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“श्रीराम की विजय और परम ज्ञानी रावण का आशीर्वाद : विजयादशमी पर्व”

विजयादशमी पर्व के आलोक में, मेरा विचार है कि “सत्य और असत्य का अद्वैत ही सत्य है, असत्य एक भ्रम है और असत्य का असत्य होना भी सत्य होना चाहिए, नहीं तो वह असत्य भी नहीं हो सकता, इसीलिए हर अवस्था में सत्य ही जीतता है।” यही विजयादशमी है। शक्ति और शस्त्र का भी अद्वैत भाव है।

विजयादशमी पर्व के दो मूलाधार हैं। प्रथम माँ दुर्गा ने आसुरी प्रवृत्ति महिषासुर के साथ भीषण संग्राम किया और 9 रात्रि तथा दसवें दिन उसका वध करके पृथ्वी लोक एवं देवलोक को मुक्ति दिलाई। द्वितीय श्री राम और परम ज्ञानी रावण के मध्य युद्ध का अंतिम दिन था। सभी देवी देवताओं चिंता ग्रस्त थे। महापंडित रावण को महादेव का आशीर्वाद और अमरत्व प्राप्त था, और उस से भी बड़ी बात यह थी कि वह माँ चंडी की गोद में बैठकर युद्ध कर रहा था। इसलिए श्रीराम की विजय में संशय उत्पन्न हो गया था। एतदर्थ श्री राम ने शक्ति के 9 स्वरुपों की 9 दिन उपासना की थी। अंतिम युद्ध के दिन ऋषि अगस्त्य ने श्री राम की विजय हेतु “आदित्य हृदय स्त्रोत” का अनुष्ठान कराया। तदुपरांत श्री राम ने अपनी विजय हेतु माँ चंडी का अनुष्ठान किया और 108 नीलकमल चढ़ाने के लिए एकत्रित किए। लेकिन रावण ने अपनी मायावी शक्ति से एक नीलकमल गायब कर दिया। पुष्पांजलि के समय एक पुष्प कम हो गया। तब राम ने कहा कि मेरी माँ कौशल्या बचपन से मेरे नेत्रों राजीव लोचन कहती है मुझे “कमल नयन नव कंच लोचन” भी कहा जाता है, इसलिए मैं अपने नेत्र को निकालकर अर्पित करता हूँ। जैंसे ही श्रीराम तीर को आँख के पास ले गये तभी आसमान में भयंकर गर्जना और प्रचंड हवाओं के आवेग के आलोक में माँ दुर्गा प्रकट हुईं और श्री राम का हाथ पकड़ लिया तथा विजयश्री का आशीर्वाद दिया। अंत में महादेव की पूजा अर्चना कर धनुष प्राप्त कर युद्ध भूमि की ओर अग्रसर हुए। उधर महारथी रावण भी माँ चंडी का अनुष्ठान कर रहा था। ब्राह्मण गण प्रतिदिन मंत्रोच्चार कर रहे थे, महादेव के अवतार श्री हनुमान जी एक बालक के रूप में शामिल हो गये थे और उन्होंने ब्राम्हणों की खूब सेवा कर प्रसन्न कर लिया और वरदान स्वरुप केवल यह माँगा कि आप ब्राह्मण गण देवी की आराधना के समय मंत्र में शब्द “भूर्तिहरिणी” (पीड़ा हरने वाली) में “ह” अक्षर की जगह “भ” अक्षर का प्रयोग करें, फिर क्या था ब्राह्मणों ने, भूर्तिहरिणी की जगह “भूर्तिकरणी” (पीड़ा कारित करने वाली) शब्द का उच्चारण किया। जिससे देवी रुष्ठ हो गयीं और महारथी रावण की पराजय हुई।

श्रीराम और रावण के मध्य 18 दिन और युद्ध के 84वें दिन (12 दिन विभिन्न अवसरों में युद्ध बंदी रही) कुल 72 दिन युद्ध हुआ। 9 दिन के श्री राम – रावण युद्ध के अनिर्णीत युद्ध के उपरांत, श्री राम ने माँ चंडी के 9 स्वरूपों की 9 दिन पूजा की और 10वें दिन आशीर्वाद प्राप्त कर महारथी रावण का वध कर दिया। श्री राम ने नीलकंठ जी से विजय का आशीर्वाद लिया। अपरान्ह पहर में श्रीराम ने रावण के वध का निर्णय लिया और भगवान् नीलकंठ का आव्हान किया।

नीलकंठ जी युद्ध भूमि में पहुँच गए श्रीराम ने दर्शन के उपरांत रावण का वध कर दिया। आज भी एक कहावत प्रचलित है कि “नीलकंठ तुम नीले रहिये.. दूध भात का भोजन करियो.. हमरी बात राम से करियो”। रावण महाज्ञानी महायोद्धा था इसलिये श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि जाओ और महापंडित से ज्ञान प्राप्त करो। लक्ष्मण, रावण के सिर के पास खड़े हो गए, रावण देखा तक नहीं, लक्ष्मण क्रोधित होकर लौटे और बोले कि रावण का अहंकार अभी भी नहीं गया। तब श्री राम ने लक्ष्मण से कहा अहंकार तो तुमको आ गया है, इसलिए तो तुम महापंडित के सिर के ओर जाकर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हो। श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा “श्रद्धावान लभते ज्ञानम्” ज्ञान सिर उठाकर नहीं सिर झुकाकर प्राप्त किया जाता है। लक्ष्मण महापंडित के पांव की ओर गये तब महाज्ञानी रावण ने 3 ज्ञान की बातें बताईं। परम ज्ञानी और महारथी रावण ने लक्ष्मण सर्वप्रथम यह बताया कि “रामेश्वरम में श्री राम जब शिव लिंग की पूजा कर रहे थे तो अनुष्ठान का महापंडित मैं ही था और युद्ध के समय श्री राम को ब्राह्मण होने के नाते विजय श्री का आशीर्वाद भी दिया था। तदुपरांत महापंडित रावण ने 3 महत्वपूर्ण ज्ञान की बातें बताईं – प्रथम – शुभस्य शीघ्रम, द्वितीय – कभी प्रतिद्वंद्वी को कमजोर नहीं समझना चाहिए तृतीय – अपनी जिंदगी का सबसे गहरा रहस्य किसी को नहीं बताना चाहिए। अंत में यह कि विजयादशमी पर्व में परमज्ञानी और महारथी रावण के पुतले का दहन नहीं होता है, वरन् प्रतीकात्मक रुप से उसके आलोक में हम सभी में निहित आसुरी प्रवृत्ति का दहन है।

        लेख़क 
डॉ. आनंद सिंह राणा 
    7987102901