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विश्वव्यापी हिंदू संस्कृति- 23

(रामायण प्रेमी इंडोनेशिया)

इंडोनेशिया लगभग 6000 छोटे-छोटे द्वीपों का देश है। आबादी लगभग 28 करोड़ है और क्षेत्रफल 575450 वर्ग मील है। छोटे द्वीपों में से अधिकतर ऐसे हैं, जिनमें साधारण सी नावों के सहारे आसानी से आते -जाते रहते हैं।

इस द्वीप समूह की पुरातत्व उपलब्धियों और अर्वाचीन परंपराओं को देखने से स्पष्ट होता है कि वहां भारतीय संस्कृति की गहरी छाप है। वहां के इतिहास पर दृष्टि डालने से ही यह तथ्य सामने आता है कि किसी जमाने में यह देश ‘ भारतीय उपनिवेश’ रहा है। वहां भारतीय पहुंचे हैं, उन्होंने अपना वंश विस्तार किया है और इस भूमि को खोजा, बसाया और विकसित किया है। पीछे भारत से संबंध छूट जाने के कारण वहां पहुंचे अरबों के प्रभाव और दबाव में आकर वहां के निवासियों को षडयंत्र पूर्वक इस्लाम पंथ स्वीकार कराया गया। फिर भी संस्कृति में भारतीयता का गहरा पुट (संस्कार) बना ही रहा ,जो अब तक विद्यमान है। ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र का कोई राजकुमार वहां पहुंचा और इन दीप समूह में से कितने ही द्वीपों को उसने नए सिरे और नए ढंग से बसाया था। तब से भारतीयों का उस क्षेत्र में आना-जाना बना ही रहा ,पीछे भगवान वुद्ध के शिष्यों ने वहां पहुंचकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया। किंतु इससे पहले शताब्दियों तक इंडोनेशिया में सत्य सनातन हिंदू धर्म का ही प्रसार -विस्तार होता रहा और उस द्वीप समूह के प्राय: सभी निवासी हिंदू धर्मावलंबी बने रहे।

इंडोनेशिया के अनेक नगरों के नाम अभी भी भारतीय नगरों के समान हैं जैसे- अयोध्या ,हस्तिनापुर ,तक्षशिला, गांधार, विष्णुलोक,लवपुरी, नगर प्रथम आदि।

इंडोनेशिया में भारतीय संस्कृति की स्थापना और उसके विकास- विस्तार का महत्वपूर्ण विवरण श्री केम्पर के ” अर्ली इंडोनेशिया आर्ट ” डॉ कुमार स्वामी के ” हिस्ट्री ऑफ इंडिया एंड इंडोनेशियन यूनिटी” स्तुटैरहिम के “रामा लीजेंड एंड रामा रिलफिंस इन इंडोनेशियन” ग्रंथों में प्रमाणिक सामग्री सहित प्रस्तुत किया गया है। इन्हें पढ़ने पर यह स्वीकार करने में कोई अड़चन नहीं रह जाती है कि इंडोनेशिया दीप समूह में किसी समय भारतीय संस्कृति का ही बोलबाला था।

इंडोनेशिया का नाम ग्रीक भाषा का है जो ‘ इंडो ‘और’ नेसी ‘ शब्दों को जोड़कर बनाया गया है। इंडो का अर्थ है ‘भारत ‘और नेसी का अर्थ है ‘द्वीप ‘। इंडोनेशिया अर्थात “भारत का द्वीप” । यहां चिरकाल तक भारतीय सभ्यता की जड़ जिस गहराई तक जमी रही हैं , उसे देखते हुए यह नामकरण सर्वथा उचित ही कहा जा सकता है। इन दीप समूह का इतिहास पिछले दिनों तक ‘ ईस्ट इंडीज ‘ कहा जाता रहा है। ईस्ट इंडीज अर्थात पूर्वी भारत। जिस प्रकार अब उत्तर भारत और दक्षिण भारत एक होते हुए भी उसकी भौगोलिक जानकारी के लिए उत्तर- दक्षिण का प्रयोग करते हैं । उसी तरह किसी समय विशाल भारत का पूर्वी छोर इंडोनेशिया तक फैला हुआ था। उसके मध्य में आने वाले देश तो भारत के अंग थे ही।

