सिंह की हत्या एक जिहादि ने की थी। स्वामी श्रद्धानंद की हत्या एक अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम ने की थी। जिसे बापू (गांधी) ने अपना भाई/ सही ठहराया था। स्वामी दयानंद को पारा (जहर) भी इसी कोम ने दिया था। स्वामी /यति नरसिंहानंद की हत्या का प्रयास भी यह कर चुके हैं। पिछले वर्षों में देश में सैकड़ों हत्याएं की घटनाएं इनके द्वारा घट चुकी हैं। मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, मेरठ, बंगाल, असम के दंगे व बम विस्फोट इन्हीं की करतूत हैं ।

लखनऊ में हिंदू नेता राजकुमार तिवारी की हत्या, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु अनेकों जगह चाकू मारकर हत्या इनके कृत्य हैं। अभी 20 फरवरी 2022 कर्नाटक के मोगा में हिंदू वीर युवक (बजरंग दल कार्यकर्ता) हर्षा की दिनदहाड़े 5 जिहादियों ने घर के सामने अनेको चाकू मारकर बेरहमी से हत्या कर दी। वहा के पड़ोसी देखकर हल्ला/शोर मचाते रहे, कोई भी आगे नहीं आया। सभी यह सोचते रहे की- “मेरे लड़के को थोड़ी मार रहे हैं।” इस हीन (कमजोर/स्वार्थी) मानसिकता ने हीं ‘हर्षा’ की जान ले ली। जबकि होना यह चाहिए था कि- सभी अपने-अपने घर से तत्काल डंडे- राड़ लेकर निकलते व दौड़ा लेते जिहादी लड़कों को। बे भागते नजर आते, अपनी जान की भीख मांगते। संगठित होकर 1-1 डंडे मारते तो खेल हो जाता व एक उदाहरण बन जाता। फिर कभी कोई आंख उठाने की जुररत नहीं करता।

समस्या का समाधान शोर मचाना, दुख प्रकट करना, बाजार बंद करना, निंदा करना, पलायन कर जाना नहीं है। बल्कि ‘शस्त्र उठाना’, ‘संगठित प्रतिकार करना है।’ अरे! भूल गए ग्वाल- वालों ने लाठी लगाकर गोवर्धन पर्वत उठाया था। कंस की आसुरी सत्ता उखाड़ दी थी।

रामायण काल में बंदर-भालू ने रावण के आसुरी साम्राज्य को ढाहा दिया था। “संगठन में बड़ी शक्ति है” छोटे-छोटे तिनके मिलकर बड़ी मजबूत रस्सी का निर्माण कर देते हैं, जिससे हाथी को भी बांध लिया जाता है। हम यह क्यों भूल जाते हैं की- हमारे सभी देवी-देवता शस्त्र धारण किए हुए हैं और आश्चर्य कि हम उनके उपासक कहलाते हैं। कहीं ना कहीं हमारी समझ मे फेर/कमी है अन्यथा राम-कृष्ण, शिव, दुर्गा, काली के उपासक इन टीद्दी दलों से डर जाएं,पीछे हट जाते। कहीं ना कहीं हमने अपने गौरवशाली अतीत को भुला दिया है।

समस्या का समाधान “शास्त्र के साथ शस्त्र” है। “संगठित हिंदू -समर्थ भारत” है। संगठित होकर ही असुर्ता आततायीयों पर विजय प्राप्त की जाती है और कोई उपाय न दूजा। इस सत्य को जितनी जल्दी हम आचरण, विचार, अमल में लाएंगे समाधान उतनी जल्दी निकलेगा। सरकार से, अन्य से सहायता की भीख मांगना मूर्खता, अदूरदर्शिता, क्षुद्धता ही मात्र है।

रोड पर नमाज पढ़ना (जिद करना), लाउडस्पीकर से दिन में 5 बार कान फोड़ना, अवैध जमीनों पर मजार, मस्जिदों के नाम पर कब्जा करना, स्कूल में हिजाब के लिए ज़िद (हिंसा) करना, देश के संविधान को ना मानना, दहशतगर्दी करना, संख्या बल दिखाकर डराना, कानून को चुनौती देना, ट्रैफिक पुलिस द्वारा चालान काटने पर धमकी/मारपीट करना, स्कूल की कक्षाओं में नमाज पढ़ना, दिल्ली के पार्कों में नमाज पढ़ना, शरिया कानून की मांग करना, गुरुग्राम में रोड पर नमाज पढ़ना, नगर में बॉर्ड/मोहल्लों के नामों का इस्लामीकरण करना, मार्गों पर कब्जा (मस्जिद) बनाना, हिंदुओं की पवित्र बस्ती में बकरा काटना, देश में गौ हत्या करना, कसाई खाने चलाना, बहन बेटियों को ‘लव- जिहाद’ में भगा कर ले जाना इत्यादि।

यह सारी गतिविधियां भारत के इस्लामीकरण की ओर बढ़ते चरण ही तो हैं। अब इसके बाद भी समाज ना समझे, ना जागे और बिल्ली को देखकर कबूतर जैसी आंखें बंद कर ले तो विनाश/मृत्यु निश्चित है। पता नहीं क्यों हमें विस्मरण की बीमारी है। हम भूल जाते हैं कहावत को कि- “गांव से बड़ी बारात ना होवे” यह हिंदुस्तान है, मुगलिस्तान या पाकिस्तान नहीं है।

यह हिंदुओं का हिंदुस्तान है, देश है। जिस दिन हिंदू शस्त्र लेकर खड़ा हो गया ना तो जाहिल, खानाबदोश, कबीलों की औलादें- वे जान की भीख मांगेंगे, राम-राम चिल्लाएंगे। हिंदुत्व के जागने की देर है, फिर इनके के भागने की वेर है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- “जिस दिन भारत का सुप्त हिंदुत्व जागेगा, संपूर्ण विश्व भारत के चरणों में होगा।”

स्वामी जी ‘तूफानी हिंदू’ cyclonic hindu ‘प्रखर हिंदू’ बनने पर जोर देते हैं। तभी संपूर्ण समस्याओं पर विजय प्राप्त होगी, इससे कम में कुछ नहीं । एक तूफानी हिंदू गुरु गोविंद सिंह जी की तरह सिंह होता है जो कहते हैं-

“सवा लाख से एक लड़ावा,
चिड़िया से मैं बाज लड़ावा।
तब जाके गुरुगोविंद सिंह नाम कहावा।”

जागृत (सच्चा हिंदू) सवा लाख पर भारी होता है। हम भूल गए कि हम सिंह की संतान हैं। अमृत पुत्र हैं, हम अजेय हैं, हम विश्व के गुरु रहे हैं। हमारी गौरवशाली परंपरा-विरासत रही है। विश्व ने भारत का इतिहास में लोहा माना है। हम अनादि, अनुपम, अद्वितीय हैं । इस दृढ़ संकल्प को लेकर, स्मरण करके हम भारत मां के गौरव की फ़िर लिख दें नई कहानी।

भूमि का कर्ज चुकाने चलो, धरा को स्वर्ग बनाने चलो।
दिग्विजय का आया है पर्व, उठो अब अवसर मत चूको।
संस्कृति के इस महासमर के, बन जाओ बलिदानी।
उठो पार्थ फिर याद करो, तुम गीता वाली वाणी।
भारत मां के गौरव की, फिर लिख दो नई कहानी।
खून से तिलक करो, गोलियों से आरती।
देश है पुकारता, पुकारती मां भारती।।

लेखक:-डॉ. नितिन सहारिया