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विवेक जी, संघ के ध्‍वज और प्रार्थना पर विवाद नहीं इसे हर घर में होना चाहिए।

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

हमारी वैचारिकता अलग हो सकती है, तर्क हमारी बुद्धि अलग हो सकती है और हमारी कार्य करने की शैली भी अलग हो सकती है, ग्लोबर इसके अन्य यदि कुछ अलग नहीं हो सकता है तो वह है भारत माता की दैत्य एवं अपने देश को अन्यथा की महाशक्ती। हम सभी का सामूहिक संकल्प जाने।

विवेक तन्खा निश्चित ही देश के मूर्धन्य विद्वान हैं, विधि विशेषज्ञ हैं, अनियमित सभा के सम्‍माननीय सदस्‍य हैं और हम सभी को उनकी योग्‍यता की क्षमता और अन्‍दद है। लेकिन जब उन्‍होंने सोशल मीडिया पर एक चित्र संघ प्रार्थना साझा की और लिखा कि ”सतना में आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होकर झंडा प्रणाम करने की तस्वीर सतना कलेक्टर और नगर निगम आयुक्त की हैं !! ऐसे संबंधों से लोक अधिकारी फेयर चुनाव कैसे कराएंगे। चुनाव आयोग ऑफ इंडिया ऐसे सभी अधिकारियों को चुनाव संबंधी तैयारी से दूर रखें। ” तब अवश्‍य विचार उठा कि असली ऐसा उन्‍हें संघ में क्‍या दिखाओ जो उसे वे इतना अधिक खतरनाक मानते हैं? और अपराध की श्रेणी में रखते हैं?

वस्‍तुत: जिस ध्‍वज को ये अधिकारी प्रणाम कर रहे हैं या जिस मुद्रा में वे खड़े हैं, संभवत: वह प्रार्थना की है, तब इन दोनों ही स्‍थ‍िति में इसमें ऐसा क्‍या बुरा हो रहा है कि उन्‍हें इसे इस तरह से नकारात्‍मक रूप से व्‍याख्‍यायित करने की आवश्‍यकता महसूस हुई है? आप देखेंगे कि यह वही राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ है जिसके कार्यालय पर एक माह तक महात्‍मा गांधी जी का रुकना हुआ । यह भी एक तथ्‍य है कि जिन्‍हें हम देश का राष्‍ट्रपति मानते और हर नोट पर उनकी सम्‍मान के साथ तस्‍वीर देते हैं, वे महात्‍मा गांधी इसी राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के वर्धा शिविर में साल 1934 में गए थे। महात्मा गांधी के अलावा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और प्रणब मुखर्जी, जयप्रकाश नारायण और सेना के पूर्व जनरल करियप्पा भी संघ शाखा एवं कार्यक्रमों जा चुके हैं। ऐसे अन्‍य कई नाम भी और गिनाए जा सकते हैं। जो समय-समय पर संघ के कार्यक्रमों में आते-जाते रहे हैं।

महात्‍मा गांधी ने 16 सितंबर 1947 की सुबह दिल्ली में संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा, ”बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था। संघ एक सुसंगठित, अनुशासित संस्था है। ” इनके अतिरिक्‍त यह भी एक साक्ष्‍य है कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ की भूमिका से नेहरू इतने प्रभावित हुए कि 1963 में गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को आमंत्रित किया था। उस वक्त 3000 स्वंयसेवकों ने गणवेश के साथ परेड में हिस्सा लिया था।

अब विवेक तन्खा जी विचार करें, वह संघ जिससे स्‍वयं महात्‍मा गांधी, नेहरु, डॉ. जाकिर हुसैन, जयप्रकाश नारायण, सेना के पूर्व जनरल करियप्पा, प्रणब मुखर्जी जैसे देश के महान जन प्रभावित रहे हैं, इसकी शाखा और कार्यक्रम में गए हैं, ध्‍वज प्रणाम भी किया है और प्रार्थना में ठीक इसी मुद्रा में खड़े रहे हैं, जैसा कि फोटो यहां देश के मुर्धन्‍य विधि विद्वान विवेक तन्खा जी ने साझा किया है, तब क्‍या माना जाना चाहिए ? क्‍या कोई इन सभी की देश भक्‍ति पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा सकता है? यदि ये सभी गलत नहीं हो सकते हैं, तब उस स्‍थ‍िति में ये दो अधिकारी कैसे गलत सिद्ध किए जा सकते हैं?

