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“महाकौशल के अनमोल रत्न थे, कविराज राजशेखर”

मां नर्मदा के पवित्र जल और संस्कारधानी की पवित्र मिट्टी से धर्म, अध्यात्म, साहित्य, दर्शन सहित विविध विधाओं केम दुर्लभ रंग-बिरंगे खूबसूरत और सुगंधित अमर पुष्प विकसित हुए हैं। कभी महर्षि गौतम के रूप में कभी महर्षि जाबालि के रूप में, कभी भृगु के रूप में कभी महाकवि राज शेखर के रूप में, कभी महर्षि महेश योगी के रुप में तो कभी आचार्य रजनीश के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें राजशेखर पारिजात पुष्प हैं।

राजशेखर महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र के वत्सुगुल्म, आधुनिक वाशिम नामक स्थान से त्रिपुरी आए थे। राजशेखर के पिता का नाम दर्दुक और माता का नाम शीलवती था। राजशेखर के पिता कलचुरि राज सभा के मंत्री थे। डॉ. राणा के अनुसार ऐतिहासिक दृष्टि से राजशेखर का जन्म सन् 880 में फागुन मास को हुआ था। राजशेखर ने अवंती सुंदरी नामक अत्यंत रुपसी तरुणी से विवाह किया था। अवंति सुंदरी स्वयं विदुषी थी उसने राजशेखर को कर्पूर मंजरी नामक प्राकृत सट्टक और काव्यमीमांसा लिखने को प्रोत्साहित किया था। कविराज राजशेखर ने अपनी पत्नी की रचनाओं का उल्लेख कई स्थानों पर गर्व से किया है।

राजशेखर अपने प्रारंभिक दिनों में गुर्जर प्रतिहार राजाओं के आश्रय में चले गए थे, गुर्जर नरेश महेंद्र पाल ने उन्हें कविराज की उपाधि से विभूषित किया था। कन्नौज में राजाश्रय के समय महाकवि राजशेखर ने बाल रामायण, बाल भारत और कर्पूर मंजरी सट्टक लिखे। परंतु गुर्जर प्रतिहार राष्ट्रकूट से पराजित हो गए और कन्नौज श्री विहीन हो गया, तब राजशेखर अपने पूर्व आश्रयदाता त्रिपुरी नरेश युवराज देव की सभा में फिर आ गए और कई वर्षों तक उन्होंने साहित्य सृजन किया। त्रिपुरी (जबलपुर)में ही महाकवि राजशेखर ने सन् 935 में विद्धशाल भंजिका और काव्य मीमांसा पूर्ण की। पू अनेक कलचुरि राजाओं की सभाओं को गौरवान्वित किया और नरेश युवराज देव द्वितीय के समय तक सक्रिय रहे महाकवि राजशेखर न केवल महान कवि और नाटककार थे वरन् एक महान इतिहासविद् थे। संस्कृत और प्राकृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे। तत्कालीन देश, काल, और परिस्थितियों परिस्थितियों के अनुरूप राजशेखर ने अपनी लेखनी को बुलंद किया है।

राजशेखर लीक से हटकर चलने वाले महाकवि हैं राजशेखर का साहित्य बहुआयामी है। कर्पूर मंजरी राजशेखर की उत्कृष्ट रचना है, जिसमें चार अंक है यह प्राकृत भाषा में लिखी गई है। बाल भारत राजशेखर द्वारा रचित एक नाटक है जिसके मात्र दो अंक प्राप्त होते हैं यह महाभारत की कथानक आधारित है, इस द्रौपदी स्वयंवर कौरव पांडव की द्यूतक्रीड़ा तथा द्रौपदी के चीर हरण की घटनाओं का वर्णन मिलता है। बाल रामायण भगवान श्रीराम की कथाओं से संबंधित है। यद्यपि राम कथा साहित्य का पर्यवेक्षण राम युग के संबंध में जानकारी का अधिकारिक स्रोत बाल्मीकि रामायण है तथापि राम कथा का वर्णन न केवल संस्कृत साहित्य में वरन् भारत की अन्य भाषाओं के साहित्य में भी हुआ है। साथ ही अन्य देशों में भी रामकथा का विस्तार मिलता है। राजशेखर द्वारा रचित बाल रामायण नामक ग्रंथ में दस अंक हैं, जिसमें सीता के स्वयंवर से लेकर अयोध्या लौटने तक की राम कथा का नाटकीय वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

