Trending Now

विस्वव्यापि राम/8

आज का मलेशिया जिसे प्राचीन काल में मलाया नाम से पुकारा जाता था । प्राचीन समय में वर्मा से लेकर मलेशिया का यह सारा क्षेत्र भी भारत में ‘स्वर्णदीप’ या ‘स्वर्णभूमि’ के नाम से पुकारा जाता था। अलबरूनी, इब्न, रुइँद- फरिंद के ग्रथो में यही नाम दिया गया है। इस क्षेत्र को बसाने वाले लोगों को इतिहासकारों ने ‘इंडोनेशियन’ कहा है। उनकी आकृति-प्रकृति का जिस प्रकार वर्णन किया जाता है, उसे देखते हुए उन्हें भारतीय मानने में कोई संकोच नहीं रह जाता।

मलेशिया क्षेत्र में ईसा की पहली-दूसरी शताब्दी में हिंदू धर्म पहुंचा और सातवीं सदी तक निर्वाध गति से फैला और बढ़ता रहा उसे क्षेत्र में मिले ध्वंसावशेष और शिलालेख स्थित की परिपूर्ण पुष्टि करते हैं। ‘फाह्यान’ के अनुसार “उस क्षेत्र पर हिंदू धर्म का भारी प्रभाव था।” मलाया और जावा की बनी हुई भारतीय मूर्तियां पीरू और मैक्सिको तक मिलती है। मलायी भाषा में संस्कृत के हजारों शब्द मौजूद हैं।

मलाया में वर्तमान में यू इस्लाम धर्म के अनुयायियों का बाहुल्य है, जो वंहा के सम्राट कहलाते हैं। सुल्तान के नाम के साथ जोड़ने वाली अनेक उपाधियां में से एक “श्री पादुका” भी है। जिस प्रकार भरत जी श्रीराम की चरण पादुकाओं को अयोध्या के शासन का स्वामी मानते थे और अपने को कार्यवाहक मात्र कहते थे। उसी प्रकार सुल्तान भी राजगद्दी का स्वामी भगवान को मानकर ‘कार्य संचालन’ करते हैं। यह मर्यादा “श्री पादुका” उपाधि में है। जो रामायण काल की याद दिलाता है ।

मलाया के मुसलमानों में निकाह तो इस्लामी विधान के साथ ही होता है पर उस अवसर पर ‘रामायण’ या ‘महाभारत’ का कोई अभिनय अवश्य किया जाता है। यदि वैसा न किया जाए तो निकाह पूरा हुआ नहीं माना जाएगा।

यूनान के भूगोल वेत्ता ‘पाटोलेमी’ ने मालाया आदि भारत के सारे देश का उल्लेख “इंडिया बियोंड द गेंगेज” अर्थात “गंगा पार का भारत” का नाम देकर किया है। किसी समय यह देश भारतीय धर्म के अंतर्गत ही था। अभी भी वहां भारतीयों की संख्या पर्याप्त है।
प्रख्यात इतिहास वेत्ता ‘सिलवियन लेवी’ ने लिखा है कि- “इराक से लेकर चीन सागर तक का और प्रशांत महासागर के द्वीपों से लेकर ऑस्ट्रेलिया की पूर्वी तट पर स्थित ‘कोमा’ द्वीप तक भारत ने मानव जाति की एक चौथाई जनसंख्या को पिछली शताब्दी में प्रभावित किया है।”

