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शार्टकट रास्ता बनाम शार्ट सर्किट

पूरी दुनिया के सामने इन दिनों श्रीलंका के हालात सुर्खियों में बने हुए हैं। श्रीलंका की गिनती यदि अमीर राष्ट्रो में नहीं तो गरीब में भी नहीं, यदि विकसित में नहीं तो अविकसित में भी नहीं, फिर भी बड़ा सवाल यह कि श्रीलंका के आखिर में ऐसे हालात क्यों बने कि जनता विद्रोह पर उतर आई।

राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया, तो प्रधानमंत्री आवास जला दिया। इसकी वजह है श्रीलंका की स्थिति इतनी दुरूह हो जाना। स्थिति यह है कि श्रीलंका में 1 किलो दाल की कीमत एक हजार रूपये, एक किला प्याज की कीमत 500 रूपये 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 550 रूपये, एक एलपीजी सिलेंडर की कीमत पाँच हजार रूपये (पर यह आसानी से उपलब्ध नहीं है, 12-12 दिन तक इंतजार करना पड़ता है? जिसमें बहुत सीमित उपलब्ध होता है), एक किलो चावल की कीमत 550 से 600 रूपये तक, एक किलो शक्कर 330 रूपये, एक किलो टमाटर 800 रूपये से लेकर 1000 रूपये तक, एक किलो आटा 400 से 500 रूपये, एक लीटर दूध 500 रूपये और एक पैकेट बिस्किट 150 रूपये में बिक रहा है। बड़ा सवाल यह कि जो श्रीलंका हैप्पीनेस इंजेक्सन में भारत से ऊपर कहा जाता था, उसकी यह स्थिति कैसे आन पड़ी ?

वस्तुतः यह सब उन नीतियों का नतीजा है, जो प्रधानमंत्री मोदी झारखण्ड के देवघर में एक सभा में कह रहे थे कि लोक-लुभावन राजनीति का नतीजा घातक होता है। किसी तरह से चुनाव जीतने के नतीजे कितने भयावह हो सकते हैं ? इसका उदाहरण श्रीलंका है। वस्तुतः श्रीलंका में राजपक्षे परिवार मुफ्तखोरी की योजनाओं का वायदा कर सत्ता में आया था।

सत्ता में आते ही राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके भाई महेन्द्र राजपक्षे जो प्रधानमंत्री पद पर आसीन थे, उनके द्वारा लोकप्रियता हासिल करने की दृष्टि से टैक्सों में 40 प्रतिशत की कटौतियाँ कर दी गई। लोगो के ऋण माफ कर दिये गये। नतीजा यह हुआ कि विदेशों खास तौर से चीन से भारी-भरकम कर्जे लिये गये। मुद्रा का अत्यधिक अवमूल्यन कर दिया गया। पर मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति और लोक-लुभावन योजनाओं के चलते श्रीलंका एक ओर तो विदेशी खास तौर पर चीनी कर्जे को उतारना तो दूर, उसके मकड़जाल में फसता गया। नतीजा मुद्रास्फीति के चलते भयावह मंहगाई का दौर शुरू हो गया। स्थिति की भयावहता यह है कि बच्चों को नाश्ता देने के लिये नहीं, इसलिये माताएं, बच्चों को दिन के 12 बजे तक सुलाती रहती हैं।

विडम्बना यह है कि श्रीलंका की ढ़ाई करोड़ की आबादी में 25 लाख लोगो के पास खाने के लिये कुछ भी नहीं है। निसंदेह जैसा कि मोदी ने देवघर में कहा- शार्टकट की राजनीति का नतीजा शार्ट सर्किट है। शार्टकट वालों को न तो मेहनत करनी पड़ती है, न दूरगामी परिणामों के बारे में सोचना पड़ता है।

श्री मोदी ने यह भी उल्लेख किया कि दुनिया के जापान और जर्मनी जैसे देश युद्ध में तबाह होने के बावजूद प्रगति के प्रतिमान बन गये। लेकिन भारत इसी शार्टकट के चलते बहुत पीछे रह गया। लेकिन मोदी जब शार्टकट, मुफ्तखोरी का, लोक-लुभावन योजनाओं की बात कर रहे थे तो भारतीय राजनीति का परिदृश्य ताजा हो जाता है, जिसमें कई राजनीतिक दल सभी सीमाएं लांघ जाते हैं। ऐसा लगता है कि चुनावों में वह मतदाताओं को रिश्वत दे रहे हों। मुफ्त टी.वी. मुफ्त गैस, मुफ्त परिवहन से लेकर और जाने क्या-क्या ? किसानों की ऋण-माफी जिसमें एक प्रमुख मुद्दा है।

