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विश्वव्यापी राम / 7

World wide RAM

वियतनाम (चंपा) भारत वर्ष से गए ‘चाम’ जाती के लोगों द्वारा बसाया गया देश है। उस देश पर सन 192 में ‘श्रीमान’ नामक हिंदू राजा का राज्य था। इसके बाद वहां अनेकों हिंदू राजाओं ने राज्य किया एवं हिंदू धर्म की स्थापना की। चंपा राज्य की सभ्यता के आदि संस्थापक ‘चाम’ वर्ग के लोग अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। दक्षिणी वियतनाम में अभी भी उनकी संख्या 5000 से ऊपर है। उनकी सभ्यता अभी भी हिंदू धर्म के अनुरूप है। किसी समय इन्हीं के पूर्वजों का समस्त वियतनाम पर अधिकार था। सन 192 के अभिलेखों में इनके शौर्य, साहस और वर्चस्व का विवरण भली प्रकार उपलब्ध है। ‘चंपा’ का नामकरण ‘चंपक’ जिन्हें अब ‘चाम’ कहते हैं, के वर्चस्व को ध्यान में रखकर किया गया था। आदिवासियों को किरात कहा जाता था । पर जो कुछ प्रमाण सूत्र मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि वह आर्यवंशी लोग थे और भारतीय धर्म- मान्यताओं का अनुकरण करते थे। इसके बाद वहां ‘बर्मन’ उपाधि धारी राजा राज करते चले आए। उनके शासनकाल में ‘माईसन’ और ‘डांगडुंग’ के भव्य मंदिर बने। जिनमे प्रधानतया ‘शिव’ के साथ अन्य देवताओं की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित थी।

युगीन अध्यात्मवेत्ता, युगऋषि, वेदमूर्ति पं. श्रीराम शर्मा आचार्य चम्पा के बारे में लिखते हैं कि- शिवलिंग जिसे चंपा में राष्ट्रीय देव की प्रतिष्ठा प्राप्त थी। के अतिरिक्त अन्य छोटे देवताओं की मूर्तियां भी यहां प्राप्त हुई हैं। इसमें सबसे अधिक उल्लेखनीय ‘पो-नगर’ में स्थित ‘शंभूमुखलिंग’ है। आठवीं शताब्दी ईस्वी के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि इस मुखलिंग की स्थापना राजा ‘विचित्र सागर’ द्वारा की गई थी। अन्य दो शिलालेखों से उनकी स्थापना की निश्चित तिथि के संबंध में ज्ञान होता है। इसके अनुसार इसकी स्थापना द्वापर युग के 5911वें वर्ष में अर्थात 17,80,500 वर्ष पूर्व हुई थी। सन 774 ईस्वी में यह लिंग ध्वस्त कर दिया था। पर राजा ‘सत्यवर्मन’ ने इसे पुनर्स्थापित किया और इसका नाम ‘सत्यमुखलिंग’ रखा गया।

चंपा में वैष्णो धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। विष्णु को विभिन्न नामो से जैसे- पुरुषोत्तम, हरि, माधव, गोविंद से संबोधित किया जाता है। परंतु भारत की तरह ही यहां भी विष्णु भगवान के अवतारों को स्वयं विष्णु से अधिक महत्व दिया जाता था। इन अवतारों में राम और कृष्ण का उल्लेख बार-बार आता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि विष्णु ने अपने को चार रामों अर्थात राम और उनके तीन भाई के रूप में विभाजित कर दिया था। कृष्ण अवतार में विष्णु की वीरतापूर्ण लीलाओं की बहुत प्रतिष्ठा है।

चंपा के राजागण अपनी तुलना विष्णु से करने में बहुत हर्षित होते थे। कभी-कभी वह स्वयं को विष्णु का अवतार मान लेते थे। इस प्रकार राजा ‘जयरुद्र बर्मन’ को विष्णु का अवतार माना जाता था। विष्णु के संबंध में यहां मान्यता थी कि- वे चार भुजा वाले देव हैं, जिनका वाहन गरुड़ है। परंतु कभी-कभी वे क्षीरसागर में असंख्य फन वाले “शेषनाग वासुकी” पर शयन करते हैं।

विष्णु की शक्ति के रूप में ‘लक्ष्मी’ चंपा की प्रसिद्ध देवी थी। इन्हें ‘पद्दा’ एवं ‘श्री’ नाम से भी संबोधित किया जाता था। इनका उल्लेख शिलालेखों में भी मिलता है। शिव के वाहन ‘नंदिन’ के समान ही विष्णु के वाहन ‘गरुड़’ की मूर्ति भी चंपा में लोकप्रिय थी।

चंपा में शिव की ‘शक्ति’ का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। इन्हें उमा, गौरी, भगवती, देवी एवं ‘महादेवी’ नाम से संबोधित किया जाता था। उन्हें ‘मातृ लिंगेश्वरी’ एवं ‘भूमीश्वरी’ भी कहा जाता था। चंपा के दक्षिण क्षेत्र ‘कोठारा’ में शक्ति पूजा बहुत व्यापक रूप में प्रचलित थी।

यद्यपि हिंदू त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की ही विशेष रूप से पूजा की जाती थी। फिर भी छोटे देवी-देवताओं जैसे इंद्र, यम, चंद्र, सूर्य, कुबेर एवं सरस्वती की पूजा भी की जाती थी। चंपा में गणेश, कार्तिकेय की पूजा भी होती थी। बड़ी मात्रा में गणेश की मूर्तियां विद्यमान है। चंपा में शिव, विष्णु आदि की मूर्तियों के बावजूद निराकार परमात्मा की भी धारणा विद्यमान थी। जिसका उल्लेख एक शिलालेख में मिलता है। चंपा में यज्ञ के करने का विशेष जोर दिया जाता था। यज्ञ की महिमा की प्रशंसा बार-बार की गई थी।

