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मणिपुर एक अज्ञात शहीद वीर बालक चिंग लेनसना

मणिपुर की आजादी के लिये प्राणोत्सर्ग करने वाला यह छोटा बालक पूर्वोत्तर के छोटे से राज्य मणिपुर जहाँ आजादी का सूर्य सन् 1891 से ही जगमगाता रहा। यही एक मात्र राज्य था, जिसने सबसे अंत में पराजय झेली थी। इसके पहले सभी भारतीय राज्यों पर ईस्ट इंडिया कम्पनी अपना अधिकार जमा चुकी थी।

मणिपुर के वीर एवं साहसी योद्धाओं और ब्रिटिश फौज के बीच अंतिम मुठभेड़ खोंग जोम में हुयी थी। बहुत कम संख्या में होने के बावजूद वे जूझे और शहीद होने तक लड़ते रहे। इस घमासान युद्ध से मणिपुर के वीर सैनिकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन उनके साहस के कारण यह संग्राम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अध्याय जोड़ गया।

इस संग्राम में एक 13 वर्षीय बाल सैनिक ने भी उत्साह पूर्वक भाग लिया था, जिसके साहस का यशोगान और बलिदान इतिहास में दर्ज है।

उस समय हुये युद्ध के नायक थे सेनापति मेजर पाओना ब्रजवासी। उनके ही नेतृत्व में ‘‘अप्रैल सन् 1891’’ में मुट्ठीभर स्वतंत्रता प्रेमी मणिपुर के सैनिकों ने अंग्रेजों की आक्रामक एक बड़ी सेना टुकड़ी के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। घमासान युद्ध हुआ। एक-एक वीर योद्धा अंतिम सांस तक युद्धभूमि में डटे रहे। इन्हीं में से वह एक नन्हा सा बालक 13 वर्षीय एक विधवा माँ का इकलौता पुत्र चिंगलेनसना भी था। इस वीर बालक के पिता मेजर पाओना ब्रजवासी के नेतृत्व में वीरता पूर्वक लड़ते हुये मृत्यु को प्राप्त हुये थे। उस समय इस बालक की आयु मात्र सात वर्ष थी। वह उसी समय से पाओना ब्रजवासी के संरक्षण में रहा। यह बालक जन्म से ही निर्भीक और साहसी था। पाओना भी उसे अपने पुत्र के समान स्नेह करते थे। वह उनके साथ ही युद्धाभ्यास करता था।

जब सन् 1891 में ब्रिटिश सैनिकों ने मणिपुर पर अपना अधिकार जमाना चाहा तब मणिपुर के महाराजा कुलचन्द्रध्वज सिंह ने अपनी प्रजा से मातृभूमि की रक्षा करने की अपील की और सेना में शामिल हो जाने का अनुरोध किया।

देश प्रेमी मणिपुर निवासी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये उत्साह पूर्वक आगे आये। पाओना ब्रजवासी भी युद्ध की तैयारी के साथ अपनी सेना को लेकर आगे बढ़े। अपने पुत्र समान चिंगलेनसना भी उनके साथ चलने लगा। उससे जब पूछा ‘तुम क्या करोगे’ तब उसने उत्तर दिया और तलवार दिखलाते हुये कहा कि इससे सिर काटूँगा। स्वीकृति-अस्वीकृति के द्वंद के बाद और उसके साहस को देखते हुये उसे भी चलने की अंततः आज्ञा दे ही दी।

इस सहमति के बाद वह अपनी माता से भी आज्ञा लेने गया। ममतामयी माता अपने इकलौते पुत्र को कैसे आज्ञा दे सकती थी, उसने रोकना चाहा परन्तु बालक की जिद के कारण माँ ने भी अपना आशीर्वाद देकर उसे बिदा किया।

खाँग जाम के मोर्चे पर पाओना अपने पुत्र सरीखे बालक के साथ वीरतापूर्वक शत्रु सेना का मुकाबला कर रहे थे। इस समय इस बालक की चंचलता और वीरता देखने लायक थी। तेरह साल का बालक अंग्रेज सैनिकों को गाजर-मूली की तरह सफाया कर रहा था। उसका पराक्रम देखकर अंग्रेज सैनिक भी अचम्भित थे। यद्यपि मणिपुरी सैनिक बहुत कम संख्या में थे, पर शत्रु सेना का मुकाबला पूरी वीरता के साथ कर रहे थे। एक अवसर ऐसा आया जब पाओना शत्रु सैनिकों से घिर गये।

अंग्रेज सेना तोप-गोलों का उपयोग कर रही थी। कई बार गोलों से इस बालक ने पाओना को बचाने की कोषिष की। अंग्रेज सैनिक इस बालक द्वारा तोप के गोले के पलीते को तलवार से काटना देखकर हैरान थे। जब शत्रु सेना द्वारा पाओना पर दो गोले एक साथ दागे-एक पाओना के पास गिरा दूसरा इस बालक के साथी के पास, उसने छलाँग लगाकर अपने साथी को तो बचा लिया पर स्वयं गम्भीर रूप से आहत हो गया। बम फटा और चिंगलेनसना का शरीर क्षत-विक्षत हो गया।

इस प्रकार इस तेरह वर्षीय साहसी बालक चिंगलेनसना ने अपने अधिकारी और साथी को बचा लिया और उस प्रयास में वह स्वयं शहीद हो गया। युद्ध से बच निकले सैनिकों ने इस बालक के पराक्रम और साहसी बलिदान की गाथा का उल्लेख ‘खैंग पर्व’ में विस्तार से किया है।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सूत्र:- 9424744170