चौथी सदी में भारतीयों की अनेक बस्तियां मलाया में बसी हुई थी। इनमें से बड़ी बस्तियां चुनफान, काया, नाटवान, धम्मरथ, श्रीमान याला, सीलिंन सिंग, मलक्का ,बेलेसली, तकुआ, लानया नाम से प्रख्यात थी। इन क्षेत्रों की खुदाई में जो सामग्री मिली है उसे पता चलता है कि ‘पल्लव’ और ‘चोल वंश’ के राजाओं का इस क्षेत्र पर शासन था। इन राजाओं में ‘राजेंद्र चोल’ का प्रभुत्व था। तब हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का भी यहां भारी प्रसार था। हिंदुओं ने मलाया प्र्रायदीप में कई हिंदू राज्यों की स्थापना की थी। जिनमें से कुछ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कायम हुए थे। इसके संबंध में चीनी विवरण प्राप्त है। इसके अतिरिक्त पान-पन, फुनन, कमलंका, कलशपुर, कल (केद्दाह) तथा पांग हिंदू राज्य थे। ‘गनांग जेराई’ (केद्दाह शिखर) पर्वत की तलहटी में ‘सुगइबतु’ राज्य में एक हिंदू मंदिर तथा कुछ पाषाण मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। मलय के उत्तरी भाग में स्थित “वेलेसली प्रांत” में कुछ मंदिरों के, खम्बो के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए। सेलेन्सिंग (परेक) क्षेत्र में सोने का एक आभूषण मिला, जिस पर गरुड़ पर आसीन विष्णु का चित्र अंकित है, प्राप्त हुआ है।
तकुअ-प (जिसे पटोलेमी ने ‘टकोला’ प्राचीन बंदरगाह बतलाया है) के चारों ओर के क्षेत्र में मंदिर एवं सुंदर मूर्तियां के ध्वंसावशेष कायम है।

मलाया देश के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में जो शिलालेख प्राप्त हुए हैं। वे संस्कृत भाषा में तथा करीब चौथी-पांचवी शताब्दी ई. में प्रचलित भारतीय अक्षरों में लिखे हुए हैं। शिलालेखों में से एक शिलालेख में महानाविक ‘बुद्धगुप्त’ के बारे में उल्लेख है जो की ‘रक्तमृतिका’ का रहने वाला था। ‘रक्तमृतिका’ (लालमिट्टी) बंगाल में मुर्शिदाबाद से 12 मील दक्षिण में स्थित ‘रमभाटी’ ही है।

मलय प्रायदीप में हिंदू उपनिवेशों की संख्या बहुत थी और यह दूरस्थ केंद्रो जैसे पूर्वी तट में स्थित ‘शुभफौन’, सिया, बंदोंन नदी की घाटी नरवोन श्री धम्मरत लिंगोर मल (पटनी के पास) और सेलसिंग (पेहंग में) और पश्चिमी तट में स्थित मलक्का, वेलेसली प्रांत, टकुअ-पा और लनय, एवंटेनस्सेरिम, नदियों के पश्चिमी तट में बसे हुए थे। इसमें नरवोन के थोड़ा उत्तर में ”सिया उपनिवेश” स्थित था। रामायण में सीता जी को ‘सिया’ नाम से पुकारा गया है। तब हम समझ सकते हैं की मलेशिया का यह क्षेत्र भगवान श्रीराम की धर्मपत्नी सिया (सीता) से प्रभावित/प्रेरित रहा है, जो रामायण काल त्रेतायुग की स्मृति को ताजा करता है। जहां पहले ब्राह्मण धर्म (वैदिक धर्म) बाद में बौद्ध धर्म प्रचलित हो गया।

मलय के राजा ‘भगत’ ने सन 515 ईस्वी में अपना राजदूत ‘आदित्य’ चीन भेजा था। इसके बाद के राजाओं के नाम के साथ ‘वर्मा’ शब्द जुड़ा होता है, जिससे सिद्ध होता है कि वह क्षेत्र हिंदू राजाओं के हाथों में रहा है। जो 15वीं सदी में मलय निवासियों को इस्लाम स्वीकार करना पड़ा, फिर भी अब तक उस देश के निवासियों के हिंदू नाम ही पाए जाते हैं। प्राचीन राजाओं के नाम भूमिपाल, आनंद मही, नरोत्तम बर्मन, जय बर्मन, इंद्र वर्मन आदि इसी तथ्य पर प्रकाश डालते है कि यह देश भारत का हिस्सा रहा है, यहां हिंदुस्तान बसता था।
इतिहास विद डॉ. अखिलेश चंद शर्मा अपने ग्रंथ “विश्व सभ्यताओं का जनक: भारत” में लिखते हैं- ‘वायु पुराण’ में भारतवर्ष के दक्षिण में महासागर है। जिसमें मलय दीप है। कुछ द्वीपों के नाम अंग, यम, मलय, शंख, कुश और वराह हैं।
इसी हिमालय पर्वत के संबंध में बाल्मीकि रामायण में अंगद अपने वानर दलों को सीता जी की खोज में स्थान बताते हुए कहते हैं कि- उस प्रसिद्ध मलय पर्वत के शिखर पर बैठे हुए सूर्य के समान महान तेज से संपन्न मुनिश्रेष्ठ अगस्त का दर्शन करना।

