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मूल में हम सब एक हैं ,सबके पूर्वज (पुरखे) एक हैं

प्राचीन वैदिक सनातन हिंदू धर्म के मतानुसार हम सभी पृथ्वी वासी/ मानव उस आदिपुरुष/ प्रथमपुरुष मनु -शतरूपा के ही वंशज/ संतान हैं। पृथ्वी पर आदिपुरुष का जन्म भारतवर्ष के हिमालय पर्वत- मानसरोवर क्षेत्र में हुआ । उन्हीं के वंशज सप्तऋषि हैं। कालांतर में चंद्रवंश – सूर्यवंश यानी ऋण व धनात्मक कुल परंपरा चली।

पुरातात्विक साक्ष्य व आर्कलॉजिकल सोर्सेस भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि आदि मानव का उद्भव उत्तरी ध्रुव हिमालय क्षेत्र में हुआ। विश्व में मूल रूप से चार प्रकार के मनुष्य पाए जाते हैं

1. श्वेत (काकेशस) 2. पीले (मंगोलियन) 3. काले (नीग्रो ) 4.लाल( रेड इंडियन ) इन चारों के अलावा 5 वी प्रजाति भारतीयों की है जिसमें यह सभी चारों ही मिश्रित हैं । तब प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह चारों भारत से संपूर्ण वसुधा पर गए (फैले) अथवा संपूर्ण पृथ्वी से होकर भारत में आए? इस प्रश्न के उत्तर में साहित्यिक स्रोत व पुरातात्विक स्रोत दोनों ही इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि यह भारत से ही विश्व में गए /प्रसार हुआ। आदिमानव के अवशेष हिमालय क्षेत्र में जीव विज्ञानियों को मिले हैं ।

अभी कुछ वर्ष पूर्व अमेरिकी NASA विज्ञान संस्थान ने भारत के हिमालय क्षेत्र से एक 80 फिट लंबा नर कंकाल प्राप्त किया। जिस पर अमेरिका के नासा में वैज्ञानिक रिसर्च करके यह पता लगाने में जुटे हुए हैं कि त्रेता व सतयुग के मनुष्य /आदिमानव का उदगम भारत है और वास्तव में ये इतने लंबे होते थे। भारतवर्ष के पुराणों में वर्णित सत्य व तथ्य की पुन: पुष्टि होना ही मात्र शेष है।

भारतवर्ष के साहित्यिक पौराणिक ग्रंथों में वर्णित एक-एक बात /तथ्य सत्य है। जिसे उथली बुद्धि वाले नहीं समझ /पचा सकते हैं। इसे समझने के लिए परिष्कृत प्रज्ञा/ ऋषि प्रज्ञा की आवश्यकता है जो साधना व सुपात्र बनने से प्राप्त होती है। यह तो वही बात हुई कि-
ऊग कर सूरज ,भला फिर क्या करेगा।
आंख पर पट्टी ,मनुज यदि बांध बैठे ।।

भारतवर्ष में 40000 वर्ष पूर्व से हम सभी भारत वासियों का DNA एक है। हमारे पूर्वज एक हैं। वर्तमान में भारतवर्ष की आबादी लगभग 135 करोड़ के आसपास है। इसमें 4693 समुदाय ,4500 सजातीय समूह, 325 प्रचलित बोलियां और 25 लिपियां हैं । इनके अलावा इस देश की विशेषताओं में चार प्रमुख जातियां और सैकड़ों उपजातियां भी सम्मिलित हैं।

विश्व के वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि – इस विशाल भारत का आदि स्रोत क्या है? इसके मूल में वह कौन सा जीन है ,जो विकास के बाद इतना विराट रूप धारण कर चुका है। वे जानना चाहते हैं कि- भारतीय वास्तव में कैसे भारतीय बने ? अनुवांशिक विशेषज्ञों के अनुसार इस सृष्टि का प्रथम मानव कौन सा है? उसी प्रथम मानव का जीन ही प्रकारांतर से अनुवांशिक गुणों का वाहक बना और अब तक लंबी यात्रा को पार कर वर्तमान विराट विभिन्नता तक पहुंचा।

