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विश्वव्यापी राम / 6

World wide RAM

इंडोनेशिया द्वीप की पुरातत्व उपलब्धियां और अर्वाचीन परंपराओं को देखने से स्पष्ट होता है कि वहां भारतीय संस्कृति की गहरी छाप है। वहां के इतिहास पर दृष्टि डालने से ही यह तत्व सामने आता है कि किसी जमाने में यह देश भारतीय उपनिवेश रहा है। वहां भारतीय पहुंचे हैं, उन्होंने अपना वंश विस्तार किया है इस भूमि को खोजा, बसाया और विकसित किया है। पीछे भारत से संबंध छूट जाने के कारण वहां पहुंचे अरबो के प्रभाव और दबाव में आकर वहां के निवासियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। फिर भी संस्कृति में भारतीयता का गहरा पुट बना ही रहा, जो अब तक विधमान है।

पीछे भगवान बुद्ध के शिष्यों ने वहां पहुंचकर बौद्ध-धर्म का प्रचार किया, किंतु इससे पहले शताब्दियों तक हिंदू धर्म का ही प्रसार-विस्तार होता रहा और उस द्वीप समूह के प्राय: सभी निवासी हिंदू धर्मावलम्बि बने रहे।

इंडोनेशिया के अनेक नगरों के नाम अभी भी भारतीय नगरों के समान है जैसे अयोध्या, हस्तिनापुर, तक्षशिला, तक्षशिला, विष्णुलोक, लवपुरी, नगर प्रथम आदि।

इंडोनेशिया में भारतीय संस्कृति की स्थापना और उसके विकास -विस्तार का महत्वपूर्ण विवरण कैंपर के- “अर्ली इंडोनेशिया आर्ट”, डॉ कुमार स्वामी के – “हिस्ट्री ऑफ इंडिया एण्ड इंडोनेशियन यूनिटी” व स्टुटैरहिम के – “रामा लीजेन्ड़ेन एण्ड रामा रिलफिंस इन इंडोनिशियेन” में प्रमाणिक सामग्री प्रस्तुत की गई है। इन्हें पढने पर यह विश्वास हो जाता है कि इंडोनेशिया द्वीप समूह में किसी समय भारतीय संस्कृति का ही बोलबाला था।

इंडोनेशिया नाम ग्रीक भाषा का है जो ‘इंडो’ और ‘नेसी’ शब्दों को जोड़कर बनाया गया है। ‘इंडो’ का अर्थ है भारत और ‘नेसी’ का अर्थ है द्वीप। इंडोनेशिया अर्थात “भारत का द्वीप”। इतिहास में पिछले दिनों तक इसको ‘ईस्टइंडीज’ कहा जाता था अर्थात ‘पूर्वी भारत’। किसी समय विशाल भारत का पूर्वी छोर इंडोनेशिया तक फैला हुआ था। उसके मध्य में आने वाले देश तो भारत के अंग थे ही। इंडोनेशिया की राजधानी ‘जकार्ता’ अर्थात जयकर्ता/योगकर्ता है। पड़ोस का प्रोविंस का नाम भी ‘योगकर्ता’ ही है।

विद्वान प्रवक्ता बीजेपी के डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, जी टी.वी. पर अपने एक वक्तव्य में कहते हैं कि- “इंडोनेशिया (दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश) प्रतिदिन जिसके ब्रॉडकास्ट पर ‘रामायण’ आती है। जहां भारत से भी अधिक ‘रामलीला’ खेली जाती हैं, और सारे के सारे पात्र मुस्लिम होते हैं।” है ना अदभुत, आश्चर्य जनक बात।

इस्लाम ने हिंद, चीन और इंडोनेशिया पर तूफानी वेग से आक्रमण किया। सन्ं 1400 के लगभग इस क्षेत्र के लोग मुसलमान बनने को बाध्य हो गए। इससे पूर्व उस क्षेत्र में हिंदू धर्म का ही प्रचलन शताब्दियों से चला आ रहा था। उपासना की दृष्टि से शिव और विष्णु की मान्यता वहां पर थी। उपलब्ध मूर्तियों,अवशेषों तथा शिलालेखों से यह पूर्णतया स्पष्ट है कि उस देश में शिव मंदिरों की स्थापना बड़े उत्साह के साथ हुई थी। साथ ही विष्णु मंदिर भी बनाए गए थे। शिव और विष्णु की सम्मिलित मूर्तियां भी मिली हैं।
युगऋषि, वेदमूर्ति पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अपने साहित्य में “भारतीय संस्कृति के विश्व संचार” का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि –
“इंडोनेशिया के प्रथम शिक्षा मंत्री ‘यासीन’ ने उस देश का विस्तृत इतिहास- “ताता नगरा मजहित सप्त पर्व” नाम से लिखा है और उसमें रामायण को उस “देश की सांस्कृतिक गरिमा” के रूप में स्वीकार किया है।

महाभारत पर आधारित देवरुचि, अर्जुन विवाह, काकविन (रामायण), द्रोपदी स्वयंवर, अभिमन्यु वध आदि कितने ही कथानक यहां की नाट्य परंपराओं में सम्मिलित हैं। 11वीं शताब्दी में महाभारत लिख गया, जिसका नाम है- ‘महायुद्ध’।
‘रामायण’ अभिनयों में जोग्या के सुल्तान की पुत्रियां सीता और त्रिजटा का अभिनय करती थीं। इंडोनेशिया का ‘रामायण मंचन’ (रामलीला) विश्व में प्रसिद्ध है।

