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मदरसों की सच्चाई

वीरेन्द्र सिंह परिहार

गत महीनों जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने मदरसों के सर्वे को लेकर आदेश जारी किये, तो कठमुल्लों और तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों को इससे बहुत समस्या हुई थी। मदरसों और वक्फबोर्ड की सम्पत्तियों (जमीनों) दोनो के सर्वे को लेकर उठाये जा रहे कदमों को उन्होंने बतौर मुस्लिम विरोधी साबित करने का प्रयास किया था, जबकि योगी सरकार के इस कदम के पीछे मदरसों में शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने और उन्हें आधुनिक बनाने का प्रयास था।

उल्लेखनीय है कि मदरसों को लेकर पूरे देश के जनमानस में गम्भीर किस्म की आपत्तियां थीं, क्योंकि पूरे देश में कुकुरमुत्ते की तरह फैले ये मदरसे एवं वर्ग-विशेष के बच्चों को अलगाववाद की भरपूर खाद और पानी देते हैं। हद तो यह है कि यह मदरसे एक तरह से आतंकवाद की फैक्ट्री जैसे हैं। यहाँ पर सिर्फ कुरान की शिक्षा ही नहीं दी जाती, बल्कि गजवा-ए-हिन्द का पाठ भी पढ़ाया जाता है। मुस्लिम बच्चों के दिली-दिमाग में यह भी भरा जाता है – पुनः भारत को इस्लामिक देश कैसे बनायें ? गत वर्षाे कश्मीर के सोपिया में एक मदरसे के 13 छात्रों के तार आतंकियों से जुड़े होने का मामला सामने आया था।

मदरसों में व्याप्त इस तरह की गतिविधियों को देखते हुये ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मदरसों में एन.सी.आर.टी. की किताबे पढ़ाये जाने का बड़ा फैसला लिया था। इसके तहत मदरसा छात्रों को गणित और विज्ञान पढ़ना भी अनिवार्य कर दिया गया था। सच्चाई यह कि मुस्लिम छात्र आधुनिकता की दौड़ में मदरसा शिक्षा के चलते बहुत पीछे रह गये हैं। ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश और असम की सरकारें उन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा देकर उन्हें बेहतर प्रतिस्पर्धी बना रही हैं।

यह भी ध्यान रखने की बात है कि पूरी दुनिया में मुस्लिम उग्रवाद की वृद्धि का बहुत बड़ा कारण मदरसों की शिक्षा और वैज्ञानिक शिक्षा का अभाव है। ऐसी स्थिति में मुस्लिम युवाओं को आधुनिक शिक्षा से लैश होना इसलिये भी जरूरी हो गया है, ताकि वह स्वयं को धार्मिक संकीर्णता और कट्टरता से बचा सके। स्वतः हजरत मुहम्मद सा. का कहना था- ‘‘हर मुसलमान के लिये तामील हासिल करना जरूरी है। यहाँ तामील या ज्ञान से मतलब मात्र मजहबी ज्ञान नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ज्ञान से है, क्योंकि तभी व्यक्ति के जीवन में एक सम्पूर्ण दृष्टिकोण विकसित हो सकता है।’’ इसी तारतम्य में वर्ष 2015 में महाराष्ट सरकार ने राज्य में चल रहे मदरसों में मजहबी शिक्षा के अलावा अन्य विषयों को पढ़ाना भी अनिवार्य कर दिया था।

तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले, और मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिये ऐसे कदम मुसलमानों के दीनी मामलों में सरकारों की दखलंदाजी है। पर असलियत यह कि ये फैसले मुस्लिम युवाओं को एक ओर कट्टरवाद से मुक्त कर एक ओर गुणात्मक रूप से उनका सशक्तिकरण करेंगे तो दूसरी तरफ उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने में मदद करेंगे। बड़ी हकीकत यह कि ये मदरसे सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों में भी आतंकी पैदा करने की फैक्ट्री बन गये हैं। तभी तो दो वर्ष पूर्व फ्रेंच सरकार ने फ्रांस में स्थित सभी मदरसों में सीमित शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा अन्य सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिये हैं।

उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे के दौरान कुल 8496 मदरसे अवैध या वगैर मान्यता के पाये गये हैं। इसमें सबसे ज्यादा 530 अवैध मदरसे मुरादाबाद में पाये गये हैं। सिद्धार्थ नगर में 525, बहराइच में 500 मदरसे अवैध पाये गये हैं। आश्चर्य जनक तथ्य यह कि दारूल उल्लूम देववंद जैसे प्रतिष्ठित मदरसा भी विगत 156 वर्षाें से वगैर मान्यता के चल रहा है। पुष्ट सूत्रों का कहना है कि इन मदरसों में गैर-कानूनी तरीको से विदेशों से धन आता है। यह मदरसे जहाँ मुस्लिमों के पिछड़ेपन के लिये जहाँ एक हद तक जवाबदार हैं, वहीं देश की कानून व्यवस्था से लेकर देश की एकता और अखण्डता के लिये भी बड़े प्रश्नचिन्ह हैं। इसलिये योगी सरकार द्वारा मदरसों के सर्वे को लेकर किसी किस्म की आशंका पालने की जरूरत नहीं, बल्कि इसका इस रूप मंे लेना चाहिए कि इन सर्वे का उद्देश्य मदरसों की शिक्षा के स्तर में व्यापक और गुणवत्ता युक्त सुधार करना है। ताकि मुसलमान समुदाय भी जहाँ आधुनिक नजरिये से लैस होकर प्रगति के पथ पर बढ़ सके, वहीं सामाजिक जीवन में अलगाववाद और कट्टरता का निर्मूलन हो सके।

लेख़क वीरेन्द्र परिहार 
  8989419601