Trending Now

“संस्कारधानी में उत्पन्ना एकादशी माता की प्राचीनतम प्रतिमा और माहात्म्य”

अमरकंटक से लेकर भरूच तक नर्मदा तटों पर वैसे तो अनेक मंदिर हैं, परंतु जबलपुर के नर्मदा तट गोपालपुर में देश का अनूठा और संभवतः एक मात्र एकादशी माता मंदिर है जो कल्‍चुरिकाल का है। यहां स्‍थापित प्रतिमा संगमरमर की है। लगभग 1100 साल प्राचीन इस मंदिर में भगवान नारायण के साथ माता लक्ष्‍मी भी विराजमान हैं। यहां मुख्‍य द्वार के पास श्री विष्‍णु पुत्री स्‍वरूप में एकादशी माता को गोद में लिए हुए गरुड़ पर चलायमान हैं। यह मंदिर भेड़ाघाट के पास लक्ष्‍मीनारायण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

विश्‍व प्रसिद्ध धुआंधार जलप्रपात के पास इस मंदिर में श्रीहरि नारायण माता लक्ष्मी (विष्णु पंचायतन) के साथ विराजित हैं। मुख्य लक्ष्मी नारायण का श्रीविग्रह ग्रेनाइट पत्थर की काली प्रतिमा है। दायीं सूड़ वाले सिध्दि विनायक, सातों घोड़ों के रथ पर सूर्य नारायण, वृषारूढ़ शिव पार्वती, महिषासुर मर्दिनी, माता दुर्गा काली स्वरूपा और नर्मदा जी विराजित हैं। परिक्रमा पथ में भगवान शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंग, माता अन्नपूर्णा, माता सरस्वती विराजित हैं। प्राचीन काल से जबलपुर में द्वादश ज्योर्तिलिंग एक स्थान पर केवल इसी मंदिर में हैं।

मंदिर में नौ शिखर हैं। मुख्य शिखर 51 फुट ऊंचा है। दो मंजिल मंदिर में झरोखों से पुनीत पावन नर्मदा जी के दर्शन होते हैं। यहां से मां नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है।

लक्ष्मीनारायण जी मानव स्वरूप रखे गरुड़ पर आरूढ़ हैं और एकादशी माता कन्या रूप में दायीं ओर विराजित हैं। माता लक्ष्मी नारायण के वाम अंग में हैं।

1100 साल प्राचीन मंदिर में कलचुरि शिल्प और गोंड वास्तु की बेजोड़ प्रतिकृति है। यह देश का एकमात्र कलचुरि कालीन माता एकादशी का प्राचीन मंदिर है।

मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। वर्ष 2023 में यह एकादशी 8 दिसंबर , शुक्रवार को मनाई जा रही है। इस व्रत को वैतरणी एकादशी भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था इसीलिए इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। वैतरणी एकादशी को व्रत-उपवास रखने से शीघ्र ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी उत्पन्न हुई थी अत: इस दिन कथा श्रवण का विशेष महत्व माना गया है। हेमंत ऋतु में आने वाली इस एकादशी को उत्पत्तिका, उत्पन्ना और वैतरणी एकादशी कहा जाता है।

वैतरणी एकादशी/उत्पन्ना एकादशी के बारे में जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा तो उन्होंने इस कथा को बताया-

वैतरणी एकादशी की इस कथा के अनुसार सतयुग में एक मुर नामक दैत्य था जिसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को जीत लिया। भयभीत देवता भगवान शिव से मिले तो शिवजी ने देवताओं को श्रीहरि विष्‍णु के पास जाने को कहा।

क्षीरसागर के जल में शयन कर रहे श्रीहरि इन्द्र सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर उठे और मुर दैत्य को मारने चन्द्रावतीपुरी नगर गए। सुदर्शन चक्र से उन्होंने अनगिनत दैत्यों का वध किया। फिर वे बद्रिका आश्रम की सिंहावती नामक 12 योजन लंबी गुफा में सो गए। मुर ने उन्हें जैसे ही मारने का विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्‍णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया।

जागने पर श्रीहरि को उस कन्या ने, जिसका नाम एकादशी था, बताया कि मुर को श्रीहरि के आशीर्वाद से उसने ही मारा है। खुश होकर श्रीहरि ने एकादशी को सभी तीर्थों में प्रधान होने का वरदान दिया। इस तरह श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी के उत्पन्न होने की यह कथा पुराणों में वर्णित है।

इस एकादशी के दिन त्रिस्पृशा अर्थात् जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है। इस दिन एकादशी का व्रत रखने से एक सौ एकादशी व्रत करने का फल मिलता है।

लेखक :- डॉ आनंद सिंह राणा