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विस्तारवादी चीन पर भारत की रणनीति

विस्तारवादी चीन पर भारत की रणनीति

विस्तारवादी चीन पर भारत की रणनीति को समझने से पहले हमे कुछ बिन्दुओ को समझना आवश्यक है –  भारत चीन संबंधों का विकास:- तिब्बत ने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से पृथक कर, दोनों देशो के मध्य शांति और सद्भाव स्थापित करने एक सेतु का कार्य किया।

परंतु वर्ष 1950-51  में जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ कब्ज़ा कर लिया तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा कर पड़ोसी देश बन गए। 1 अप्रैल, 1950 को भारत-चीन के मध्य राजनयिक संबंध स्थापित हुए। भारत चीन के जनवादी गणराज्य के साथ संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी देश था।

भारत चीन के मध्य विवाद की शुरुवात:- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू एक स्वतंत्र तिब्बत के पक्ष में थे, नेहरू जी के इस विचार ने शुरुआती दौर में भारत और चीन के संबंधों को कमज़ोर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बौद्ध धर्म के अनुयाई देश तिब्बत मे लोग धर्म गुरु दलाई लामा को अपना जीवित आध्यात्मिक गुरु के रूप में देखते थे, दलाई लामा के प्रति अगाध आस्था और उन्हे ईश्वर के रूप में मानना चीन को अलगावदी खतरा प्रतीत हुआ साथ ही भारत और तिब्बत के मध्य आध्यात्मिक संबंध चीन के लिए चिंता का विषय बना।

तिब्बत से अलगाववादी खतरा और भारत तिब्बत के मध्य आध्यात्मिक संबंधो ने चीन के खतरे को और बढ़ा दिया। इसी खतरे को देख विस्तारवादी चीन जिसे एशिया का अजगर भी कहा जाता है ने वर्ष 1950-51  में तिब्बत पर आक्रमण कर तिब्बत के कुछ इलाकों को स्वायत्तशासी क्षेत्र में बदल दिया गया और बाक़ी  इलाकों को चीनी प्रांतों में मिला दिया।

वर्ष 1959 में चीन में हुए नाकाम विद्रोह के बाद 14 वें दलाई लामा ने भारत से शरण माँगी जिस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिका के कहने पर 14 वें दलाई लामा को शरण देने सहमति जताते हुए उन्हे शरण दे दी,

और इसी सहमति ने भारत और चीन के हिन्दी चीनी भाई-भाई के संबंधो को तोड़, तनाव को जन्म देने का कार्य किया। वास्तव में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की यह एक बड़ी भूल साबित हुई जिसे भारत आज तक भुगत रहा है।  

भारत-चीन के मध्य विवाद- भारत और चीन के मध्य न केवल दलाई लामा को शरण देना विवाद का प्रमुख कारण था बल्कि सीमा विवाद, जल विवाद व अन्य कारण भी भारत चीन के मध्य वैमनस्यता के कारण है।

यूँ तो भारत और चीन के मध्य सीमा का निर्धारण वर्ष 1938 में मेकमोहन रेखा के द्वारा किया गया जिसके मुताबिक अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा माना गया था। वर्तमान में भारत और चीन के मध्य अक्साई चीन से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सीमा विवाद है। दोनों ही देश इन क्षेत्रों पर अपना-अपना दावा प्रस्तुत करते हैं, ज्ञातव्य है कि वर्तमान में अक्साई चिन, चीन के पास है, जबकि अरुणाचल प्रदेश भारत के पास।

भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर भी विवाद है जो दोनों देशों से होकर बहती है। इसके साथ ही दक्षिण चीन सागर जो एक ऐसा समुद्री क्षेत्र है जहाँ प्राकृतिक तेल और गैस के प्रचुर मात्रा में भंडार उपलब्ध हैं जिस पर चीन, ताइवान और वियतनाम अपनी दावेदारी जताते रहे हैं जबकि दक्षिण चीन सागर के 90% हिस्से को चीन अपना मानता है।

वियतनाम के अनुरोध पर भारत का दक्षिण चीन सागर में तेल का अन्वेषण का कार्य करना भी भारत-चीन के मध्य तनाव का एक अन्य प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त चीन के द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर के हिस्से में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का बनाया जाना है,

जो चीन की वन बेल्ट वन रोड (ओ.बी.ओ.आर.) की एक महत्त्वाकांक्षी आधारभूत ढाँचा विकास एवं संपर्क परियोजना का हिस्सा है। सीमा पार आतंकवाद मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन, अनुच्छेद 370 पर पाक समर्थित रुख आदि भी भारत चीन संबंधो में कड़वाहट पैदा करने का काम करते है।

विस्तारवादी चीन पर भारत की रणनीति:- भूटान सीमा से सटे डोकलाम क्षेत्र को लेकर भारत-चीन विवाद के बाद हाल ही में लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी तथा भारतीय सैनिको के मध्य बड़ी झड़प चर्चा में रही है। 

भारत की रणनीति को हम निम्न बिन्दुओ के आधार पर समझ सकते है- भारत सरकार द्वारा चीन से सटे भारत के प्रदेशों की सीमाऑ पर अवसंरचना विकास में तेजी लाई है तथा सीमाओ पर पर्याप्त सैन्य बल की तैनाती की है। भारत सरकार द्वारा हाइवे प्रोजेक्ट से लेकर एम.एस.एम.ई. सेक्टर में चीनी कंपनियो का भारत आने का रास्ता बंद कर देना।

