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मरहूम जिन्ना का वारिस जहर ही तो उगलेगा – डाॅ. किशन कछवाहा

आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख हैदाराबादी असदुद्दीन औबेसी ने हाल ही में कहा था कि एक दिन हिजाब पहनने वाली महिला प्रधानमंत्री बनेगी। भाजपा मुस्लिम महिलाओं का हिजाब नहीं पहनने दे रही। इस बयान के आधार पर चुनाव आयोग से शिकायत की गयी है।
असदुद्दीन औबेसी का जन्म पाकिस्तान निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के बाद सन् 1969 में हुआ था। दोनों ही शिया और बैरिस्टर इन दोनों की मान्यता रही है कि कट्टर मुसलमान साबित किये बगैर उनके नेतृत्व को ताकत नहीं मिलेगी इसलिये कट्टरवाद की राह पर आगे बढ़े।
मजलिसे इत्तहादुल मुसलमीन (एम.आई.एम.) की स्थापना सन् 1926 में जिन्ना की ही प्रेरणा से हैदराबाद में हुयी थी। उसका एक सशस्त्र गुंडों का दल भी था, जिसका नाम रजाकार था। इनका मुख्य काम हिन्दू मंदिरों और और हिन्दू बस्तियों पर हमला करना, मूर्ति तोड़ना, महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार, अपहरण, बलात्कार जैसे रोजमर्रा के घृणित कृत्य थे।

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हैदराबाद के निजाम का इन पर वरदहस्त था। उसने मंदिरों में पूजा पर पाबंदी भी लगा रखी थी। हिन्दुओं पर हो रहे हमले पर पुलिस कोई कार्रवाई नही करती थी उस समय बड़ी संख्या में हिन्दू विस्थापित होकर हैदराबाद से शेष भारत की ओर पलायन करने मजबूर हो गये थे। उधर पाकिस्तान अपने यहाँ से विमान भर-भर कर हथियार निजाम को भेज रहा था। अन्ततः सरदार पटेल की चार दिन की कार्यवाही में रजाकारों के घुटने टिका दिये। उनके नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद सन् 1957 में एम.आई.एम. में ‘‘आल इंडिया’’ शब्द जोड़कर आज ए.आई.एम.आई.एम. को नया रोगन लगाकर अस्तित्व में लाया गया है।
गोल टोपी वाले, छोटे भाई का पैजामा बड़े भाई का कुर्ता के नाम से मशहूर शख्स को उत्तर भारत के मुसलमान दाना डालने तैयार नहीं हैं। लेकिन बिना बुलाये मेहमान की तरह बारात में नाच करने वाली टोली में शामिल हो जाया करता है। अनेक मुस्लिम बहुत क्षेत्रों में इसे ‘जोकर’ नाम से संबोधित किया जाता है।
औबेसी जैसे मुस्लिम नेता अपनी नेतागिरी की पैठ बनाने के चक्कर में हिजाब को लेकर कर्नाटक में हंगामा पैदा किया गया। इसके पीछे मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा को रोकना है, ताकि उनके द्वारा दकियानूसी मुस्लिम रवैये के खिलाफ आवाज उठायी न जा सके। यह कहने की बात नहीं है कि शिक्षित समाज ही तरक्की की राह पर चल सकता है, आगे बढ़ सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत कामकाजी मुस्लिम महिलायें आगे आयी भी हैं। मुसलमानों का धार्मिक नेतृत्व यदि महिला शिक्षा के साथ खड़ा नहीं होता तो मुसलमानों के पिछड़ेपन का असली दोषी वही माना जायेगा।
भाजपा ने तीन तलाक जैसे मामलों पर पहल की है और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किया है। अब मुसलमानों को स्वयं आगे आकर इस छात्राओं की शिक्षा की मशाल को सम्हालना चाहिये।
औबेसी जैसे कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं की सीमित दायरे की सोच यह है कि गैर मुस्लिम पार्टियाँ (कांग्रेस, सपा, बसपा, कम्युनिष्ट आदि) से मुसलमानों का भला नहीं हो सकता। उन्हें अपनी खुद की पार्टी के भरोसे राजनीति करनी होगी।
सन् 1947 के पहले मुस्लिम लीग की भी ऐसी ही धारणा थी। उसी तर्ज पर मजलिस भी चल रही है। लीग ने भारत का बंटवारा कराया, वैसा ही अघोषित मुद्दा और औबेसी का रास्ता एक है। वह सन् 1947 था, अब सन् 2022 है। उस समय हुये दंगों और अत्याचारों, ज्यादितियों को लोग भूले नहीं हैं।
लाखों-करोड़ों हिन्दू, संगठन मंत्र को भली-भाँति समझ चुके हैं। अब कोई गलत-फहमी पालकर न रखे। दुनिया बदल रही है। इस्लाम के संरक्षक माने जाने वाले सऊदी अरब ने कट्टर सुन्नी इस्लामिक संगठन, तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगा दिया है। उसने यह भी कहने से गुरेज़ नहीं किया कि तबलीगी जमात और कुछ नहीं बल्कि ‘‘आतंकवाद का प्रवेश द्वार है। तबलीगी जमात को सऊदी अरब और खाड़ी देशों से करोड़ों रूपयों की फंडिंग मिलती रही है।’’
चूँकि भारत में अधिकतर मुसलमान वे लोग हैं जिनके पूर्वज किसी समय हिन्दू रहे हैं। उनमें से बहुतेरे ऐसे हैं, जो हिन्दूओं वाली जाति परम्पराओं का पालन कर रहे हें।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा

संपर्क सूत्र:- 9424744170