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सप्तदिवसीय दीपोत्सव : नरक चतुर्दशी

सनातन संस्कृति में जीवन मृत्यु के साथ अनंत यात्रा और मोक्ष प्राप्ति की संकल्पना युगों-युगों से चली आ रही है इसलिए तो पाप-पुण्य और स्वर्ग-नरक की धारणा प्रत्येक सनातनी के मन-मानस में कहीं न कहीं स्पंदित होती रहती है। व्यक्ति सगुण उपासक हो या निर्गुण ब्रह्म को मानने वाला सभी के जीवन में यह भाव होता है ।संत कबीरदास जी ने भी मोक्ष की बात अपने काव्य में की है।

दीपावली उत्सव में नरक चतुर्दशी भी इसी मोक्षदायिनी यात्रा को समर्पित है।

कार्तिक त्रयोदशी के दिन लक्ष्मीपति ने देवताओं को दैत्यराज बलि से मुक्त किया।तीन पग भूमि दान में देने का वचन देकर राजा बलि को संपूर्ण पृथ्वी का त्याग करना पड़ा और उसे प्रभु ने पाताल में स्थान दिया।

भगवान ने वरदान देते हुए राजा बलि की प्रार्थना स्वीकार की “भगवान सदैव मेरे महल में रहें।” जो सुत्र नामक पाताल में आज भी है।राजा बलि को वरदान देते हुए भगवान को पाताल लोक में जाना पड़ा। यह वही चतुर्दशी का दिन है। भगवान विष्‍णु के पाताल लोक में जाने से माता लक्ष्‍मी और सभी देवतागण चिंतित हो गए। भगवान को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी, राजा बलि के यहाँ सुत्र पाताल पहुँचीं और दैत्य राज बलि को अपना भाई बना लिया । लक्ष्मी माता ने बलिराजा से भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन लिया यह दिन श्रवण पूर्णिमा अर्थात् रक्षा बंधन का था। पाताल से विदा लेते समय भगवान विष्‍णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तक चार माह तक वह पाताल लोक में निवास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है। यही से चातुर्मास प्रारंभ हुआ जब सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं।

आज के दिन ही राधिके पति श्रीकृष्ण जी ने पाँच हजार वर्ष पूर्व आज के ईरान क्षेत्र में नरकासुर की बंदीगृह से सोलह हजार महिलाओं को मुक्त किया था।केशव के कृतित्व और नाम की प्रसिद्ध उन तक भी पहुँची ।सभी ने भगवान से अपने मोक्ष की प्रार्थना की और भक्तवत्सल ने नरकासुर का वध कर के उन्हें नरकीय जीवन से मुक्त किया ।जब नरकासुर ने अपना अंतकाल समीप देखा तब प्रभु से मोक्ष की कामना की। श्री हरि के करकमलों से मृत्यु का पर्याय मोक्ष ही तो है।

नरकासुर के संहार में देवी सत्यभामा और माता काली का भी सहयोग रहा, अतः नरक चतुर्दशी को रूप चौदस, काली चौदस भी कहते हैं।

सनातनी संस्कृति में वर्षा ऋतु के पश्चात् शरीर को स्वस्थ, स्वच्छ, निर्मल, आभामय एवं सुंदर बनाने के लिए आज के दिन सूर्योदय के पूर्व सुगंधित तेल के साथ आयुर्वेदिक उप्टन लगा कर स्नान करने का विधान है।आज के दिन घर के दक्षिण दिशा में , कचरा डालने की स्थान “घूरे” में चार मुखी दीपक रखते हैं।

शोध एवं आलेख डाॅ नुपूर निखिल देशकर
संपर्क सूत्र – 9425154571