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विस्वव्यापि शबरी के राम / 1

(RAM in every particle of the world)

भारतवर्ष श्रीराम का देश है, राम यहां के रोम-रोम, कण-कण, जन-जन के, मन-प्राण-आत्मा में बसे हुए हैं। यहां तो जागरण व रात्रि शयन भी श्रीराम नाम के स्मरण से ही होता है। यहां तो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत भी राम का ही स्मरण व गायन होता है। भारत में तो अनेक रूपों, नाम, पद्धतियों, परंपराओं, लोक-रीतियों, काव्य में, संप्रदायों में, श्रीराम का स्मरण व आदर्श समाया हुआ है। राम के बगैर तो यहां कुछ है ही नहीं। भारतवर्ष से यदि राम को निकाल दिया जाए तो फिर यहां कुछ बचता नहीं। ठीक वैसे ही जैसे शरीर से प्राण के निकल जाने पर शरीर, शव-अर्थी-मिट्टी ही बचता है अर्थात अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राम तो भारतवर्ष के प्राण/चिति हैं, आराध्य, आदर्श, अस्तित्व, मार्गदर्शक हैं, योगियों व भक्तों के ईस्ट हैं। जीव-जीवन-जगत के आधार व जगत के उत्पत्ति-पालन-संहारकर्ता हैं। राम के बिना तो सृष्टि-जगत की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज इसीलिए तो लिखते हैं कि-

सकल विश्व यह मोर उपाया।
सब पर कीन समानी दाया।।

भारत के तो जन-जन में, राम रमे हुए हैं, समाए हुए हैं, यहां तो संपूर्ण अस्तित्व ही राम से ओत-प्रोत है। या यूं कहें कि राममय ही है। इसीलिए तो यहां लोक गायन में यह पंक्तियां सुनाई देती हैं-

सीता श्रद्धा देश की,
राम अटल विश्वास।
रामायण तुलसी सहित,
हम तुलसी के दास।।

यहां तो सीता के राम, दशरथ के राम, राजाराम, लक्ष्मण के राम, भरत के राम, केवट के राम, अयोध्या नाथ, अवध बिहारी, शबरी के राम, वनवासी राम, अहिल्या तारक, हनुमान जी के प्रभु, रामेश्वरम्ं (शिवजी के राम), ऋषि -मुनियों के राम, जटायु के राम, भक्तों के राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कौशल्या के राम, दुखियों के राम, दीनों के नाथ, जन-जन के राम, का विविध रूपों में स्मरण, आराधन, पूजन-वंदन, नित्य,आठों याम किया जाता है। श्रीराम भारत की आत्मा- ‘चिति’ हैं। यहां तो गीत की पंक्ति में भी कुछ ऐसा भाव प्रकट होता है।

चंदन है इस देश की माटी,
तपोभूमि हर ग्राम है।
हर नारी देवी की प्रतिमा,
बच्चा -बच्चा राम है।।

भारत में तो मनुष्य कष्ट होने पर वह – हे राम ! पुकारता है। एवं आपस में मिलने पर राम-राम ! कहता है, और किसी प्रकार की अनहोनी, गलत कार्य हो जाने पर तीन बार राम नाम का उच्चारण- राम-राम-राम !! करता है, इससे अधिक बार राम नाम यानी जप/कीर्तन कहलाता है एवं विजय घोष में, सिंहनाद के रूप में -जय जय श्री राम !! जय जय सियाराम !! का उच्चारण किया जाता है। आपस में वार्तालाप में ग्रामीण क्षेत्र में लोग अपना विश्वास व्यक्त करने में कहते हैं कि-

‘राम दुहाई’ !! ‘राम की सौ’ !! ‘राम कसम’ !! और शव को शमशान ले जाते समय तो ”राम नाम सत्य है” इत्यादि वाक्यांश कहते हुए पाए जाते हैं।