पौराणिक आख्यान है कि – मध्य हिमालय मानव जाति का उत्पत्ति स्थल है और आर्य संस्कृति का आदि स्रोत है। यही आर्यों का आदिदेश है। सृष्टि के प्रथम मानव को ‘ मनु’ माना जाता है। मनु की उत्पत्ति स्थल भी यही है। पौराणिक मतानुसार मनु एवं शतरूपा की उत्पत्ति सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के दाहिने भाग तथा बाएं भाग से हुई ।शक्ति साधना के पश्चात स्वयंभू मनु पृथ्वी पर रहकर सृष्टिकर्म करने लगे। पहले उनके प्रियव्रत व उत्तानपाद नामक दो तेजस्वी पुत्र एवं आकृति, देवहूति व प्रसूति नामक 3 कन्याएं हुई। उत्तानपाद से ध्रुव जैसे भगवत भक्त प्रकट हुए । देवहूति से स्वयं भगवान ने कपिल रूप में अवतार ग्रहण किया। और इस संसार में मानव वंश का प्रारंभ हुआ। चूंकि इसका प्रारंभ मनु से हुआ इसलिए इसकी संतान को मानव कहा जाता है। मनु का कार्यक्षेत्र हिमालय को माना जाता है। इस संदर्भ में फ्रांसीसी विद्वान क्रूजर अपनी सहमति प्रकट करते हैं।

‘इंडिया टुडे’ -पत्रिका (23 सितंबर 2009, पृ 13)  में अनेक आंकड़ों व निष्कर्षों का हवाला देते हुए लिखती है कि – ” विश्वभर में जितने विविध प्रकार के मनुष्य हैं, जिनमें सभी संभावित अनुवांशिक संरचना विधमान हैं, उन सबका मूल है उनका भारतीय होना एवं अनुवांशिक विविधता का उद्गम इसी उपमहाद्वीप में मूल रूप से हुआ ,न कि यह तथाकथित आर्यों की घुसपैठ का परिणाम था; जैसा कि अब तक कुछ इतिहासकारों ने भ्रम फैलाया था। ”
स्वामी विद्यानंद सरस्वती के अनुसार – “मानव जाति का प्रादुर्भाव हिमालय क्षेत्र में ही हुआ है।”

हिमालय को आदिमानव का मूल स्थान बनाने के लिए सात कसौटियाँ स्पष्ट की गई हैं –
1. वह स्थान संसार भर में सबसे ऊंचा और पुराना हो।
2.उस स्थान में सर्दी और गर्मी जुड़ती हो । 3.उस स्थान में मनुष्य की प्रारंभिक खुराक फल एवं अन्य उपलब्ध हो ।
4 .उस जगह पर अब भी मूल पुरुषों के रंग- रूप के मनुष्य बसते हो।
5.उस स्थान के आस-पास ही सब रूप रंगों के विकास और विस्तार की परिस्थितियां हों।
6. उस स्थान का नाम सभी मनुष्य जातियों को स्मरण हो।
7. वह स्थान उच्चकोटि के देसी और विदेशी विद्वानों के अनुमान के बहुत विरुद्ध न हो।

उपयुक्त साथ कसौटियों में से पांच वैज्ञानिक तथ्य हैं, जो उस स्थान के लक्षण हैं और दो ऐतिहासिक तथ्य हैं; जो उक्त पांचों की पुष्टि करते हैं । इतिहासकारों के अनुसार यह समस्त लक्षण एवं प्रमाण हिमालय पर ही घटते हैं। अतः हिमालय ही मानव का मूल स्थान है। वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि यह वही स्थान हो सकता है ,जहां पर मानव जीन का संपूर्ण विकास हुआ हो; क्योंकि जेनेटिक अनुसंधान के लिए जिन परिस्थितियों की आवश्यकता पड़ती है ,वे सारे तत्व हिमालय के भू-भाग में विद्यमान मिलते हैं। अतः हिमालय को आदिमानव /प्रथम पुरुष का आंचल माना जाता है।

एशियावाद के समर्थक ‘जान वैषम’ भी ‘ इंडिया हॉट इट कैन टीच अस ‘ में कहते हैं कि- “आर्यावर्त (हिमालय) ही मानव की मूल जाति का उत्पत्ति स्थान है और आर्य ही आदिमानव हैं।”
इसका समर्थन मैकडोनाल्ड ,नृतत्व विज्ञानी नेसफील्ड आदि ने भी किया है। मैक्समूलर ने अपने अंतिम दिनों में यह स्वीकार किया था कि – ” आर्यों का मूल निवास स्थल एशिया में संभवत है भारत में हो सकता है।”

यूनेस्को ने 1997 में कजाकिस्तान की राजधानी ‘ दुशांबे ‘में ” ईसा पूर्व एक सहस्त्र वर्ष में जातियों का संचार” – विषय पर एक ‘अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी’ हुई। जिसमें 90 देशों के विद्वानों ने भाग लिया। भारत सरकार ने बी. बी. लाल के नेतृत्व में 7 सदस्यों वाली एक टीम भेजी थी। वहां इन विद्वानों ने आर्यों के बाहर से आने संबंधी सिद्धांत का खंडन किया ।