चीनी कंपनियो के साथ सरकारी तथा निजी क्षेत्रों में कार्यो को लेकर हुए करार तथा अनुबन्धो को निरस्त करना। भारत का चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना। चीनी सामानो पर निर्भरता को न्यून करने “आत्मनिर्भर भारत” कार्यक्रम शुरू करना। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री का “लोकल के लिए वोकल” बनने का आह्वान करना।

भारत में इस्तेमाल होने वाले 59 चीनी मोबाइल एपलीकेशन पर प्रतिबंध लगाना, दूरसंचार एवं विद्धुत क्षेत्र में विभिन्न कार्यो में लगने वाले चीनी उपकरणो की खरीदी पर तत्काल रोक लगाई। भारत में एफ.डी.आई के जरिए चीन के निवेश और हिस्सेदारियों को रोकने कदम उठाए है। भारतीय सेना ने एल.ए.सी के समीप प्रक्षिक्षण कार्यक्रम मे तेजी लाकर नया प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार किया है।

चीन के उसी की रणनीति के तहत घेरने, विदेश नीति को प्रभावशाली बनाते हुए चीन से सटे देशो पर चीन के प्रभाव को परिमित करने भारत ने उन देशो से अपने संबंधो को मजबूत बनाया है।

भारत द्वारा चीन के पड़ोसी देशी जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया से राजनीतिक एवं कूटनीतिक संबंध स्थापित कर विपरीत परिस्थितियो में वियतनाम के बंदरगाहों पर भारतीय नौसेना द्वारा उपयोग करने पर देशो ने सहमिति बनाई है।

दक्षिण चीन सागर से सटे चीन के पड़ोसी देशो के मध्य साहियोग आधारित नौसैनिक रणनीति तैयार की है। उन्नत शास्त्रो की खरीदी और उसे सेना में शामिल किया गया है। भारत सरकार ने रक्षा व्यय में इजाफा किया है। चीनी सेना से मोबिलाइजेशन टाइम को कम करने निर्माण कार्यो को द्रुत गति से कराना सुनिश्चित किया।

भारत द्वारा चीनी नौसेना के प्रमुख ठिकानो पर नजर रखने वियतनाम में इलेक्ट्रोनिक इंटेलिजेंस स्टेशन विकसित करने का प्रस्ताव। चीनी उन्नत तकनीक के बराबर आने, भारत मे तकनीकी और अनुसंधान क्षेत्र में बढ़ावा दिया है। साइबर युद्ध से सामना करने विभिन्न उन्नत प्रोधोगिकी का विकास किया है।

नई युद्धक रणनीति के तहत भारतीय सड़क निर्माण और बुनियादी ढाँचे के विकास मे तेजी लाई। भारत की युद्ध रणनीति तथा इंट्रीगेटेड बैटल ग्रुप की क्षमताओ के अंकलन हेतु पर समय समय पर माँक वार गेम का आयोजन पर बल दिया। अनुच्छेद 370 को समाप्त कर चीन से सटे लद्दाख को केंद्र के नियंत्रण वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया।

शीत ऋतु में लद्दाख एवं अरुणाचल के दुर्गम इलाको में दुर्लभ एकीकृत युदा अभ्यास का आयोजन आयोजन किया। भारत ने चीनी से युद्ध क्षमता के आंकलन हेतु भारतीय सेना की चीन के साथ संयुक्त युद्धा अभ्यास शुरूवात की।

चीन की सीमा से सटे भारतीय राज्यो जैसे लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल आदि में दुर्गम इलाको में परिवहन को मजबूत बनाया, जिसके तहत रेल रूट , सड़क मार्ग तैयार किए गए, नए बड़े पुलो का निर्माण एक निश्चित समय पर कराया गया।

डोकलाम विवाद के बाद चीन से सटी भारतीय सीमाओ में टँक रेजीमेंट की तैनाती। भारत द्वारा चीन के पड़ोसी देश वियतनाम को ब्रांहोस मिसाइल की आपूर्ति।

निष्कर्ष:- विकासशील भारत ने न केवल खुद को सबसे बड़े वैश्विक बाजार के रूप में स्थापित किया है बल्कि सैन्य ताकत में भी स्वयं को मजबूत बनाकर विश्व में अपना एक स्थान बनाया है। आज चीन की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा भारत के बाजारो पर निर्भर है,

इस बात को चीन को समझना होगा और भारत जैसे उभरती शक्ति को 1962 का भारत न समझ अपनी विस्तारवादी नीति पर पूर्ण विराम लगाना होगा।

भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ तथा चीनी दर्शन ‘सार्वभौमिक शांति’ तथा ‘सार्वभौमिक प्रेम’ की अवधारणा एक दूसरे की पूरक हैं। वर्तमान समय में 70 वर्ष पुराने राजनयिक संबंधो के पीछे की मूल आकांक्षा को फिर से जागृत करने तथा अच्छे पड़ोसी व दोस्ती, एकता और सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने चीन को अपनी विस्तारवादी नीति और आतंक के पर्याय देश पाकिस्तान के समर्थन के त्याग करना होगा।

गौरव शर्मा                                                                                                                 (लेखक एवं सामाजिक विचारक)