7 सितंबर 1971 में इंडोनेशिया ने विश्व का सर्वप्रथम “अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव” किया और राष्ट्र संघ को उसमें सहयोग देने के लिए राजी कर लिया। यह उत्सव 15 दिन चला और उसमें फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वर्मा, लंका, भारत, नेपाल आदि देशों ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि मंडलीयां भेज कर उत्साह पूर्वक भाग लिया। रामलीला की कितनी शैलियां प्रचलित हैं, और उनकी अपनी-अपनी कितनी विशेषताएं हैं, इसे देखकर आगंतुक मंत्र मुग्ध रह गए। इस विश्व मेले में 300 कलाकारों और 20000 दर्शकों ने भाग लिया। यह विश्व का अद्वितीय आयोजन रहा।

इंडोनेशिया से सन 1969 में ईरान को 40 कलाकारों की एक संस्कृति मंडली भेजी गई और उसने “रामायण अभिनय” को नाट्य द्वारा ऐसी सुंदरता पूर्वक संपन्न किया कि ईरानी जनता मंत्र मुक्त रह गई। इस मंडली ने वापसी में दिल्ली में भी अपनी रामलीला दिखाई। जिसकी जनता ने भूरी-भूरी प्रशंसा की।

यों भारत में भी रामलीला का प्रचलन है ही, पर इंडोनेशिया में रामलीला कमश: अधिक कलात्मक होती गई है और उसके साथ जुड़े हुए नृत्य अभिनय इतने ऊंचे कला स्तर पर जा पहुंचे हैं कि उस क्षेत्र की सुरुचि को सराहे बिना नहीं रहा जा सकता है।
इंडोनेशिया (बाली) में विष्णु वाहन ‘गरुड़’ निवासियों के श्रद्धा पात्र हैं और उनके नाम पर एयरलाइंस का नाम “गरुण इंडोनेशिया” रखा गया है।

‘पंडान’ कस्बे की दुकानों के नाम अर्जुन, नकुल, लक्ष्मण आदि पर हैं। एक एक्सप्रेस गाड़ी का नाम है- भीम। इंडोनेशिया में हनुमान, रावण, जटायु आदि के मुखौटे भी जहां-तहां बिकते देखे जाते हैं।

न्यूयॉर्क में एक इंडोनेशियाई मुसलमान ने एक शानदार होटल खोला है। उसका नाम रखा है- ”रामायण होटल”। पन्थ/मजहब से मुसलमान होते हुए भी इंडोनेशिया बासियो की संस्कृति में रामायण के लिए अथाह/श्रद्धा का गहरा पुट है। उनके नाम अभी भी रत्नदेवी, लक्ष्मी, सीता, द्रोपदी, मेघवती तथा कार्तिकेय, सुकर्ण, सुब्रत, सुजय आदि पाए जाते हैं।

डॉ. शांति देवबाला ‘राष्ट्रधर्म’ – पत्रिका, 2000 के अपने लेख “बाली -द्वीप, जो आज भी हिंदू है” में लिखते हैं कि- “बाली (इंडोनेशिया) में सबसे ऊंचा पर्वत ‘गुनुड़ अंगुग’ 3142 मीटर ऊंची चोटी वाला है।” बाली निवासी इसे ‘स्वर्णगिरी’ या ‘मेरुपर्वत’ कहते हैं। ‘गुंनुड अंगुग’ का अर्थ है- विश्व-नाभी अर्थात सृष्टि का मूल-केंद्र। बाली निवासियों का दृढ़ विश्वास है कि सृष्टि यही से प्रारंभ हुई थी। बाली के लोग मधुर मुस्कान से स्वागत में “ॐ स्वस्ति” कहकर शुभकामना व्यक्त करते हैं। बाली में दूरदर्शन के कार्यक्रम का आरंभ प्राय: गायत्री मंत्र उच्चारण से होता है। बालीवासी वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, गीता जैसे ग्रंथो को अपना धर्म ग्रंथ मानते हैं। बाली वासीयो में ‘गंगाजल’ के प्रति श्रद्धा भारत के ही समकक्ष है।

विश्व के प्रसिद्ध इतिहास वेत्ता डॉ. शरद हेवालकर अपने ग्रंथ- “कृन्वंतो विश्वमार्यम”, पृस्ठ- 147, इंडोनेशिया संस्कृति का प्राण : रामकथा शीर्षक के अन्तर्गत लिखते हैं की-

“इंडोनेशिया की राजकीय परंपरा बदल गई परंतु सांस्कृतिक परंपरा आज भी बहुत मात्रा में भारतीय संस्कृति से अपना नाता व्यक्त करती है। इंडोनेशिया की भाषा, साहित्य, विधि आदि क्षेत्र पर भारतीयता का प्रभाव आज भी विद्यमान है। ब्रह्मांड पुराण और रामायण इन ग्रंथो पर आज भी गहरी श्रद्धा दिखाई देती है।”

‘मतराम’ साम्राज्य के काल में ‘योगेश्वर’ नामक कवि ने “रामायण काकविन” की रचना की थी। काकविन रामायण का आधार तो बाल्मीकि रामायण ही है।

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्ण ने एक समय भारत के प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था – “इंडोनेशिया और भारत की जनता रक्त और संस्कृति के पवित्र एवं सुदृढ़ धागों से परस्पर मजबूती के साथ बंधी है।”

क्रमशः ….

डॉ.नितिन सहारिया
8720857296