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भारत रत्न : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, जिन्हें हम राजा जी के नाम से भी जानते हैं, प्रसिद्ध वकील, लेखक और दार्शिनिक थे।

 वे पहले भारतीय गर्वनर जनरल थे।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तमिलनाडु के सेलम जिले के होसूर के पास धोरापल्ली नामक गांव में हुआ।

वैष्णव ब्राह्मण परिवार में जन्मे चक्रवर्ती जी के पिता नलिन चक्रवर्ती थे, जो सेलम न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर कार्यरत थे।

राजगोपालाचारी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई। इंटरमीडिएट परीक्षा बंगलौर के सेंट्रल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने वकालत भी की।

योग्यता और प्रतिभा के बल पर उनकी गणना सेलम के प्रमुख वकीलों में की जाने लगी। चक्रवर्ती पढ़ने-लिखने में तेज तो थे ही, देशभक्ति और समाजसेवा की भावना भी उनमें स्वाभाविक रूप से विद्यमान थी।

वकालत के दिनों में वे स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित हुए और वकालत के साथ समाज सुधार के कार्यों में सक्रिय रूप से रुचि लेने लगे। उनकी समाजसेवा की भावना को देखते हुए जनता ने उन्हें सेलम की म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष चुन लिया।

इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक नागरिक समस्याओं का तो समाधान किया है, साथ ही तत्कालीन समाज में व्याप्त ऐसी सामाजिक बुराइयों का भी जमकर विरोध किया, जो उन्हीं के जैसे हिम्मती व्यक्ति के बस की बात थी।

सेलम में पहली सहकारी बैंक की स्थापना का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।

वर्ष 1915 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर आए और देश के स्वतंत्रता संग्राम को गति देने में जुट गए।

1919 में गांधी जी ने रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया। इसी समय राजगोपालाचारी गांधी जी के संपर्क में आए और उनके राष्ट्रीय आंदोलन के विचारों से बहुत प्रभावित हुए।

पहली ही मुलाकात में गांधी जी ने उन्हें मद्रास में सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने का आह्वान किया। इस दौरान वे जेल भी गए। जेल से छूटते ही वे अपनी वकालत और तमाम सुख-सुविधाओं को त्याग, पूर्ण रूप से स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित हो गए।

चक्रवर्ती देश की राजनीति और कांग्रेस में इतना ऊंचा कद प्राप्त कर चुके थे कि गांधी जी भी प्रत्येक कार्य में उनकी राय लेने लगे थे। गांधी जी जब जेल में होते तो उनके द्वारा संपादित पत्र यंग इंडिया का संपादन चक्रवर्ती ही करते थे।

1937 में चक्रवर्ती के नेतृत्व में कांग्रेस ने मद्रास प्रांत में विजय प्राप्त की। उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1946 में देश की अंतरिम सरकार बनी। उन्हें केंद्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया। 1947 में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

1950 में वे पुनः केंद्रीय मंत्रिमंडल में ले लिए गए। इसी वर्ष सरदार पटेल की मृत्यु के पश्चात वे केंद्रीय गृहमंत्री बनाए गए। कुछ वर्षों बाद कांग्रेस की नीतियों के विरोध में उन्होंने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों को ही छोड़ दिया और अपनी पृथक स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।

वर्ष 1954 में भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजा जी को भारतरत्न से सम्मानित किया गया। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धि चातुर्य में था, वही उनकी लेखनी में भी था। वे तमिल और अंग्रेजी के बहुत अच्छे लेखक थे। गीता और उपनिषदों पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं।

नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। अपनी वेशभूषा से भारतीयता के दर्शन कराने वाले इस महापुरुष का 28 दिसंबर 1972 को देहांत हो गया।

लेखक – जयराम शुक्ल
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