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रूस – यूक्रेन विवाद व तृतीय विश्वयुद्ध की आहट

(पुतिन का एक्शन, ग्लोबल टेंशन)

किसी के बड़े होने का आधार उसकी शक्ति व संसाधन नहीं होते हैं। बड़े-बड़े आणविक हथियारों का जखीरा जमा करने से कोई बड़ा नहीं बन जाता है। बड़प्पन का आधार – आदर्श – नैतिकता – सदाचार व समष्टिगत हित के लिए किया जाने वाला वह बड़ा त्याग- तितीक्षा व श्रेष्ठ मानवीय मूल्य (आचरण) ही हो सकता है। शक्ति तो रावण के पास भी बड़ी-बड़ी थीं। किंतु क्या सदाचार – धर्म था ?

सिकंदर भी यूनान से विश्व विजय के लिए तलवार लेकर निकला था किंतु अंतिम हस्र क्या हुआ? तलवार (शक्ति) से कोई विश्व विजय कभी नहीं हुई है। बड़प्पन वर्चस्व ,बड़े दिखने की होड़ विनाश के कगार पर ले जाती है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था- “जो तलवार से विजय प्राप्त करते हैं उनका अंत भी उसी से होता है।” ऐसा ही कुछ दृश्य आज विश्व में ‘रूस- यूक्रेन के विवाद ‘ को लेकर बना हुआ है।

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श्री रामचरितमानस में आता है कि – “प्रभुता पाई काहू मद नाही ”
अर्थात – बड़प्पन आने के बाद मद, अहंकार ,क्षुद्रता नहीं दिखना चाहिए। किंतु रूस व अमेरिका के मध्य ये पंक्ति लागू नहीं होती है। बड़े दिखना व होना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। जो बड़ा होता है। वह दिखावा (प्रदर्शन) नहीं करता है। सूर्य का प्रकाश व ताप (तेज) ही उसके सूर्य होने का प्रमाण है। मूल्य/ मानवीय आदर्श ही बड़प्पन का आधार आदिकाल से रहे हैं।

वर्षों से अमेरिका व रूस में बड़े दिखने की प्रतिस्पर्धा चलती आ रही है। भौतिक विज्ञान में प्रगति होने से, संसाधनों की वृद्धि से,महाविनाशक शस्त्रों के निर्माण से, वर्चस्व की आकांक्षा से, संस्कारों की हीनता से यह प्रतिस्पर्धा की मानसिकता का जन्म हुआ है।

1990 तक रूस और यूक्रेन दोनों ही ‘सोवियत यूनियन ‘का हिस्सा रहे हैं। जब 1991 में यूक्रेन रूस से अलग हुआ तभी से विवाद का जन्म हुआ। और विवाद तब और बढ़ गया जब यूक्रेन से रूसी समर्थक राष्ट्रपति को हटा दिया गया।

रूसी सीमा से नजदीक यूक्रेन व जार्जिया के माध्यम से अमेरिका भी अपनी राजनीति करके रूस को नीचे दिखाना व विकास में रोड़ा अटकाने का कार्य बरसों से करता चला आ रहा है। रूसी सीमा से सटे दो अलगाववादी प्रांत ‘लुन्हास्क’- ‘डोनस्तक’ को रूसी राष्ट्रपति ने 21 फरवरी 2022 को स्वतंत्र देश के रूप में दर्जा(मान्यता) दे दिया जिससे नाटो देशों अमेरिका व ब्रिटेन (यूरोपीय संघ ) में खलबली मच गई।

अमेरिका द्वारा रूस को अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन से प्रतिबंध की धमकी दी गई है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने रूस से कहा कि- “यूक्रेन को जरूरत पड़ने पर हथियार भी देंगे व हर संभव मदद करेंगे।”

अमेरिकी राष्ट्रपति जो वायडेन ने रूस को रोकने के लिए ‘एग्जीक्यूटिव ऑर्डर’ भी दे दिया। इसी समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आपात बैठक भी बुलाई गई है। जिसमें विवाद के सभी पक्षों पर समाधान के लिए चर्चा /प्रयास प्रारंभ हो गए हैं। इस स्थिति में भारत ने कहा कि- “विवाद को बातचीत से सुलझाना जरूरी है अतः सकारात्मक कूटनीति से समाधान हो।” वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने यूक्रेन की अखंडता ,संप्रभुता का समर्थन किया है। अमेरिका द्वारा रूसी राष्ट्रपति पुतिन के हस्ताक्षर को ‘ विश्व युद्ध का हस्ताक्षर’ करार दिया है।