इस्लाम ने हिंद, चीन और इंडोनेशिया पर तूफानी बेक से आक्रमण किया। सन 1400 के लगभग इस क्षेत्र के लोग बलात मुसलमान बनने को वाध्य हो गए। इससे पूर्व उस क्षेत्र में सनातन हिंदू धर्म का ही प्रचलन शताब्दियों से चला आ रहा था। उपासना की दृष्टि से शिव की प्रथम और विष्णु की द्वितीय मान्यता वहां पर थी। उपलब्ध मूर्तियों, अवशेषों तथा शिलालेखों से यह पूर्णतया स्पष्ट है कि उस देश में शिव मंदिरों की स्थापना बड़े उत्साह के साथ हुई थी। साथ ही विष्णु मंदिर भी बनाए गए थे। शिव और विष्णु की सम्मिलित मूर्तियां भी मिली हैं।
यों सारा कंबोडिया इस्लामी सभ्यता के प्रसार के साथ-साथ मंदिरों के खंडहरों से भरता चला गया पर अभी भी जो बचे हैं , उनको कम महत्वपूर्ण और गौरवास्पद नही कहा जा सकता।

इंडोनेशिया के प्रथम शिक्षा मंत्री ‘ यासीन ‘ ने उस देश का विस्तृत इतिहास ” ताता नगरा मजहित सप्त पर्व ” नाम से लिखा है। और उसमें रामायण को उस देश की सांस्कृतिक गरिमा के रूप में स्वीकार किया गया है।
महाभारत पर आधारित देवरुचि ,अर्जुन- विवाह ,काकविन ,द्रोपती स्वयंबर ,अभिमन्यु- वध आदि कितने ही कथानक भी यहां की नाट्य परंपराओं में सम्मिलित हैं। 11वीं शताब्दी में महाभारत लिखा गया जिसका नाम है- ” महायुद्ध”।

जोग्या कार्ता का प्राचीन शिवालय 140 फुट ऊंचा है । इसमें 16 बड़े और 240 छोटे मंदिर सम्मिलित हैं । भूचाल से ध्वंस होने पर भी जो कुछ बचा है वह भी अत्यधिक हृदयग्राही है। रामायण अभिनय में जोगिया के सुल्तान की पुत्रियां सीता और त्रिजटा का अभिनय करती थी।

7 सितंबर 1971 में इंडोनेशिया ने ” विश्व का सर्वप्रथम अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव” आयोजित किया और राष्ट्र संघ को उसमें सहयोग देने के लिए राजी कर लिया। यह उत्सव 15 दिन चला और उसमें फिजी, सिंगापुर ,मलेशिया, थाईलैंड ,लाओस, कंबोडिया, वर्मा ,लंका ,भारत, नेपाल आदि देशों ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि मंडलिया भेजकर उत्साह पूर्वक भाग लिया । रामलीला की कितनी शैलियां प्रचलित हैं और उनकी अपनी- अपनी कितनी विशेषताएं हैं। इसे देखकर आगंतुक मंत्रमुग्ध रह गए । इस विश्व मेले में 300 कलाकारों और 20000 दर्शकों ने भाग लिया जो अपने आप में अद्वितीय था।

सन 1969 में ईरान को 40 कलाकारों की एक ‘ संस्कृति मंडली ‘भेजी गई और उसने रामायण अभिनय को नाट्य द्वारा ऐसी सुंदरता पूर्वक संपन्न किया कि ईरानी जनता मंत्र-मुग्ध रह गई। इस मंडली ने वापसी में दिल्ली में भी अपनी रामलीला दिखाई जिस की जनता ने भूरी -भूरी प्रशंसा की।
यो भारत में भी रामलीला का प्रचलन है। दशहरा के अवसर पर रावण वध, भरत मिलाप आदि के दृश्यों सहित छोटे- बड़े समारोह उत्तर -भारत में प्राय: हर नगर में होते हैं, पर इंडोनेशिया में रामलीला क्रमश: अधिकाधिक कलात्मक होती गई है और उसके साथ जुड़े हुए नृत्य अभिनय इतने ऊंचे कला- स्तर पर जा पहुंचे हैं कि उस क्षेत्र की सुरुचि को सराहे बिना नहीं रहा जा सकता। चर्म पुतलियों द्वारा संपन्न होने वाले नाटक ,भारत की कठपुतली कला को बहुत पीछे छोड़ देते हैं। बिहार के सेराई केला क्षेत्र में ‘ छाऊ ‘ नृत्य को देखकर इस क्षेत्र की नृत्य शैली का थोड़ा आभास भर मिल सकता है।

