Trending Now

सप्तदिवसीय दीपोत्सव: धनतेरस

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है , जो प्रकृति के संरक्षण संवर्धन के साथ-साथ वसुधैव कुटुंबकम के भाव को लेकर संपूर्ण मानवजाति के कल्याण के साथ-साथ स्वयं को विश्वगुरु के रुप में स्थापित करती है।

इस मूल भाव के पीछे जो मुख्य आधार है वह यह है कि भारतीय संस्कृति को स्थापित करने के लिए यहां के देवी देवताओं ने परम शक्तियों ने समय-समय पर अवतार लेकर मानव जाति का पथ प्रदर्शन किया है। ऐसे ही धनतेरस का योग एक अवतरण से जुड़ा हुआ है।

हिंदुओं के परम पवित्र त्यौहार दीपावली से दो दिन पूर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है।भागवत पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार सनातन काल में जब सभी देव श्रीहीन हो गए तब भगवान शिव के मार्गदर्शन में समुद्र का मंथन किया गया। समुद्र मंथन में चौदह प्रकार के रत्नों की प्राप्ति हुई इन्हीं में से अमृत कलश के साथ भगवान धन्वंतरी जी का भी प्राकट्य हुआ। धन्वंतरी देव को हम आरोग्य के देवता भी मानते हैं । जो भी व्यक्ति भारत के आध्यात्म से जुड़े हुए है और इसकी वैज्ञानिकता को स्वीकार करते है वह धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करते हैं। चिकित्सा क्षेत्रों में बड़े-बड़े डॉक्टर , आयुर्वेदाचार्य भी धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करते हैं । एक साधारण मनुष्य आरोग्य पूर्ण जीवन पाने के लिए आज के दिन धनवंतरी भगवान का आवाहन कर उन के 108 नामों का वाचन करते हैं और हवन पूजन करके उनसे आरोग्यता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

धन्वं‍तरि स्तो‍त्र

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वं‍तरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात्
भगवन धन्वंतरि को, जिन्होंने अपने हाथों में अभय मुद्रा, शंख , सुदर्शन चक्र के साथ अमृत कलश धारण किया है, जिनका दिव्य रुप सर्वभय नाशक हैं, मनुष्य को आरोग्यता प्रदान करने विला हैं,जो तीनों लोकों के स्वामी हैं और जीवों को पोषण करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी भगवान को शत शत नमन है।

आलेख
डॉ. नुपूर निखिल देशकर
9425154571