आत: मनुस्मृति ,बाल्मीकि रामायण, पुराणों में भारत की श्रेष्ठ संतति को आर्य श्रेस्ठ, (धर्त्मात्मा) गुण बोधक शब्द से संबोधित किया गया है एवं भारतवर्ष ही आर्यावर्त है।
अब किसी को भी इसमें रंच मात्र भी संदेह, शंका नहीं होना चाहिए। अतः हमें भारतीय/ हिंदू/ आर्य/ सनातनी होने पर गर्व करना चाहिए।

भारतवर्ष में यह उद्घोष किया जाता है की- मानव मात्र एक समान ।
एक पिता की सब संतान।।

‘वसुधैव कुटुंबकम’
जब सारे विश्व में हमारे ही वंशज/बंधु -बांधव/ मानव बसे हुए हैं । तब कोई भी हमारे लिए पराया नहीं अतः संपूर्ण विश्व एक हमारा विराट परिवार Global Family है । इस सत्य के समझने व प्रज्ञा/ ज्ञान जगने पर कोई भी फिर पराया नहीं रह जाता है । तब फिर सारे संसार के प्रति अपनी दृष्टि ही बदल जाती है। भारत का चिंतन /विचार – विराट/ उदात्त / अनंत है । इसे समझना हर किसी के बस की बात नहीं।

‘जैसी दृष्टि- वैसी सृष्टि’ का सिद्धांत है ।जैसा हमारा नजरिया दृष्टिकोण होगा हमें सब कुछ वैसा ही नजर आता है। भारतवर्ष के विचारों, संस्कारों में श्रेष्ठता ,मानवता , ‘वसुधैव कुटुंबकम’ , सर्वे भवंतु सुखिन: का संस्कार समाया हुआ है। भारतवासी सरल /भोला है। जिसे पश्चिमी व विश्व के अन्य लोगों ने हल्के में लिया अथवा सज्जनता को ठगा है। किंतु वह भूल गए कि भारतवासी महाकाल अनादि शिवशंकर भोला- भाला के उपासक हैं । समय आने पर दोनों ही रूप प्रकट होते हैं हम बंसीधारी व चक्र सुदर्शन धारी कृष्ण दोनों के उपासक हैं। हमें -‘विनाशाय च दुष्कृताम्’
के उपदेश पर भी चलना आता है । कोई हमारी सज्जनता को हमारी कमजोरी न समझे। समय आने पर हम माला व भाला (रौद्र) रूप भी धारण कर लेते हैं।

जब सारे तथ्यों व सत्यों के अन्वेषण से, इतिहास की गहराइयों में जाकर यह सत्य प्रकट होता है कि मूल में, जड़ में हम सभी एक हैं, एकात्मता है। एक पिता की संतान हैं। हमारे पुरखे/ पूर्वज एक थे। तब हमें अपने मूल सत्य सनातन हिंदू धर्म में वापसी करने में गर्व होना चाहिए ना की हिचकिचाहट। कहावत है कि – ” सुबह का भूला,यदि शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते हैं।”

पश्चिमी व दुनिया में बहुत से लोग शनै -शनै इस तथ्य से परिचित होते जा रहे हैं । अतः वह सभी भारत व भारतीय संस्कृति के नजदीक आ रहे हैं। भारतीय संस्कृति को अपना रहे हैं। अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं । अभी एक- दो दशक से तो पश्चिम का रुख पूर्व (भारत )की ओर सैलाब की तरह से बढ़ा है।

भारत में भी तो अज्ञानता या परिस्थिति बस किसी अन्य पंथ, मजहब, विचारधारा में जो चले गए थे वह अब वापस हिंदू धर्म/ मूल में आ रहे हैं । यह उनके लिए घर वापसी एक सुखद अहसास,अनुभव है। बेटा जब थक, परेशान हो जाता है तब वह अपने मूल/ मां की गोदी में ही लौटकर शांति पाता है।

हिंदू धर्म है ही महान, गंगा की तरह जो सभी को पचा लेता है। अपने में समाहित कर के पवित्र बना देता है, श्रेष्ठ बना देता है । यह लोहे को सोना बना देने वाला पारस है हिंदू धर्म । तभी तो स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि -I am proud to call myself a HINDU . “मुझे अपने आप को हिंदू कहलाने में गर्व होता है।”

लेखक – डॉ नितिन सहारिया
सम्पर्क सुत्र- 8720857296