शिलालेखों से यह स्पष्ट है कि चंपा में रामायण, महाभारत, शैब, वैष्णव एवं बौद्ध धार्मिक साहित्य, मनुस्मृति तथा पुराणों का अध्ययन बड़ी रुचि के साथ किया जाता था। संस्कृत शिलालेखों की शैली से यह प्रकट होता है की प्राचीन संस्कृत साहित्य, जिसमें संस्कृत काव्य तथा गद्य सम्मिलित हैं का पर्याप्त ज्ञान चंपा के विद्वानों को था।

बाद के समय में चंपा के लोगों पर बौद्ध धर्म का प्रभाव भी गहराई से पड़ा था। इस तथ्य की पुष्टि एक ऐतिहासिक घटना में होती है कि विजयी चीनी सेनापति ‘लिय-फंग’ सन 605 ईस्वी में 1350 बौद्ध ग्रंथ चंपा से लूटकर अपने साथ चीन ले गया था।

इतिहास विद डॉ. अखिलेश चंद शर्मा अपने ग्रंथ- “विश्व सभ्यताओं का जनक: भारत” में चंपा के बारे में लिखते हैं कि- “चंपा राज्य में राजाओं के नाम भारतीय परंपरा के अनुसार ही रहे हैं, जैसे गंगाराम, रुद्रवर्मा, शंभू वर्मा, प्रसस्त धर्म, कंदर्प धर्मा, प्रकाश धर्म, विक्रांत वर्मा, पृथ्वीन्द्र वर्मा, इंद्र वर्मा ,भद्र वर्मा आदि।”

चंपा के एक प्राचीन लेख में कहा गया है कि चंपापुर शिव के चरणों से उठी किरणों से बना है। एक अन्य लेख में शिव को चंपा राज्य का मूल स्रोत कहा गया है। शिव को ‘देवाधिदेव’ माना जाता है। कई लेखों में शिव की सर्वोच्चता स्वीकृत की गई है।”

डॉ. आर. सी. मजूमदार अपने ग्रंथ- “एसिएंट इंडियन कॉलोनीज इन द फॉर ईस्ट” चंपा, Vol-1में उल्लेख करते हैं कि- “1927 में चंपा राज्य में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार के 130 अभिलेख पाए गए हैं। सभी अभिलेख संस्कृत भाषा में है और सभी अभिलेख ‘ओम’ शब्द के साथ आरंभ होते हैं। विदित हो की ईश्वर का निज और मुख्य नाम ‘ओम’ है।” चंपा के मंदिरों में साधु, लोकसेवक गण भारतीय लंगोटी पहने हुए चित्रित किए गए हैं। यहां वैवाहिक आदर्श/संस्कार तथा पति-पत्नी संबंध भारत के अनुरूप थे। भारत में प्रसिद्ध त्योहारों में से बहुत से यहां लोकप्रिय थे। चाम लोगों का मृतक संस्कार भारत में प्रचलित परम्परा के ही अनुरूप था। मातृ वंश प्रचलन, कर्ण- कुंडल, उत्तरीय वस्त्र, पूजा- उपासना सभी कुछ भारतीय परंपरा के अनुरूप होता है।

इतिहास विद डॉ. प्रभु दयाल अग्निहोत्री अपने लेख – “दक्षिण -पूर्व एशिया में जीवंत है भारतीय संस्कृति” में लिखते हैं कि – “गत 15- 16 शताब्दियों के बीच श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, बाली, बोर्नियो, चंपा, मलय, ब्रह्मदेश, तिब्बत, मंगोलिया, चीन अर्थात लगभग सारा दक्षिण- पूर्वी ही नहीं, प्रत्युत एशिया का उत्तर- पूर्वी भाग भी कभी ना कभी और किसी न किसी रूप में भारत से प्रभावित रहा है। संस्कृति के क्षेत्र में संसार के प्राय: सभी देशों पर भारत का ऋण है। दक्षिण पूर्व एशिया तो ऐसा लगता है जैसे भारत का ही एक भाग हो। भारतीय संस्कृति के इस व्यापक प्रभाव को देखकर अनेक विद्वान इन सब द्वीपों को वृह्त्तर भारत की संज्ञा देते हैं। उनके नाम ‘चंपा’ (वियतनाम) भारतीय मूल के ही हैं।

वियतनाम/चंपा की नाट्यशाला में विद्यार्थियों को इसका प्रशिक्षण दिया जाता था। रामायण संबंधी चित्रों और मूर्तियों के दर्शन ‘लुआन्ग प्रावांग’ में किये जा सकते हैं। ‘वाट पादुकेद’ की भीतियों पर रामायण के चित्र अंकित हैं। सन 1803 में “वाट पादुकेद” का निर्माण हुआ और तभी से भित्तिचित्र बनाए गए थे। 31 चित्रों में संपूर्ण रामायण अंकित की गई थी। स्थानगत दूरी भले हो किंतु सांस्कृतिक दृष्टि से सारा दक्षिण-पूर्व एशिया भारत का अभिन्न अंग रहा है और आज भी है।

उक्त सभी तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि चंपा भारत का ही एक भाग रहा है। अथवा एक छोटा भारत ही है। किंतु आश्चर्य तब होता है कि भारत का इतना गौरवशाली अतीत और स्वर्णिम विस्तार इतिहास में हुआ था, तब विगत 75 वर्षों से पाठ्यक्रम में यह सब क्यों नहीं पढ़ाया गया? बडे आश्चर्य व चिंतन का बिषय है।

क्रमशः ….

डॉ.नितिन सहारिया
08720857296