अर्थात इस जगत में सिर्फ राम/परमात्मा का नाम ही सत्य है, वांकी सब असत्य है। इन वाक्यांशों, साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतवर्ष के जनमानस के चिंतन-चरित्र-व्यवहार, में राम किस तरह घुले, समाए हुए हैं, अतः श्रीराम की महिमा अनंत है, वह मर्यादा पुरुषोत्तम, भक्तवत्सल, प्रजा-पालक, करुणा के सागर, कृपा के धाम, कृपासिंधु, धर्म-कर्तव्य पालक व सत्य में प्रतिष्ठित हैं। वचन पालन उनका जीवन आदर्श है। राम संपूर्ण मानवता के आदर्श व प्रेरणा स्रोत हैं। अतः “राम दरबार यह जग सारा” के रूप में राम कथा के यशस्वी गायक रविंद्र जैन अपने रामायण-सीरियल में गायन करते, सुनाई -दिखाई देते हैं। इस देश के बीहड़ जंगल में रहने वाला कोई भी भारतीय जानता है कि इस देश में राम हुए हैं। वस्तुतः राष्ट्रपुरुष राम सदैब से भारतीय जनमानस के प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। राम का जीवन हिंदू जीवन प्रणाली की अभिव्यक्ति है। श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन विस्व मानवता के लिये “Art of living” आदर्श है। भारतवर्ष में राम या रामायण हमारे सांस्कृतिक जीवन की विरासत है। हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा राष्ट्रगत जीवन -आदर्शों का प्रतिबिंब है। अखिल विश्व गायत्री परिवार में श्रीराम भक्ति के स्वरूप पर एक गीत है। इसमें कुछ इस प्रकार के भाव हैं-

श्रीराम भक्ति ऐसी, श्रद्धा उभारती है।
निष्काम भाव सबरी, ऋषि पथ बुहारती है।
गाये जटायु ने थे, कब भक्ति के तराने।
श्रीराम को गिलहरी, पहुंची न जल चढ़ाने।
पर भक्ति भावना से, जीवन संवारती है।।
श्री राम भक्ति ऐसी, श्रद्धा ऊभारती है।
हनुमान भक्त ऐसे, माला घुमा न पाए।
श्रीराम को पुजापा, केवट चढ़ा न पाए।।
इनका चरित्र पावन ,प्रतिभा निखारती है।
यदि भक्त हम कहाये, तो श्रेष्ठ कार्य करना।
श्री राम काज करने, अन्याय से न डरना।।
युगधर्म को निभाने, प्रज्ञा पुकारती है।
श्रीराम भक्ति ऐसी, श्रद्धा उभारती है।।

भारत वर्ष ही नहीं संपूर्ण विश्व के अनेक देशों में श्रीराम कथा की व्याप्ति अनेक रूपों में दिखाई देती है। कन्याकुमारी से क्षीर भवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या तक, जगन्नाथ से केदारनाथ तक, सोमनाथ से काशीनाथ तक, समवेत शिखर से श्रवणबेलगोला तक, बोधगया से सारनाथ तक, अमृतसर साहब से पटना साहेब तक, अंडमान से अजमेर तक, लक्ष्यदीप से लेह तक, पूरा भारत राममय हैं। रामकथा की अनेक रूपों, भाषाओं, बोलियों, में व्याप्ति है। यहां तो बाल्मीकि रामायण से रामचरित्र मानस तक, तेलुगु रामायण (रघुनाथ ब रंगनाथ रामायण) राधेश्याम रामायण, गोविंद रामायण, अध्यात्म रामायण, तमिल में कंबन रामायण, उड़िया में रुईपात कातेय पति, कन्नड़ में (कुंदेंदु रामायण), कश्मीर में रामावतार चरित्र, मलयालम में ‘रामचरितं’, बंग्ला में ‘कृतिबास रामायण’, गुरु गोविंद की ‘गोविंद रामायण’ है।

राम सब जगह हैं, व राम सबके हैं, राम भारत की अनेकता में एकता के सूत्र हैं। दुनिया के कितने ही देश राम के नाम का वंदन करते हैं। वहां के नागरिक खुद को श्रीराम से जुड़ा हुआ मानते हैं। विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया (बाली द्वीप) में भी ‘काकादिन रामायण’, स्वर्णदीप रामायण, योगेश्वर रामायण, कंबोडिया में ‘रामकेन रामायण, लाओस में ‘फैलात फैलाद’, मलेशिया में ‘हिकायत श्रीराम’, थाईलैंड में ‘रामकियेन’ है। ईरान व चीन में भी राम के प्रसंग तथा राम कथाओं Eका विवरण मिलेगा। श्रीलंका में रामायण की कथा ‘जानकी हरण’ के नाम से सुनाई जाती है। नेपाल का तो राम का आत्मीय संबंध माता जानकी से जुड़ा है। ऐसे ही दुनिया के न जाने कितने देश हैं, कितने छोर हैं, जहां की आस्था में या अतीत मे राम किसी ना किसी रूप में रचे-बसे हैं।

अत: भारत ही राम हैं, राम ही भारत है।

क्रमशः…