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“संविधान की प्रस्तावना में हिन्दुत्व की ही मूल भावना – डॉ. मोहन भागवत : निहितार्थ”

डॉ. आनंद सिंह राणा

शनिवार दिनांक 19-11-2022 की सांध्य बेला में संस्कारधानी के मानस भवन में आयोजित प्रबुद्ध जन गोष्ठी में सर संघ चालक डॉ. मोहन भागवत ने राष्ट्र की अवधारणा, हिंदुत्व, धर्म दर्शन, संस्कृति, वसुधैव कुटुम्बकम्, विविधता में एकता, प्रकृति संरक्षण संविधान के दर्शन पर विहंगम दृष्टि डालते हुए अपने अमृत विचार व्यक्त किए।

डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत की राष्ट्र की कल्पना पश्चिम की कल्पना से अलग है। भारत भाषा, व्यापारिक हित, सत्ता, राजनैतिक विचार आदि के आधार पर एक राष्ट्र नहीं बना। भारत भूमि सुजलां सुफलाम रही है। भारत विविधता में एकता और वसुधैव कुटुम्बकम के तत्व दर्शन और व्यवहार के आधार पर एक राष्ट्र बना है। अपना जीवन इन जीवन मूल्यों के आधार पर बलिदान करने वाले पूर्वजों की अपनी विशाल परम्परा है। भाषा, पूजा पद्धति के आधार पर समाज नहीं बनता. समान उद्देश्य पर चलने वाले,एक समाज का निर्माण करते हैं। भारत का दर्शन ऐसा है कि किसी ने कितना कमाया इसकी प्रतिष्ठा नहीं है, कितना बाँटा इसकी प्रतिष्ठा रही है। अपने मोक्ष और जगत के कल्याण के लिए जीना ये अपने समाज का जीवन दर्शन रहा है। इसी दर्शन के आधार पर अपना राष्ट्र बना है।
इस तत्व दर्शन के आधार पर जीते हुए ज्ञान- विज्ञान- शक्ति -समृद्धि की वृद्धि करने का रास्ता अपने ऋषियों ने दिखाया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की बात, अर्थात सब प्रकार के संतुलन की बात हमारी संस्कृति है। सबको अपनाने वाला दर्शन ही हिंदुत्व है। संविधान की प्रस्तावना भी हिंदुत्व की ही मूल भावना है। डॉ. भागवत ने आगे कहा कि विविधताओं की स्वीकार्यता है, विविधताओं का स्वागत है, लेकिन विविधता को भेद का आधार नहीं बनाना है। सब अपने हैं. भेदभाव, ऊँच नीच अपने जीवन दर्शन के विपरीत है।

डॉ. मोहन भागवत का यह वक्तव्य कि “संविधान की प्रस्तावना हिंदुत्व की ही मूल भावना है” सुस्पष्ट करता है, कि न केवल प्रस्तावना वरन् संपूर्ण संविधान, हिंदुत्व की मूल भावना से ओत-प्रोत है।उक्ताशय के आलोक में ज्ञातव्य है, कि प्रस्तावना संविधान का दर्शन, उद्देशिका और आत्मा भी है। प्रो. अर्नेस्ट बार्कर ने प्रस्तावना की भूरि – भूरि प्रशंसा करते हुए, इसे संविधान की कुंजी कहा है। इस अर्थ में सर संघ चालक डॉ. मोहन भागवत के कथन का विश्लेषण किया जाए तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि प्रस्तावना संविधान की कुंजी है तो प्रस्तावना की कुंजी हिंदुत्व है। भारत के सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता एन. ए. पालकीवाला (पालखीवाला) ने प्रस्तावना के संदर्भ में यह कहा है कि “प्रस्तावना हमारे संविधान अधिनियम का भाग है, परंतु यह संविधान का भाग नहीं… यह तो इसका पहचान पत्र है।” इस अर्थ में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के कथन के निहितार्थ को समझा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि हिंदुत्व, प्रस्तावना का पहचान पत्र है।” सर संघ चालक डॉ. मोहन भागवत के कथन “संविधान की प्रस्तावना हिंदुत्व की ही मूल भावना है” का सिंहावलोकन यह है कि, प्रस्तावना संविधान की आत्मा है तो हिंदुत्व चेतना है। प्रस्तावना हमारे संविधान का “बीज मंत्र” है, तो बीज हिंदुत्व है।

(लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति के विभागाध्यक्ष है)