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षटतिला एकादशी

मनुष्य अपने जीवन मे किसी न किसी रूप से पाप कर ही लेता है। जो मानसिक या शारीरिक कर्म से ग्रसित होते है। मन में किसी के लिए दूषित विचारों को लाना मानसिक पाप कहलाता है।अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरों को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से किए गये पाप पूर्व नियोजित पाप कहलाते है। कुछ पाप अंजाने में हो जाते हैं वह अज्ञात पाप कहलाते है। किंतु भारतीय सनातन धर्म में अन्य धर्म की अपेक्षा इन पापो के मोचन का विधान है। माघ मास कृष्णपक्ष की एकादशी को करने से मनुष्य अपने अंजाने अज्ञात पापों से मुक्ती प्राप्त करता है। ऐसा विधान पुराणों में कहा गया है। इसे षटतिला एकादशी भी कहते है।
इस दिन मनसे शुद्ध होकार भगवान विष्णु, भगवान श्रीराम या भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करना चाहिए तथा तिल का दान भी करना चाहिए। इस दिन तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिल का होम, तिल का भोजन, तिल का जल और दिल से दान करना चाहिए। तिल के इस छै: प्रकार के उपयोग करने के कारण इसे षटतिला एकादशी कहते है।

षटतिला एकादशी व्रत के नियम:

  • षटतिला एकादशी व्रत के एक दिन पूर्व से मांसाहार और तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
  • यदि किसी व्यक्ति ने एकादशी व्रत नहीं रखा है तब भी उसे बैगन और चावल नहीं खाना चाहिए।
  • षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में तिल का प्रयोग करें। उनको तिल का भोग लगाएँ।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत वाले दिन जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए।
    तिल का उबटन लगाना चाहिए।
  • पीने के पानी में तिल डालकर जल ग्रहण (पीना) करना चाहिए।
  • आहार में तिल से बने खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करना चाहिए।
  • षटतिला एकादशी के दिन तिल का हवन और तिल का दान करना चाहिए ।
  • इस दिन पूजा के समय षटतिला एकादशी व्रत कथा का श्रवण जरूर करें। व्रत का श्रवण करने से भी इस व्रत का महत्व मिलता है और व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है।
  • भगवान हरि को तिल मिश्रित जल से अर्ध्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव।
संसारार्णवमनानां प्रसीद पुरुषोत्तम॥
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन।
सुब्रहाण्य नमस्तेऽस्तु महापुरुष पूर्वज॥
गृहाणार्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।

पुराणों में इस व्रत की अलग अलग कथाएँ मिलती है, किन्तु सार यही है, कि दिन प्रातः कालीन शुद्ध मन, बुद्धि और शरीर से भगवान के प्रति समर्पित होकर जो जातक तिल का अपने प्रत्येक कर्म में प्रयोग करके मंत्र, तंत्र, ध्यान, धारणा से इस एकादशी का व्रत करता है उसको समस्त अज्ञात पापों से उसे मुक्ती मिलती है और उसको स्वर्ग में श्रेष्ठ स्थान भी प्राप्त होता है।

डॉ नुपूर निखिल देशकर की कलम से…