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युग प्रवर्तक: महामना पं. मदनमोहन मालवी

महामना पंडित मदनमोहन मालवीय एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, शिक्षाविद्, समाज सुधारक और हिन्दी पत्रकारिता के अधिष्ठाता थे। उन्होंने सन् 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करने का सर्वाधिक श्लाघनीय कार्य किया। उन्होंने दलितों के लिये मंदिर प्रवेश निषेध के खिलाफ देशभर में आन्दोलन चलाया। उन्हें मरणोपरान्त देश के सबसे बड़े सम्मान ‘‘भारतरत्न’’ से अलंकृत किया गया।

25 दिसम्बर को इलाहाबाद में जन्में पं. मदनमोहन भारतीय अपने महानतम कार्यों के सम्पन्न करने के कारण ही ‘महामना’ नाम से सुशोभित हुये। इनका परिवार मालवा का रहने वाला होने के कारण ये भी मालवीय कहलाये। शिक्षा समाप्त होने के बाद अध्यापक का कार्य, इसके अलावा पत्र इत्यादि के लिये लेख आदि लिखते।

बाद में कानून का अध्ययन करने के उपरान्त इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रख्यात वकील के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। इसके अलावा लेखन आदि में रूचि होने के कारण सन् 1885 से 1907 तक समाचार पत्रों विशेषकर ‘हिन्दुस्थान’ ‘इंडियन यूनियन’ तथा अभ्युदय में सम्पादकीय कार्य करते रहे।

वे एक सफल पत्रकार के रूप में सर्वत्र सराहना के पात्र बने रहे। अंततः पत्रकारिता ही उनका कार्यक्षेत्र बन गया। उन्होंने हिन्दी साहित्य की अभिव्यक्ति के लिये सन् 1910 में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। महामना हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्थान को सर्वोच्च स्थान प्रदान हो इन प्रयासों में आजीवन लगे रहे।

मालवीय जी ने असहयोग  आन्दोलन के लिये अपने आपको पूरी तरह समर्पित कर दिया। सन् 1928 में उन्होंने लाला लाजपतराय  और अन्य स्वातंत्र्य सेनानियों के साथ मिलकर साईमन कमीशन का पुरजोर विरोध किया और देशभर में जन जागरण अभियान चलाया। उन्होंने सन् 1931 में पहले गोलमेज सम्मेलन में देश का प्रतिनिधित्व किया। इसमें महिलाओं के लिये शिक्षा, विधवा विवाह का समर्थन तथा बालविवाह का घोर विरोध किया।

महामना पं. मदनमोहन मालवीय का व्यक्तित्व भी अपने समय के सर्वश्रेष्ठजनों जैसा, जीवन, कृतित्व और विचारों की छवि समाज को प्रेरित करने वाली भी। ऐसे महान ज्योर्तिपुंज महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने 13 नवम्बर को इस धरा से प्रस्थान किया। उनका मार्गदर्शन और कर्मशीलता से युवकों को प्रेरणा मिलती रहेगी।

पूज्य मालवीय जी को सत्य, दया और न्याय पर आधारित सनातन धर्म सर्वाधिक प्रिय था। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनाये गये उनके सूत्र, आत्मसम्मान की भावना, राष्ट्रभाव और मृदुभाषिता प्रकाश स्तम्भ सिद्ध होंगी। सही अर्थों में मालवीय जी के जीवन की सफलता मूलतः तीन तथ्यों से जुड़ी रहीं। इनमें चरित्रबल, विश्वास  से अनुप्राणित कर्मयोग और वाणी वैभव शामिल था। उन्होंने अपनी योग्यता के आधार पर ही वायसराय की कौंसिल, लेजिस्लेटिव कौंसिल और लेजिस्लेटिव असेम्बली आदि के सदस्य बने।

सन् 1913 में हरिद्वार के पास भीमपौड़ा में बाँध बनाने का काम शुरू किया गया। महामना ने इसके खिलाफ आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। तब शासन ने उन्हें आश्वासन दिया कि हिन्दुओं को अनुमति के बिना बाँध नहीं बाँधा जायेगा। ‘‘महामना ने गौवध रोकने गायों की सेवा व रक्षा करने के लिये सन् 1941 में गौरक्षा मंडल की स्थापना की थी।’’

लेख़क 
डाॅ. किशन कछवाहा
9424744170