Trending Now

बिन्दु से ब्रम्हांड तक : आदि शंकराचार्य

शुक्ल यजुर्वेद के अनुसार “त्रियादूर्ध्व उदैत्पुरुष: वादो अस्येहा भवत् पुनः” (भक्तों के विश्वास को सुदृढ़ करने हेतु भगवान् अपने चतुर्थांश से अवतार ग्रहण करते हैं).. शिव अंशावतार +आदि गुरु +श्रीमज्जगदगुरु +धर्मचक्रप्रवर्तक +सनातन धर्म पुनरुद्धारक +आदिशंकराचार्य जी के अवतरण दिवस पर शत् शत् नमन है..

गोविंद भट्ट ने कहा कि “दुष्टाचार विनाशायः प्रादुर्भूतो महीतले.. स एव शंकराचार्य साक्षात् केवल्य नायक:”.. पिताश्री (शिवगुरु) +माताश्री (सुभद्रा)..अवतरण केरल (कालपी या काषल गांव 788 ए डी) महापरिनिर्वाण केदारनाथ 820 ए डी.. 32 वर्ष भविष्योत्तर पुराण” कल्पादौ द्विसहश्रचांते लोकानुग्रह काम्यया.. चतुर्भि: सहशिष्यैस्तु शंकरो वतरिष्यति “(कल युग के दो हजार वर्ष बीत जाने के पर लोक अनुग्रह करने के उद्देश्य से 4 शिष्यों के साथ भगवान् शंकर अवतरित हुए) चित्र के लिए राजा रवि वर्मा (1904) का अनंत कोटि आभार.. षड् दर्शन में छठा ब्रह्म सूत्र है.. वेदांत के 3 मूलाधार हैं.. उपनिषद +भगवद्गीता +ब्रम्ह सूत्र..प्रस्थान त्रयी कहलाते हैं.. उपनिषद (श्रुति प्रस्थान) भगवद्गीता (स्मृति प्रस्थान) +ब्रम्ह सूत्र (न्याय प्रस्थान) हैं.. ब्रह्म सूत्र आदिशंकराचार्य द्वारा विरचित है..

“तत्वमसि” “अहं ब्रम्हास्मि””अयात्मा ब्रम्ह “एक ब्रम्ह द्वितीय नास्ति” के आलोक में अद्वैत वेदांत की स्थापना विश्व के सभी धर्मों का मूलाधार बना..शास्त्रार्थ में अपराजेय रहे आदि शंकराचार्य.. मैं क्या हूँ? “मैं न तो पृथ्वी हूँ, ना जल, ना अग्नि, ना वायु, ना आकाश और ना ही कोई पदार्थ, मैं इन्द्रिय भी नहीं हूँ, और ना ही मन,.. मैं शिव हूँ, चेतना का अविभाज्य सार”.. ज्ञान के दो ही प्रकार हैं (Two types of knowledge).. एक परा विद्या – सगुण, एक अपरा विद्या – निर्गुण.. ब्रह्म मूलतः, तत्वत: एक है, जो अंतर दिखता है वह अज्ञानतावश है ब्रम्ह सत्य है जगत मिथ्या है त्रुटिवश लोग गलत अर्थ लगाते हैं जगत मिथ्या है का.. यहां जगत मिथ्या का अर्थ है जो दिखता है और अस्तित्व में तो है पर सत्य नहीं है शाश्वत नहीं है .. 4 पीठों के संस्थापक (बदरिका +श्रंगेरी +द्वारका शारदा +गोवर्धन पीठ पुरी).. फिर कभी विस्तार से चर्चा की जाएगी..

~ डॉ आनंद सिंह राणा