विष्णु वाहन गरुड़ इंडोनेशिया के निवासियों के श्रद्धापात्र हैं। उनके नाम से ” गरुण एयरवेज कंपनी ” अथवा गरुण इंडोनेशिया एयरलाइंस “चलती है । विदेशों की यात्रा का सरंजाम प्राय: उसी को जुटाना पड़ता है। ” गरुण पर सवारी कीजिए,” “गरुण गति से प्रवास कीजिए” जैसे विज्ञापन इस वाहन कंपनी की तरफ से बांटे चिपकाए जाते हैं। ‘गरुण’ नाम को प्रधानता इसलिए इन विज्ञापनों में दी जाती है कि जनता में गरुण- श्रद्धा की चर्चा करके यात्रा के लिए अधिक उत्साह संपन्न किया जाए।
पंडान कस्बे की दुकानों के नाम अर्जुन ,नकुल, लक्ष्मण आदि पर हैं । एक एक्सप्रेस गाड़ी का नाम है – भीम । चमड़े की बनी पुतलियां यहां की बड़ी दुकानों पर हर जगह मिलती हैं । उसी प्रकार हनुमान, रावण, जटायु आदि के मुखोटे भी जहां-तहां बिकते देखे जाते हैं।

न्यूयॉर्क में एक इंडोनेशियाई मुसलमान ने एक शानदार होटल खोला है उसका नाम रखा है ‘ रामायण होटल ‘ धर्म से मुसलमान होते हुए भी इंडोनेशियाई वासियों की संस्कृति में रामायण के लिए श्रद्धा का गहरा भाव है। उनके नाम अभी भी रत्न देवी, लक्ष्मी ,सीता, द्रोपती, मेघबत्ती तथा कार्तिकेय, सुकर्ण , सुब्रत, सुजय आदि पाए जाते हैं । इस होटल के उद्घाटन में राष्ट्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष श्री आदम मलिक सपत्नीक उपस्थित थे ।श्री मलिक इससे पहले इंडोनेशिया सरकार के मंत्री रह चुके हैं।
इस्लामी विस्तार बाद भारत को रौंदा हुआ चौदवी सदी में इस क्षेत्र में भी जा पहुंचा और अपनी गहरी जड़ें जमाई । इस क्षेत्र की जनता में 87% मुसलमान हो गए हैं । शेष 13% में हिंदू तथा अन्य धर्म अनुयाई तथा धर्मावलंबी शामिल हैं । पुर्तगाल, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजों की घुसपैठ भी 15 वी सदी के आरंभ में हो गई थी जो पिछले शताब्दी तक चलती रही।

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्ण ने एक समय पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र में लिखा था – ” इंडोनेशिया और भारत की जनता रक्त और संस्कृति के पवित्र एवं शुद्द धागों से परस्पर मजबूती के साथ बंधी है।”
स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद इंडोनेशिया और भारत के संबंध बहुत ही अच्छे थे । पीछे चीनियों ने उन्हें विषाक्त बना दिया । क्रमश:अब सम्वंधो में सुधार हो रहा है और आशा की जाती है कि धर्म की भिन्नता रहने पर भी इंडोनेशिया और भारत की सांस्कृतिक एकता दोनों को पुनः घनिष्ठता के संबंध सूत्र में बांधे बिना ना रहेगी।

इस्लाम के बारे में पूछने पर एक इंडोनेशियाई नागरिक यह कहता हुआ पाया गया कि- ” हमने अपना पंथ बदला है ,पूर्वज नहीं।” प्राचीन काल में इंडोनेशिया को बालीद्वीप के नाम से पुकारा जाता था जो भारत का ही पूर्वी छोर था । जहां पर भारत यथार्थ में बसता था किंतु चौदहवी सदी के बाद इस्लाम की आंधी ने छोटे-छोटे राष्ट्रों में एक षड्यंत्र के तहत पहुंचकर भोली -भाली जनता को इस्लाम में कन्वर्ट करना शुरू किया और इंडोनेशिया का भी वही हाल हुआ जो कभी ईरान ,इराक, पर्शिया सहित 56 कंट्रिओं ( देशों) का हुआ। किंतु खुशी की बात यह है। इंडोनेशिया वासी अपने को भारतीयों का ही वंशज मानते हैं एवं भारतीय संस्कृति से अभी भी ओत-प्रोत हैं अतः इंडोनेशिया भारत ही है।

लेख -डॉ. नितिन सहारिया