रूस – यूक्रेन विवाद पर विशेषज्ञ प्रो. हर्ष वी. पंत का कहना है कि- “व्लादीमीर पुतिन का रूस समर्थक अलगाववादियों की स्वतंत्रता को मान्यता देना एक बड़ी कूटनीतिक योजना का हिस्सा है। उन्होंने ‘लुंहास्तक’ दोनेस्टक ‘को स्वतंत्र देश की मान्यता देकर पूरे मामले को उलझा दिया है। नए ‘बफर जोन’ की स्थापना कर दी है।

दरअसल यूक्रेन में नाटो, अमेरिका का जिस तरह से दखल बढ़ रहा है। उससे पुतिन को चिंता बढ़ गई थी। पुतिन यह बार-बार कह रहे थे कि- यूक्रेन नाटो व अमेरिका का एक कॉलोनी बन चुका है। अमेरिका व नाटो देश यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी विरोध के रूप में कर रहे हैं। यूक्रेन के पास एटम बम होने से वह रूस की सामरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। यूक्रेन की सेना को नाटो हेड क्वार्टर से कमांड है।”

भारत के 20000 छात्र/नागरिक यूक्रेन में पढ़ाई/कार्य कर रहे हैं जिनको वापस बुलाने हेतु 22 फरवरी 2022 से एयर इंडिया की स्पेशल फ्लाइट चालू की गई हैं। विश्व के अन्य देश भी यूक्रेन से अपने देशवासियों को वापस बुला रहे हैं। यह खतरे का संकेत है।

विश्व शांति-सौहार्द के लिए यूक्रेन- रूस विवाद, रूस व अमेरिका के वर्षों की प्रतिस्पर्धा बहुत बड़ा खतरा है। मनुष्य को यह बात क्यों समझ नहीं आती है कि- यह संसार सहिष्णुता, सहअस्तित्व, मानवता, बंधुत्व, प्रेम, करुणा दया के मानवीय मूल्यों से चल रहा है, नाकी हीन मानसिकता, कट्टरपंथी, स्वार्थी मानसिकता से।

इतिहास के अनेको कॉलखंडों में, अनेकों अमानवीय विचारधाराएं उत्पन्न हुई व उनका नामोनिशान मिट गया। जिनका आज कोई नाम लेने वाला नहीं बचा। सब दंभी, हिंसात्मक, क्रूरतम अमानवीय विचार धाराएं अपने समर्थकों सहित काल के गाल में समा गई। उदाहरण के लिए नाजीवाद, फासीवाद, कम्युनिज्म, पोपशाही, दासप्रथा सामन्तवाद को हम देख सकते हैं। किंतु जो राष्ट्र मानवता, श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों -आदर्शों से चलते रहे वह आज भी फल-फूल रहे हैं। उन्हें नियता का आशीर्वाद भी मिल रहा है।

अतः विश्व शांति व मानवता के उज्जवल भविष्य के लिए सत्य- धर्म- नैतिकता के साथ हमें खड़े होना चाहिए। राष्ट्र व विश्व की सज्जन शक्ति को’ वसुधैव कुटुंबकम’ के हित में संगठित- एकजुट “संगच्छध्वं -संवदध्वं” होना चाहिए। कट्टरता, हिंसा, दहशतगर्दी, अतिक्रमण के अमानवीय विचार व संस्कार संपूर्ण विनाश के मार्ग पर ही ले जाते हैं।

यह अटल सत्य है की- सृष्टि के आदिकाल से प्रकाश ने हीं अंधकार को निगला है। कभी भी किल्विस (असुरता) का राज्य ‘अंधेरा कायम हो’ क्षणिक मात्र ही रहा है। अतः मानवता ही अटल है, शाश्वत है, अखंड है, इसी में विश्व का सुमंगल-कल्याण है। यही आज का हमारा ‘युगधर्म’ भी है।

लेखक:- डॉ. नितिन सहारिया
संपर्क:- 8720857296