विद्धशाल भंजिका का प्रणयन जबलपुर में हुआ था। संस्कृत कवि राजशेखर द्वारा रचित विद्धशाल भंजिका चार अंकों का नाटक है जिसमें राजकुमार विद्याधर मल्ल तथा मृगांकावली एवं कुवलयमाला नामक राजकुमारियों की प्रेम कथा वर्णित है। इस नाटक का मंचन सर्वप्रथम युवराजदेव के समय किया गया था। त्रिपुरी की दृष्टि से महाकवि राजशेखर की सर्वश्रेष्ठ रचना काव्यमीमांसा है। काव्यमीमांसा प्रीति, रस, और अलंकार आदि किसी एक विषय को लेकर नहीं लिखी गई है, किंतु अपनी नवीन प्रतिभा जन्य शैली द्वारा काव्य एवं कवि के समग्र प्रयोजनीय विषयों का एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी संकलन है। इस ग्रंथ का प्रथम अधिकरण ही उपलब्ध है जिसमें अठारह अध्याय हैं, इसका नाम ‘कवि रहस्य’ है जो वस्तुतः कवि के रहस्य को प्रकट करता है। इसमें कवियों का श्रेणी निर्धारण, कवियों के बैठने का क्रम, वेशभूषा आदि का वर्णन है, अतः इसमें प्रधान विषय कवि शिक्षा का ही है। एक रोचक कथा को आधार बनाकर प्रवृत्ति, वृत्ति और रीति के संबंध में राजशेखर का कथन है कि काव्य पुरुष के अन्वेषण के समय उनकी प्रिया साहित्य वधू देश के विभिन्न अंचलों में विलक्षण वेशभूषा विचित्र विलास और नवीन नवीन वचन विन्यास को धारण करती जाती थी। इस प्रकार प्रवृति अर्थात् वेशविन्यासक्रम, वृति अर्थात विलासविन्यासक्रम और रीति अर्थात् वचनविन्यासक्रम के आधार को लेकर भारत के विभिन्न अंचलों की विशेषकर बुंदेलखंड की साहित्यिक संपदा एवं काव्यगत सौंदर्य की समीक्षा के विवेक पर राजशेखर ने विभिन्न प्रदेशों के नाम से विभिन्न काव्य शैलियों का तथ्यमूलक विषयों का नामकरण किया है। राजशेखर की दो रचनाएं क्रमशः भुवनकोश और हरिविलास अप्राप्त हैं।

महाकवि राजशेखर की रचनाओं में ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिकथ, साहित्यिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक समरसता जैंसे बहुआयामी विषयों का विमर्श मिलता है जो उन्हें कविराज बनाता है। कविराज राजशेखर अपने युग के संस्कृत और प्राकृत भाषा के सर्वोत्कृष्ट कवि ही नहीं वरन् नाटककार और इतिहासविद् भी थे। महाकवि राजशेखर की सात रचनाएं हैं जिसमें से पांच ही आंशिक रूप से उपलब्ध हुई हैं, क्योंकि मुस्लिम आक्रांताओं ने विपुल साहित्य को नष्ट कर दिया है, फिर भी जितना प्राप्त है उतना पर्याप्त है। जबलपुर कवि राजशेखर की कर्मभूमि रही है। जबलपुर की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने में उनका अतुलनीय योगदान है। राजशेखर ने ही कलचुरि काल में दीपावली को दीपमालिका के उत्सव के रुप में रेखांकित कर राज्योत्सव के रुप मनाने की प्रथा को समृद्ध किया। होली को त्रिपुरी में मदनोत्सव का स्वरुप देते हुए, राज उत्सव के रूप में प्रचलित किया।

गौरतलब है कि कलचुरि काल में उनकी बाल रामायण का नाटकीय मंचन प्रारंभ हुआ, आज विविध कालों विकसित रामलीला संस्कारधानी की धरोहर है। उनकी याद में प्रतिवर्ष रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय और उस से संबद्ध श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में कालिदास संस्कृत अकादमी म. प्र. संस्कृति परिषद् उज्जैन के सौजन्य से अखिल भारतीय राजशेखर समारोह आयोजित किया जाता है।

लेखक-डॉ. आनंद सिंह राणा