उदाहरण के लिये 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने किसानों से ऋण-माफी का वायदा किया था। पर उसके चलते प्रदेश में सम्बल, सामुहिक विवाह जैसी कई जनकल्याणकारी योजनाएं बंद हो गई। अभी पंजाब की आप सरकार ने अपने चुनावी वायदे के अनुसार माह में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की योजना लागू की है, भयावह कर्ज के बोझ से दबे पंजाब जैसे राज्य में इसका अंजाम भविष्य में अच्छा तो नहीं होगा।

ऐसे ही लोक-लुभावन योजनाओं के चलते यूपीए सरकार के दौर में सेना को बुलेटप्रूफ जैकेट तक उपलब्ध नहीं हो पाई थी। देश की सुरक्षा के लिये अहम राफेल विमानों को खरीदने के लिये रूपये नहीं थे। लोक-लुभावन योजनाओं का ही नतीजा था कि पटरियों में ट्रेनों का भयावह लोड होने के बावजूद नई-नई ट्रेने चलाना। जिसका परिणाम था- ट्रेनों को आठ-दस घंटे लेट चलना सामान्य बात थी। इसके उलट मोदी सरकार ने नई ट्रेने अत्यावश्यक होने पर ही चलाई और उसकी जगह रेल की पटरियाँ बनाने और उनको दुरूस्त करने का काम किया। नतीजे में ट्रेन कमोवेश समय पर तो चल ही रही हैं, उनकी स्पीड भी बढ़ गई है, जिससे कम समय में यात्री यात्रा पूरी कर पा रहे हैं।

पर मुफ्तखोरी या लोक-लुभावन योजनाएं तस्वीर का एक पहलू है। वस्तुतः इसके भ्रष्टाचार और परिवारवाद इसके अनिवार्य घटक हैं। अब ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचारी और परिवारवादी दलों को लगता है कि किसी तरह से सत्ता में पहुंचो, इसके बाद उनका भ्रष्टाचार और परिवारवाद का नंगा-नाच देखने को मिलता है।

अब श्रीलंका में ही देखा जाये तो गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति, भाई महेन्द्र राजपक्षे प्रधानमंत्री, दो भाई वित्तमंत्री एवं सिंचाई मंत्री। कुल मिलाकर यह कहा जा कसता है कि श्रीलंका की सत्ता पूरी तरह एक परिवार की गिरफ्त में और जब परिवावाद की राजनीति होती है तो फिर अंतहीन भ्रष्टाचार और लूट का भी सिलसिला शुरू हो जाता है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद को देश की एक भीषण त्रासदी बताते रहे है। इसी परिवारवाद ने श्रीलंका को पतन के कगार पर खड़ा कर दिया और इसी का परिणाम हमारे देश को भुगतान पड़ा, जिससे विश्व के मुकाबले वह प्रगति की दौड़ से बहुत पीछे रह गया।

ब्रिटेन की भूतपूर्व प्रधानमंत्री मार्गग्रेट थैचर ने एक बार कहा था कि राजनीतिज्ञ की दृष्टि में जहाँ सत्ता होती है, वहीं राजनेता की दृष्टि में आने वाली पीढ़ियाँ होती है। मोदी जैसे राजनेता ही जिनके सामने वाले वाली पीढ़ियाँ हैं, वहीं शार्टकट, परिवारवाद और भ्रष्टाचार के विरूद्ध, सिर्फ ताकत से बोल ही नहीं सकते, उन सबके विरूद्ध युद्ध स्तर पर अभियान भी चला सकते है। इसीका नतीजा है कि विश्व मंच पर भारत की उपस्थिति दिनो-दिन प्रभावी और सशक्त होती जा रही है। उम्मीद है कि देशवासी ऐसे शार्टकट वाले नेताओं से और ज्यादा सावधान होंगे, ताकि भविष्य में कही शार्ट सर्किट जैसी स्थिति उत्पन्न न हो।

लेख़क – वीरेन्द्र सिंह परिहार
संपर्क सूत्र – 8989419601