विवेक तन्खा जी को किसी ने सोशल मीडिया पर सही उत्‍तर भी दिया है, आरएसएस प्रतिबंधित संगठन नहीं है न ही आतंकी संगठन है। आरएसएस एक गैर राजनैतिक राष्ट्रवादी संगठन है और उससे जुड़ना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है। निश्‍चित ही जो संघ को दूर से देखकर विरोध के लिए विरोध के चश्‍में से संघ को देखते या देखना चाहते हैं, उन्‍हें संघ में खामियां ही नजर आएंगी। किंतु जो वास्‍तव में संघ को अंदर जाकर जानते हैं, वे यह बात स्‍वीकार करते हैं कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ विशुद्ध देश भक्‍तों का संगठन है, जिनके लिए संपूर्ण जीवन अपने राष्‍ट्र एवं सनातन संस्‍कृति के लिए समर्प‍ित है।

तन्‍खा जी, आप इन संघ गीतों की पंक्‍तियां देखिए – जन्म भूमि भारत हे कर्म भूमि भारत हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत, हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत !! जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे, तेरी जनम जनम भर हम वंदना करेंगे, हम अर्चना करेंगे… महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है, तू प्राण है हमारी, जननी समान तू है, तेरे लिये जियेंगे, तेरे लिये मरेंगे, तेरे लिये जनम भर, हम सधना करेंगे, हम अर्चना करेंगे…

एक अन्‍य गीत की इन पंक्‍तियों को भी पढ़ें-उठो शत्रु की सेना देखो सीमा पर ललकारती। बैरी भारत की धरती पर करता कितनी मनमानी। आज दिखा दो उन दुष्टों को कितना है हममें पानी। कैसे चुप बैठे हो भाई जननी बाट निहारती। ….या फिर यह गीत… एकता, स्वतंत्रता, समानता रहे। देश में चरित्र की महानता रहे, महानता रहे। कण्ठ हैं करोड़ों, गीत एक राष्ट्र का। रंग हैं अनेक, चित्र एक राष्ट्र का। रूप हैं अनेक, भाव एक राष्ट्र का। शब्द हैं अनेक, अर्थ एक राष्ट्र का। चेतना, समग्रता, समानता रहे। देश में चरित्र की महानता रहे। ऐसे अनेकों संघ गीत हैं, जिनका मूल भाव भारत के प्रति प्रेम और अपना सर्वस्‍व समर्पित कर देने में है।

इसके बाद भी यह समझ के परे है कि आखिर संघ का इतना विरोध क्‍यों? जब प्रशासनिक अधिकारी स्‍वयंसेवी संस्‍थाओं के कार्यक्रम में जाते हैं, उनके ध्‍वज एवं आयोजन गीत का सम्‍मान कर सकते हैं, तो यहां संघ के गीत, प्रार्थना या ध्‍वज के सम्‍मान में खड़े होने पर इतना विवाद क्‍यों किया जाता है? वस्‍तुत: जो आज विवाद कर रहे हैं, उन्‍हें संघ की प्रार्थना के अर्थ को भी समझना चाहिए, प्रार्थना इन शब्‍द रचना के साथ प्रारंभ होती है ; नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्।…हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ।

फिर आगे प्रार्थना में कहा गया- हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्‍दुस्‍थान के सुपुत्र तुझे आदर सहित प्रणाम करते है। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये। ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये।

उग्र वीरव्रती की हम भावना में उत्स्फूर्त होती रहे, जो सुप्रीम आध्यात्मिक सुख एवं महान ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे। हे माँ तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाने में समर्थ हो। अंत में भारत माता की जय कहा जाता है, जो कुछ भी हम करते हैं उसमे भारत माता की ही जय जय कार हो। अब विवेक जी एवं अन्य जिंघे संघ के होने से ही आप वे विचार करते हैं कि क्या अपने देश के लिए समर्पित होना या उसकी शिक्षा देना कोई अपराध है?