तस्यासीन्ं नगस्याग्रे मलयस्य महोजसम्ं।
दृश्ययथादित्यसंकाशमगस्त्यमृषिसत्तमम्ं ।।

इतिहासकार डॉ. शरद हेवालकर अपने ग्रंथ “कृन्वंतो विस्वमार्यम” में मलाया (मलेशिया) का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि-
भारतीय साहित्य में कटाह द्वीप एवं कटाह नगर के उल्लेख आते हैं। प्राचीन ‘कटाह’ नगर वर्तमान केद्दा या (केदाह) है। यहां के परिसर में 30 स्थान पर उत्खन्न हुआ है। लगभग 12 शिव मंदिरों के और आठ स्तूपों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसमें “वाट सुन्गेही बटुपहत” और “चंडी बुकित बटु” के मंदिर तांत्रिक संप्रदाय के थे। बुजड्ं (भुजंग) नदी के दक्षिण तट पर शिव मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। एक भी मूर्ति अभंग नहीं है। शिवलिंग, नंदी, महिषासुरमर्दिनी, गणेश और स्कंद की खंडित मूर्तियां प्राप्त हुई है।

वेलेसली प्रांत में ‘टोकून’ नामक स्थान पर 7 और इस प्रदेश में अन्य स्थान पर 4 अभिलेख मिले हैं। लिगोर में पांच लेख प्राप्त हुए हैं। केद्दा (केदाह) एवं तकुआ -पा (तक्कोला) से भी एक-एक संस्कृत अभिलेख प्राप्त हुआ है। लिंगोर से प्राप्त शिलालेख कलियुगाव्द 3877 अर्थात 775 ई. का है। श्री धर्मराट् (लिगोर) में शैलेंद्र राजा श्री महाराज विष्णु द्वारा निर्मित मंदिरों का वर्णन है। श्री महाराज विष्णु की प्रशंसा अभिलेख में है।

मलाया का आध्यात्मिक तथा भौतिक जीवन भारत की देन है। मलय की जनता हिंदू धर्माव्लम्बि थी। शासन व्यवस्था मनुस्मृति के आधार पर बनाई गई थी, लिपि नागरी व कला भारतीय थी। रामायण, महाभारत, पुराण तथा वैदिक साहित्य प्रचलित था। मलाया में प्राप्त प्राचीन साहित्य में “हिकायत पिन्डव” प्रसिद्ध है, जिसमें महाभारत की पांडव कथा है। “पुत्ति कोल विष्णु” में ‘विष्णु पुराण’ की कथाएं हैं। “पिंडव जय” पांडव विजय का कथा सार है। “हिकायत राना बड़शु” में वंशतिहास है। “हिकायत मित्रजय पूर्ति” में मलय के प्राचीन राजाओं की कथाएं हैं।

सनातन संस्कृति से सारा विश्व प्राचीन काल में सरावोर/ओत-प्रोत रहा है। यह सनातन संस्कृति आखिर राम की ही तो संस्कृति है। सारे विश्व में जगह-जगह सनातन संस्कृति के अवशेष, साक्ष्य, ध्वंसावशेष, मूर्तियां, शिलालेख, ताम्रपत्र लेख, ध्वस्त मंदिर इत्यादि विभिन्न रूपों में प्राप्त हो रहे हैं। प्राचीन सम्पूर्ण विश्व सनातन/हिंदू के पुरातन वैभव, पुरुषार्थ, शौर्य- पराक्रम की ही तो गाथा गा रहा है। भारतीय/हिंदू का तो अनादिकाल से उद्घोष ही “कृन्वंतो विस्र्वमार्यम” है।

उक्त प्रमाणों से यह सिद्ध होता है की ‘मलयद्वीप’ रामायण काल से भारत का ही एक भाग था या भारतवर्ष का एक उपनिवेश था।

क्रमशः …..

डॉ.नितिन सहारिया
8720857296